मणिपुर में हाल के दिनों में हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जिससे राज्य में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। इस हिंसा को लेकर देशभर में राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़ हो गई है। विपक्ष ने केंद्र सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को मणिपुर की स्थिति पर कोई ठोस कार्रवाई न करने को लेकर आड़े हाथों लिया है। इसी कड़ी में शिवसेना (UBT) के प्रमुख नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने भी केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की है।
संजय राउत का आरोप: गृह मंत्री की अनदेखी
संजय राउत ने सीधे तौर पर गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा कि शाह देश के चुनावी तैयारियों में तो व्यस्त हैं, लेकिन मणिपुर की बिगड़ती स्थिति को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया, “गृहमंत्री अमित शाह पिछले दो दिनों से मुंबई में हैं, जहां उन्होंने चुनावी समीकरणों और तैयारियों का जायजा लिया। लेकिन इतने महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के बावजूद वह मणिपुर का दौरा करने और वहां की स्थिति को समझने की जहमत नहीं उठा रहे हैं।”
राउत ने यह भी कहा, “ये नेता खुद को भगवान कहते हैं, लेकिन भगवान अब सिर्फ लाशें देख रहा है। मणिपुर में हो रही मौतों और तबाही के बीच केंद्र सरकार मौन है, और देश के सबसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं।”
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर निशाना
संजय राउत ने मणिपुर हिंसा के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, “मणिपुर की स्थिति के लिए केवल केंद्र सरकार ही नहीं, बल्कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में दी है, जो देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में पूरी तरह विफल हो रहे हैं।”
राउत का यह बयान विपक्षी नेताओं के बीच एकता की कमी को इंगित करता है, जिसमें वह अन्य विपक्षी नेताओं पर भी ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं, जिन्होंने समय पर कड़ी कार्रवाई या विरोध नहीं किया।
प्रधानमंत्री मोदी पर गंभीर आरोप
संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी सीधा हमला बोला और गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने सवाल किया कि जब मणिपुर में हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) कहां हैं? राउत ने आगे आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी जानबूझकर मणिपुर की स्थिति को अनदेखा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मणिपुर को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं। वे इस पूरे संकट को हल करने के बजाय मौन हैं और कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे।”
राउत का यह बयान केंद्र सरकार की मणिपुर में हिंसा को लेकर निष्क्रियता पर गहरा सवाल उठाता है। उनका कहना है कि मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर केंद्र की उदासीनता और इसे हल करने में देरी से राज्य के हालात और खराब हो रहे हैं।
मणिपुर की स्थिति पर सरकार की कार्रवाई
मणिपुर में हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते राज्य सरकार ने पांच जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है और इंटरनेट सेवाओं को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा कि हिंसा को बढ़ावा देने वाले नफरत भरे भाषणों और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसके तहत इंटरनेट सेवाएं 15 सितंबर की दोपहर 3 बजे तक बंद रहेंगी।
सरकार के इस फैसले का उद्देश्य राज्य में स्थिति को नियंत्रण में लाना और हिंसा को और भड़कने से रोकना है। इंटरनेट सेवाओं के बंद होने से सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों और उत्तेजक पोस्टों को रोका जा सकेगा, जिससे स्थिति को काबू में लाने में मदद मिलेगी।
हालांकि, विपक्ष इस कदम को नाकाफी मानता है और कहता है कि केवल इंटरनेट बंद करने और कर्फ्यू लगाने से राज्य की हिंसा का समाधान नहीं होगा। उन्हें लगता है कि केंद्र सरकार को इस मामले में और अधिक गंभीरता से कदम उठाने की आवश्यकता है।
मणिपुर में हिंसा का कारण और प्रभाव
मणिपुर में कई जातीय और राजनीतिक कारणों से हिंसा भड़क रही है। इस हिंसा के पीछे के कारणों में जातीय विवाद, भूमि विवाद, और राजनीतिक अस्थिरता प्रमुख हैं। इसके साथ ही स्थानीय समूहों के बीच बढ़ती कटुता और तनाव ने हिंसा की आग को और भड़काया है।
हिंसा का सबसे बड़ा प्रभाव राज्य के आम लोगों पर पड़ रहा है। कई निर्दोष लोग इस हिंसा का शिकार हो रहे हैं, और राज्य में सामान्य जनजीवन प्रभावित हो रहा है। दुकानें बंद हैं, स्कूल-कॉलेज ठप हैं, और लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों पर इस हिंसा को रोकने की जिम्मेदारी है। हालांकि, मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि अब तक की गई कार्रवाई पर्याप्त नहीं रही है।