💥 *कविता:: शीर्षक –*
!! *मेरी चाह*!!
:- चाह नहीं मैं चांद सितारें एशो-आराम और सपनों की दुनिया में जाऊं।
:- चाह नहीं मैं सोने चांदी हीरे मोती और धन दौलत की चकाचौंध में खो जाऊं।
:- चाह नहीं मैं कपट कर्म, चोरी बेईमानी और बुरी संगती में फंस जाऊं।
:- चाह नहीं मैं लालची,लोभी और स्वार्थी बन धन दौलत कमाने के अनेंक साधन बना पाऊं।
हे ईश्वर,
मेरी चाह है करना उपकार इतना मुझ पर,
सदा चलूं मैं सत्य,अहिंसा और धर्म के अच्छे पथ पर।
*लेखक/कवि/पत्रकार,*
*विजय कुमार कोसले*
*नाचनपाली, सारंगढ़*
*छत्तीसगढ़ ।*
*मो.न.- 6267875476*