चुनावी रणनीतिकार और जन सुराज अभियान के प्रमुख प्रशांत किशोर ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की संभावित हार और इसके पीछे की वजहों पर विस्तार से चर्चा की। एक निजी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में उनसे सवाल किया गया कि क्या बीजेपी की हार का कारण पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच मतभेद हो सकते हैं। इस पर प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया कि वे इस स्थिति को केवल व्यक्तिगत मतभेद के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि इसे एक व्यापक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है।
2009 के लोकसभा चुनाव का उदाहरण
प्रशांत किशोर ने अपने तर्क को और स्पष्ट करने के लिए 2009 के लोकसभा चुनाव का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी के एक नए और उभरते हुए चेहरे थे, जबकि लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के वरिष्ठतम नेता और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। गुजरात में, जो कि मोदी जी का गृह राज्य था और जहां उनका प्रभाव काफी मजबूत माना जाता था, बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई।
प्रशांत किशोर ने कहा कि 2009 में, जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात में पार्टी का चुनाव अभियान संभाला था, तो बीजेपी को वहां उस तरह की सफलता नहीं मिली, जो उम्मीद की जा रही थी। उन्होंने यह सवाल उठाया कि अगर मोदी जी इतने मजबूत नेता के रूप में उभर रहे थे, तो उस समय पार्टी को गुजरात में लोकसभा चुनाव में अपेक्षित प्रदर्शन क्यों नहीं मिला।
मोदी-आडवाणी के बीच की स्थिति
उन्होंने इस बात को विस्तार से समझाते हुए कहा कि उस समय मोदी समर्थकों के मन में यह बात थी कि यदि आडवाणी जी प्रधानमंत्री बन जाते हैं, तो नरेंद्र मोदी को शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचने में काफी समय लग सकता है। इस कारण से, मोदी समर्थकों के बीच एक अनिश्चितता की भावना थी। यह विचार उन समर्थकों में गहराई से बैठा हुआ था, कि अगर आडवाणी जी चुनाव जीतते हैं, तो मोदी जी का राजनीतिक भविष्य धीमा हो सकता है।
प्रशांत किशोर ने इसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पहलू बताया, जो उस समय बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता था। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जरूरी नहीं था कि मोदी जी ने व्यक्तिगत रूप से कुछ किया हो, लेकिन समर्थकों के मन में यह धारणा जरूर बन गई थी।
उत्तर प्रदेश की स्थिति
उत्तर प्रदेश की मौजूदा स्थिति की तुलना करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि यह संभव है कि वहां भी कुछ ऐसी ही स्थितियां विकसित हुई हों। उन्होंने कहा कि राज्य में भी कई लोगों के बीच यह धारणा बन गई थी कि अगर नरेंद्र मोदी और अमित शाह भारी बहुमत से चुनाव जीतकर वापस आते हैं, तो इससे योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री पद पर पकड़ कमजोर हो सकती है।
यह चर्चा केवल राजनीतिक गलियारों तक सीमित नहीं रही, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी आम जनता के बीच यह मुद्दा खुलकर चर्चा का विषय बना रहा। अरविंद केजरीवाल ने भी उस समय इस विषय पर एक सटीक राजनीतिक बयान दिया था, जिसने इस बहस को और तीखा कर दिया।
जनमानस की प्रतिक्रिया
प्रशांत किशोर ने बताया कि जब वे बिहार में पदयात्रा कर रहे थे, तो लोगों ने उनसे यह सवाल पूछना शुरू कर दिया था कि अगर बीजेपी 400 से अधिक सीटें जीत जाती है, तो क्या योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा। यह सवाल इस बात का संकेत था कि समर्थकों और आम जनता के बीच इस तरह की बातें फैल चुकी थीं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह जरूरी नहीं है कि बीजेपी नेताओं ने व्यक्तिगत रूप से ऐसा कुछ कहा हो, लेकिन यह धारणा समर्थकों में बनी हुई थी कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बड़ी जीत योगी आदित्यनाथ के लिए एक चुनौती पैदा कर सकती है।
प्रशांत किशोर के इस विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में नेताओं के बीच आपसी समीकरण और समर्थकों के मन में उठने वाले सवाल चुनावी नतीजों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि बीजेपी की हार या किसी प्रकार की असफलता को केवल एक व्यक्ति या व्यक्तिगत मतभेद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे गहरे राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ में समझना चाहिए।