एक सुखमय जीवन जीने के लिए जरूरी नहीं कि हमारे पास लाखों करोड़ों की धन संपत्ति हो बल्कि मन में संतोष और दिल में प्रेम हो यही काफी है : अवश्य पढ़िए कवि विजय कुमार कोसले की हैरान कर आंखें खोलने वाली कविता शीर्षक “बन जाते धनवान”

बन जाते धनवान..

देख रहें नित सपने इंसा
बन जातें धनवान,
ढेरों हीरे मोती जवाहरात
देते उसे भगवान।

जिनके ऊंचे बंगले देख
जलते सभी इंसान,
लेकिन उनके राज से
रहते सब अंजान।

सदा यान में आते जाते
खर्चों से न डरते,
पिज्जा बर्गर डोसे से ही
पेट को अपने भरते।

खेती बाड़ी छोड़ किसान
फैक्ट्री उद्योग लगाते,
गांव से नाता तोड़ कर फिर
शहरों में बस जाते।

टेक्नोलॉजी में खोकर इंसा
सपने नये सजाते,
प्रेम दया हृदय से मिटाकर
सिर्फ स्वार्थ बढ़ाते।

सत्य धर्म मिट जाते दिल से
धैर्य कोई न धरते,
इक दूजे से लड़-लड़ कर
बिना मौत के मरते।

नींद चैन और सुख शांति को
लोग सदा तरसते,
लाखों इंसा तन्हा होकर
घूंट-घूंट के बसरते।

कवि/लेखक,
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, लेंध्रा छोटे
सारंगढ़, छत्तीसगढ़।

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