हरियाणा चुनाव के नतीजों ने पलटा पूरा खेल, एग्ज़िट पोल्स से उठा लोगों का भरोसा!

एग्ज़िट पोल्स और असल चुनाव परिणामों के बीच विरोधाभास

विभिन्न एग्ज़िट पोल्स में हरियाणा में कांग्रेस को बड़ी बढ़त मिलने का दावा किया गया था।

इंडिया टुडे-सी वोटर: कांग्रेस को 50 से 58 सीटें, जबकि बीजेपी को 20 से 28 सीटें मिलने का अनुमान था।

एक्सिस माई इंडिया: कांग्रेस को 53 से 65 सीटें और बीजेपी को 18 से 28 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी।

भास्कर रिपोर्टर्स पोल: कांग्रेस को 44 से 54 और बीजेपी को 19 से 29 सीटें मिलती दिख रही थीं।

रिपब्लिक मैट्रिज: कांग्रेस के लिए 55 से 62 सीटों का अनुमान था, जबकि बीजेपी के लिए 18 से 24 सीटें मिलनी संभावित थीं।

इन तमाम एग्ज़िट पोल्स में कांग्रेस को बहुमत मिलने का दावा किया गया, लेकिन जब असल नतीजे सामने आए तो स्थिति पूरी तरह से उलट थी। बीजेपी ने हरियाणा में बहुमत हासिल कर तीसरी बार सरकार बनाई। राज्य की 90 सीटों में से बीजेपी ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई। बहुमत का आंकड़ा 46 सीटों का है, जिसे बीजेपी ने पार कर लिया।

एग्ज़िट पोल्स की विश्वसनीयता पर सवाल

चुनावी नतीजों ने एक बार फिर से एग्ज़िट पोल्स की सटीकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालाँकि, जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम एग्ज़िट पोल्स के क़रीब थे, जहाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिला। यह पहली बार नहीं है जब एग्ज़िट पोल्स की भविष्यवाणियों और वास्तविक नतीजों में बड़ा अंतर देखने को मिला हो। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भी यही स्थिति देखी गई थी।

नेताओं की प्रतिक्रियाएँ

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह लगातार एग्ज़िट पोल्स पर सवाल उठाते रहे हैं। मतगणना वाले दिन भी उन्होंने इस विषय पर एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा कि एग्ज़िट पोल्स समय की बर्बादी हैं। कुछ दिन पहले भी उन्होंने इन पोल्स को ‘टाइम पास’ कहकर खारिज किया था।

पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी एग्ज़िट पोल्स की आलोचना करते हुए नतीजे के दिन सवाल उठाया था – “एग्ज़िट पोल्स से एग्ज़िट तक?”

एग्ज़िट पोल्स में चूक कहाँ हुई?

एग्ज़िट पोल्स में बार-बार होने वाली गलतियों पर विशेषज्ञों की राय ली गई। सीएसडीएस-लोकनीति के सह-निदेशक प्रोफ़ेसर संजय कुमार ने एग्ज़िट पोल्स की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कई पोल्स में उचित मेथोडोलॉजी का पालन नहीं किया जाता, जैसे वोटर से सवाल पूछने और उनके वोट शेयर का सही तरीके से आकलन करना।

यशवंत देशमुख, जो सी-वोटर के निदेशक हैं, ने भी कहा कि सीटों का सही अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है। उनके मुताबिक, वोट शेयर का सही ढंग से आकलन करना ज़रूरी होता है, लेकिन सीटों में तबदीली का विज्ञान जटिल होता है। भारत के फ़र्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट सिस्टम में सीटों का अनुमान अक्सर सटीक नहीं होता, जैसे हरियाणा में कांग्रेस और बीजेपी को समान वोट मिले, लेकिन कांग्रेस को अपेक्षित सीटें नहीं मिलीं।

क्या एग्ज़िट पोल्स पर भरोसा करना सही है?

एग्ज़िट पोल्स की विश्वसनीयता पर लगातार बहस होती रही है। यशवंत देशमुख का मानना है कि एग्ज़िट पोल्स बंद करने का कोई तर्क नहीं है, क्योंकि कुछ जगहों पर ये सही साबित होते हैं, जैसे जम्मू-कश्मीर में। उनका कहना है कि पोलिंग एजेंसियों को अपनी सीमाओं को स्पष्ट करना चाहिए, खासकर वोट शेयर और सीट शेयर में अंतर के बारे में।

एग्ज़िट पोल्स की प्रक्रिया

एग्ज़िट पोल्स का उद्देश्य मतदान के बाद चुनावी रुझानों का अनुमान लगाना होता है। पोलिंग बूथों के बाहर एजेंसियों द्वारा नियुक्त लोग वोट देकर बाहर आने वाले मतदाताओं से पूछते हैं कि उन्होंने किसे वोट दिया। इसके बाद इन आंकड़ों का विश्लेषण कर नतीजे का अनुमान लगाया जाता है। भारत में एग्ज़िट पोल्स को नियंत्रित करने के लिए चुनाव आयोग ने कई दिशानिर्देश बनाए हैं, ताकि चुनाव प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी न हो। एग्ज़िट पोल्स के परिणाम मतदान समाप्त होने के आधे घंटे बाद ही प्रकाशित किए जा सकते हैं।

एग्ज़िट पोल्स को लेकर मतभेद और चुनौतियाँ बनी रहती हैं। हालांकि, इन्हें पूरी तरह बंद करने की बजाय इनके तरीके में सुधार और पारदर्शिता ज़रूरी है, ताकि मतदाताओं को सही जानकारी मिल सके।

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