लेख – राधे मोहन मिश्रा “गुरु जी “
नई दिल्ली।।
महाकवि कालिदास बहुत विद्वान थे, लेकिन एक बार उन्हें भी अपने ज्ञान का घमंड हो गया था। वे स्वयं को सबसे बुद्धिमान, सर्वश्रेष्ठ समझने लगे थे। उस समय एक दिन वे यात्रा पर थे। रास्ते में उन्हें बहुत प्यास लगने लगी। कुछ समय बाद वे किसी गांव में पहुंचे, वहां एक कुआं दिखाई दिया, वहां एक महिला पानी भर रही थी।
कालिदास ने महिला से बोले कि देवी मैं बहुत प्यासा हूं, कृपया मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी दीजिए। स्त्री ने कालिदास को देखा और कहा कि मैं आपको नहीं जानती, पहले परिचय दो, फिर पानी मिलेगा।
कालिदास ने अपने ज्ञान के घमंड में खुद नाम नहीं बताया और कहा कि मैं मेहमान हूं। महिला बोली कि ये सही नहीं है। संसार में दो ही मेहमान हैं, एक धन और दूसरा यौवन। गांव की महिला से ज्ञान की ये बात सुनकर कालिदास हैरान थे। उन्होंने कहा कि मैं सहनशील हूं।
महिला बोली कि ये भी सही जवाब नहीं है। इस संसार में सिर्फ दो ही सहनशील हैं। एक ये धरती जो हमारा बोझ उठाती है। दूसरे सहनशील पेड़ हैं, जो पत्थर मारने पर भी फल ही देते हैं।
अब कालिदास को लगने लगा कि ये महिला बहुत विद्वान है। उन्होंने फिर कहा कि मैं हठी हूं। महिला बोली कि आप फिर गलत जवाब दे रहे हैं। संसार में हठी भी दो ही हैं। एक नाखून और दूसरे बाल। बार-बार काटने पर भी फिर से बढ़ जाते हैं।
ज्ञानभरे जवाब सुनकर कालिदास ने महिला के सामने अपनी हार मान ली। उन्होंने कहा कि मैं मूर्ख हूं। मुझे क्षमा करें। महिला ने कहा कि तुम मूर्ख भी नहीं हो। क्योंकि मूर्ख भी दो ही हैं। एक राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर राज करता है। दूसरे दरबारी जो राजा को खुश करने के लिए गलत बात पर भी झूठी प्रशंसा करते हैं।
इस जवाब के बाद कालिदास महिला के पैरों में गिर पड़े। पानी मांगने लगे। तभी महिला ने कहा कि उठो पुत्र। कालिदास ने ऊपर देखा तो वहां मां सरस्वती खड़ी थीं। माता ने कहा कि तुझे अपने ज्ञान का घमंड हो गया था। इसीलिए तेरा घमंड तोड़ना पड़ा। कालिदास ने माता से क्षमा मांगी और कहा अब से वे कभी भी घमंड नहीं करेंगे।