असंतोष के बीच मतदाता सूची में संसोधन

(निशांत पटेल) :

पिछले कुछ दिनों से बिहार में विधान सभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा विशेष “मतदाता गहन पुनरीक्षण” (एसआईआर) साधारण शब्दों में समझे तो “वोटर लिस्ट संशोधन” का काम बहुत तेजी से किया जा रहा है। ज्ञात हो कि बिहार में चुनाव आयोग द्वारा ऐसा कोई संशोधन 2003 के बाद पहली बार किया जा रहा है। जिसको लेकर समाज के कुछ वर्ग और विपक्षी दलों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है और चुनाव आयोग पर ऐसा आरोप भी लग रहा है कि यह प्रयास किसी खास राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। जो न केवल स्वस्थ लोकतंत्र के नजरिए से गलत है बल्कि आम जनमानस में भी चुनाव आयोग के प्रति अविश्वास पैदा कर रहा है।
चुनाव आयोग द्वारा इससे पहले मतदाता सूची में इस तरह का कोई संशोधन हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के पहले भी किया गया था और उस समय भी वहां के विपक्षी दलों और खासकर देश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर हेरफेर का आरोप लगाया गया था।
मेरा ऐसा मानना है कि चुनाव आयोग द्वारा चुनावी प्रक्रिया को और बेहतर बनाने का किसी भी तरह के प्रयास का स्वागत किया जाना चाहिए।लेकिन मतदाता सूची में किसी भी प्रकार का कोई नई चीज की जाती है तो यह चुनाव आयोग कि जिम्मेवारी है कि वह सभी राजनीतिक दलों और वोटरों को विश्वास में लेकर इस पुरी प्रक्रिया के पारदर्शिता को सुनिश्चत करें और जिनलोगों का नाम हटाया जा रहा है उनको अपनी बात रखने का उचित प्लेटफार्म मिले और जिन लोगों का नाम जोड़ा जा रहा है उनको उसके आधार को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए जिससे चुनाव आयोग कि गरिमा बनी रहे।

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