गणेश चतुर्थी के दौरान, भक्त भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन और पकवान प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं। यह उत्सव 7 सितंबर से शुरू होकर पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। 10 दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव अनंत चतुर्दशी तक चलेगा। इस दौरान भक्त गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित कर, उनके लिए बड़े ही श्रद्धा से भोग लगाते हैं ताकि उनकी कृपा और आशीर्वाद हमेशा बना रहे।
गणेश जी के लिए चढ़ाए जाने वाले भोगों में सबसे महत्वपूर्ण है मोदक। यह एक बेहद प्रसिद्ध और पसंदीदा मिठाई है जिसे भगवान गणेश के भक्त बड़े चाव से बनाते और चढ़ाते हैं। मोदक न केवल दिखने में सुंदर होते हैं, बल्कि खाने में भी अत्यधिक स्वादिष्ट होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि मोदक एक ही नहीं, बल्कि कई प्रकार के होते हैं – तले हुए मोदक, उबले हुए मोदक, नारियल मोदक, गुड़ मोदक आदि। पर क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान गणेश को मोदक इतना प्रिय क्यों है? इसके पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
मां पार्वती द्वारा बनाई गई पहली बार मोदक की कहानी
धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी की पूजा के दौरान भगवान गणपति को मोदक चढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह उनका सबसे प्रिय भोग है। इसके पीछे एक प्राचीन कहानी है। एक समय की बात है, जब भगवान शिव और माता पार्वती एकांतवास में चले गए थे। उन्होंने भगवान गणेश को आदेश दिया कि किसी को भी अंदर प्रवेश करने की अनुमति न दी जाए।
इसी बीच, भगवान विष्णु परशुराम के रूप में वहां आए और भगवान शिव से मिलने की इच्छा जताई। लेकिन गणेश जी को माता-पिता द्वारा निर्देश दिए गए थे कि किसी को भी अंदर आने न दिया जाए, इसलिए उन्होंने परशुराम को अंदर जाने से रोक दिया। परशुराम इससे नाराज हो गए और गणेश जी से युद्ध करने लगे। इस दौरान परशुराम ने भगवान शिव द्वारा दिए गए परशु (फरसा) का इस्तेमाल करते हुए गणेश जी पर वार किया।
गणेश जी ने भगवान शिव के शस्त्र का सम्मान करते हुए परशु का वार अपने दांतों पर ले लिया, जिससे उनका एक दांत टूट गया। इस घटना के बाद परशुराम को अपनी गलती का एहसास हुआ और युद्ध समाप्त हो गया। परंतु, गणेश जी का एक दांत टूट जाने के कारण उन्हें भोजन करने में कठिनाई होने लगी।
मोदक कैसे बना गणेश जी का प्रिय भोग
गणेश जी के टूटे हुए दांत को देखकर माता पार्वती को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने अपने पुत्र के लिए विशेष रूप से एक नया व्यंजन तैयार किया, जिसे आज हम मोदक के रूप में जानते हैं। यह व्यंजन इतना मुलायम और स्वादिष्ट था कि गणेश जी इसे तुरंत पसंद करने लगे। मोदक को चबाने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं होती थी और इसका स्वाद भी उन्हें बहुत पसंद आया। इस कारण से, मोदक भगवान गणेश के प्रिय भोग में से एक बन गया।
पौराणिक महत्व और धार्मिक मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश को मोदक का भोग चढ़ाने से वह अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। यह भी कहा जाता है कि मोदक का आकार और उसकी मिठास जीवन की खुशियों और संतोष का प्रतीक है। मोदक की मुलायमता दर्शाती है कि भक्तों का मन भी गणेश जी की भक्ति में इसी तरह कोमल और सच्चा होना चाहिए।
आज भी गणेश चतुर्थी के अवसर पर हर घर में मोदक बनाकर भगवान गणेश को अर्पित किया जाता है। चाहे वह दक्षिण भारत हो जहां ‘उकडीचे मोदक’ (उबले हुए मोदक) चढ़ाए जाते हैं, या महाराष्ट्र में जहां तले हुए मोदक का अधिक चलन है – गणेश जी का यह प्रिय भोग हर जगह एक समान श्रद्धा और भक्ति के साथ अर्पित किया जाता है। गणपति बप्पा मोदक के इस प्रसाद से अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों को अपनी कृपा से नवाजते हैं।
मोदक की विविधता और इसके आध्यात्मिक अर्थ
मोदक कई प्रकार के होते हैं, जैसे कि उकडीचे मोदक, तले हुए मोदक, चॉकलेट मोदक, नारियल और गुड़ से भरे हुए मोदक आदि। प्रत्येक प्रकार के मोदक का अपना एक खास स्वाद और महत्त्व है। हर भक्त अपनी पसंद और क्षेत्र के अनुसार भगवान गणेश को मोदक अर्पित करता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मोदक भगवान गणेश की आध्यात्मिकता, ज्ञान और आनंद का प्रतीक है। मोदक की मिठास जीवन में मिलने वाली सुख-संपत्ति और सफलता को दर्शाती है। मोदक चढ़ाने से भक्तों के जीवन में समृद्धि, सुख-शांति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी पर मोदक का भोग अनिवार्य रूप से चढ़ाया जाता है।
इस प्रकार, गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान मोदक का भोग भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।