“हरतालिका तीज 2024: इस व्रत से मिलेगा अखंड सौभाग्य का अचूक वरदान, जानें पूजा का सही समय और विधि!”

आज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है, जिसे हरतालिका तीज के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसे अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। हरतालिका तीज व्रत में महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत करती हैं, यानी न तो अन्न ग्रहण करती हैं और न ही जल। यह व्रत अत्यधिक कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें व्रती को पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ तप करना होता है।

हरतालिका तीज का महत्व

हरतालिका तीज का व्रत मुख्य रूप से मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पति के रूप में स्वीकार किया। इसी दिन की स्मृति में हर साल सुहागिन महिलाएं यह व्रत रखती हैं, ताकि वे भी अपने पति की लंबी उम्र और सुख-सौभाग्य की कामना कर सकें।

हरतालिका तीज व्रत की विधि

हरतालिका तीज व्रत को कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इसमें सुबह से लेकर अगले दिन तक निर्जला व्रत रखा जाता है। महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न और जल के रहकर व्रत का पालन करती हैं। सायंकाल में महिलाएं सोलह श्रृंगार करके मां गौरी, भगवान शिव, श्री गणेश और कार्तिकेय की पूजा करती हैं। पूजा के समय व्रतधारी महिलाएं सुहाग की सभी वस्तुएं, जैसे सिंदूर, बिंदी, चूड़ी आदि, मां पार्वती को अर्पित करती हैं।

हरतालिका तीज की पूजा सामग्री

हरतालिका तीज की पूजा के लिए विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है। यह पूजा पूरी निष्ठा और विधिपूर्वक की जाती है। पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है:

  1. भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमाएं: मिट्टी की प्रतिमाएं पूजन के लिए शुद्ध मानी जाती हैं।
  2. पीले रंग का वस्त्र: पीला रंग शुभता का प्रतीक है, जो विशेष रूप से इस दिन पहना जाता है।
  3. जनेऊ, सुपारी, बेलपत्र, कलश, अक्षत, दूर्वा, घी, दही और गंगाजल: ये सभी सामग्री पूजा के अनिवार्य भाग होते हैं।
  4. देवी पार्वती के श्रृंगार की सामग्री: इसमें सिंदूर, बिंदी, चूड़ी, कंघा, मेंहदी और कुमकुम शामिल होते हैं।

पूजा का मुहूर्त

हरतालिका तीज की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह और शाम दोनों समय के लिए बताया गया है। 6 सितंबर को सुबह का शुभ मुहूर्त 6:02 मिनट से शुरू होकर 8:33 मिनट तक रहेगा। शाम के समय में प्रदोष काल का विशेष महत्व है, जो 6:36 मिनट से शुरू होगा। इस समय भगवान शिव और पार्वती की पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है।

हरतालिका तीज पर विशेष योग

इस वर्ष हरतालिका तीज पर बहुत ही शुभ योग बन रहे हैं। पंचांग के अनुसार, इस दिन रवि योग, शुक्ल योग और चित्रा नक्षत्र का संयोग है। रवि योग का प्रारंभ 6 सितंबर को सुबह 9:25 मिनट पर होगा और इसका समापन 7 सितंबर को सुबह 6:02 मिनट पर होगा। इन शुभ योगों में की गई पूजा और व्रत का विशेष फल मिलता है।

व्रत का महत्व और परंपराएं

हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। इस दिन वे अपने पति की दीर्घायु, सुख और सौभाग्य की कामना के लिए यह व्रत करती हैं। कुछ स्थानों पर कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। हरतालिका तीज का व्रत निर्जला होता है, यानी इसमें महिलाएं पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण किए बिना व्रत करती हैं, इसलिए यह व्रत अत्यधिक कठिन माना जाता है।

हरतालिका तीज का धार्मिक आधार

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पति रूप में स्वीकार किया। उसी परंपरा को निभाते हुए हर साल यह व्रत सुहागिन महिलाएं करती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद मिलता है।

व्रत की तिथि और समय

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12:22 से शुरू होकर 6 सितंबर को दोपहर 3:01 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर, हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर को रखा जाएगा।

तीज के दौरान शुभकामनाएं

हरतालिका तीज पर महिलाएं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को शुभकामनाएं देती हैं। अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को रखकर मनचाहे वर की प्राप्ति की कामना करती हैं। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को तीज की बधाइयां देकर शुभकामनाएं प्रेषित करती हैं।

इस प्रकार, हरतालिका तीज का पर्व धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पर्व महिलाओं के अखंड सौभाग्य और समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

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