मुंगेली के कवि व शिक्षक ज्वाला विष्णु कश्यप, झझपुरी खुर्द , मुंगेली की पंचदिवसीय दीपोत्सव महापर्व को परिभाषित करती, संदेशात्मक रचना , मुंगेली के नगर के हृदय स्थल सिटी कोतवाली के सामने,रामानुज देवांगन द्वार के पास, साहित्यिक मंच कविता चौराहे पर के पटल पर प्रदर्शित किया गया है जिसे राहगीर पढ़कर, विचार कर समझ व आत्मसात करने की बात कह रहे हैं..तथा कविता छत्तीसगढ़ भाषा में होने के कारण शहरी व क्षेत्रीय, ग्रामीण अंचल के लोगों का भी इस रचना में रुचि देखते बन रही है…
रचना अवश्य पढ़ें –
धन तेरस धनवंतरी, चउदस के यमराज ।
अमावस म लछमी सजे, पूजे सबो समाज।।(1)
लछमी पूजन जो करै, देवारी के रात।
आथे ओ परिवार मा, धन हा बने अघात॥(2)
लछमी के आदर करव, करव न मन मा ढेर।
रसता भाव ल देख के, आहय सांझ अबेर॥(3)
धन तेरस तेरा बरे ,दीया चारो छोर।
चउदस के चउदा सजे,रिगबिग दिखेअँजोर॥(4)
लछमी पूजन जो करे, घर मा धन हर आय।
जिनगी भर सुख हर मिले,मान सदा ओ पाय॥(5)
दिन गुजरे बनवास के, राम चंद घर आय।
छाए ख़ुशी ह गाँव मा, देवारी ल मनाय।(6)
देवारी के रात मा, करे दीप के दान।
अइसन मनखे के सदा, करे देव सम्मान॥(7)
अँधियारी ला जीत के, सत के दीया बार।
मिलही सुख संसार मा, अही दिवारी सार॥(8)
संगत करव अँजोर के, मन मा दीया बार।
कहे दिवारी हर इँहा, असली अही तिहार॥(9)
गउरी गउरा देव के, सबो नवाथे माथ।
सिरजाथे हर गाँव मा, भक्तनअपने हाथ॥(10)
चउदा साल गुजार के, राम सिया घर आय।
जेखर खुशी म इँहा, घर घर दीप जलाय॥(11)
लंका ला जब जीत के, घर आइच हे राम।
जेखर खुशी मा परे,देवारी शुभ नाम॥(12)
मन मा दीया बार तै, कट जाहय अँधियार ।
देवारी कस रोज के, होही फेर तिहार॥(13)
अइसन दीया बार तै, लगे न बाती तेल
सबके मनला जीत के, खावय सब मा मेल॥(14)
अँधियारी ला देख के, देवारी हर आय।
रिगबिग दीया ज़ब बरे , रात गजब सरमाय॥(15)
ज्वाला विष्णु कश्यप
शास.पूर्व माध्य. शाला
झझपुरी खुर्द, मुंगेली
1no kavi sir 🙏🙏🙏