पारसनाथ मन्दिर में अर्जित हो रहा है सम्यक ज्ञान, बसु – विज्ञा- समिति

करतार सिंह पौनिया ब्यूरो चीफ फिरोजाबाद :

टूण्डला – पारसनाथ मन्दिर में अर्जित हो रहा है सम्यक ज्ञान, बसु – विज्ञा- समिति, प.पू.उपाध्याय श्री विज्ञानंद जी महाराज मुनि श्री पुण्यानंद जी मुनि श्री धैर्यानंद जी ससंघ चातुर्मास बड़े उत्साह और भक्तिभाव से चल रहा है सुबह प्रवचन देते हुए उपाध्याय श्री ने कहा कि यदि आपका कर्म ठीक नहि है तो गुरु और भगवान भी आपको कुछ दे नही सकते हैं होता क्या है कि जब हमारे अंदर अज्ञान होता है तब हम भगवान से भौतिक चीजों को मांगते हैं जिनका कोई भी मतलब नहीं होता है ओर जो हमारे लिए जरूरी है असली सुख, जिससे हमारे पुण्य में वृद्धि होगी हम उसको कभी नहीं मागते और असली सुख से वंचित रह जाते हैं, हम यह नहि मांगते कि इस संसार से मेरा पीछा कब छूटेंगे मेरी समाधी कब होगी मेरे जीवन में कब सुधार होगा आशीर्वाद से समाधि नहि मिलती साधु जैसे सदमार्ग पर चलना पड़ता है साधु जैसी चर्या करनी पड़ती है अप जब महाराज को नमन करते हैं तो उनके मुख से यही निकलता है की धर्म की प्राप्ति हो धर्म की वृद्धि हो जो व्यक्ति वीतराग प्रभू के चरणो में रोज आएगा उसे कभी किसी से कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी वीतराग प्रभु के प्रति समर्पण भाव और हमेशा मज़बूत श्रृद्धान रखो, सभी दर्शन करने आते हैं सभी वाचना करने आते हैं प्राणी पूजा कोन सी क्रिया कोन से भाव से कर रहा भक्ति देवशास्त्र के गुरू के प्रति मग्न रहता है वह भाव उसकी जीवन आत्मा की निर्मलता आती है भगवान के सामने बस यही भाव भाओ कि भगवन में जीवन में राग द्वेष करता रहा पाप कर्मों का संचय करता रहा अब मुझे सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हो सम्यक दर्शन मेरे जीवन का लक्ष्य बने मेरी दृष्टि हमेशा सम्यक रुप से रहे यही मेरे जीवन का आधार रहे, मेरे दुखो का क्षय हो में जन्म मरण के इस जीवन से मुक्ति मिले, मुझे शाश्वत स्थान प्राप्त हो जाय, सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र को प्राप्त करे बिना पाप कर्मो का नाश नहि हो सकता है भगवन इस मनुष्य जीवन में मुझे विषय कषाय कर्मों के क्षय करके मुझे धर्म की प्राप्ति हो ज्ञान का अर्जन हो, जब कोई जीवन में आपके दुख आता है तो वो आपकी कषाय की तीव्रता के कारण आता है आप धर्म का आचरण अगर कषाय की पुष्टि के लिए करते हैं अगर आपके जीवन से संयम मिट गया स्वाध्याय मिट गया ज्ञान चला गया तो आपके जीवन का कोई अर्थ नहीं है, यह भाव भाओ की है भगवान मेरी आत्मा की शुद्धि हो मेरा जीवन में स्वाध्याय करके मेरी पूजा करके अनुसरण हो मेरा समाधि मरण हो, न मोह है न राग है न छोक हो न कषाय हो मेरी आत्मा जीवन में समता के साथ जिए , जिन गुरु सत्रप्ति हो, यह शाश्वत सुख की चाह है तो आकांक्षा का त्याग करना पड़ता है, यदि आपने सच्चे देवशास्ञ गुरु सच्चे देव से नाता जोड़ा है आपकी आस्था मजबूत है कभी गिलानी मत करना न देव के प्रति न देव शास्त्र गुरु के प्रति, अगर ऐसे भाव आपके रहेंगे तो आपके जीवन में कभी दुर्गति नहि होगी, आचार्य भगवन समंतभद्र स्वामि कहते हैं कि भगवान के वस्तु स्वरूप के प्रति निशंक होना चाहिए किसी व्यक्ति के कहा हो जाए कोढ़ हो जाय तो कभी उससे गिलानी मत करना, किसी साधु के प्रति कभी अपने भाव खराब मत करना कभी किसी साधु की अवेलना मत करना, जिसकी दृष्टि आत्मा पर होती है वो किसी के प्रति अपने भाव खराब नही करता है, राजा भोज की सभा में अष्टुवक्र नाम के विद्वान आय जैसे ही वो सभा में आय उनकी चाल को देखकर हंसने लगे, तब उसने सभा में कहा जिसकी दृष्टि चमड़ी पर हो उसे हम चमार कहते हैं जिसकी दृष्टि गुणों व ज्ञान पर हैं वो विद्वान् होता है कभी भी किसी के शरीर को देखकर गिलानी के भाव नहि लाना, यह भाव आपके पाप कर्मों मै वृद्धि करता है, इस अवसर पर चातुर्मास कमेटी अध्यक्ष बसन्त जैन, कमलेश जैन कोल्ड, अनिल जैन राजू, टिंकू जैन, निखिलेष जैन, प्रदीप जैन, सुभाष जैन, अनिल जैंडल, डॉ शैलेन्द्र जैन, विमल जैन बॉबी,, गोपाल जैन, आशु जैन, क्षेत्रीय सह संयोजक भाजपा अल्प संख्यक मोर्चा सचिन जैन, अंकित जैन, प्रिंस जैन, सुमित जैन गोलू जैन निखिल जैन सतेंद्र राहुल विनोद समस्त जैन समाज मौजूद रहा।

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