एक बार जरूर पढ़ें कवि विजय कुमार कोशले की कविता : दारू पीये के बाद

कविता शीर्षक::
दारू पीये के बाद

सुन ले संगी का होथे ग
दारू पीये के बाद,
चेत सुरता ल भुला के सबो
करथे धन बर्बाद।

मरहा मरहा गोठ ल सबके
फिर से जिंदा करथे,
बस अपन ल छोड़ के वोहा
सबके निंदा करथे।

अंडा मछरी कुकरी बोकरा
वो मंगवाके खाय,
घर में पैसा नइ पाय त
कर्जा ल बड़हाय।

दारू के नशा जीत जाय म
झगड़ा लड़ाई करे,
बड़े बड़े सियान मन ल
थोकुन भी नइ डरे।

नारी मन के कहना नी माने
अपन मन के रेंगथे,
लोग-लईका संग दाई-दादा
सबके जिनगी पेरथे।

कभू सड़क कभू नाली तीर
मात के सूते रईथे,
खोज खोज के घर वाला मन
भारी दुःख ल सईथे।

कतको मनखे दारू पी के
गाड़ी मोटर चलाथे,
यमलोक के टिकट कटा के
तड़प-तड़प मर जाथे।

लेखक/कवि,
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली,लेंध्रा छोटे
सारंगढ़,छत्तीसगढ़।
मो. न. -6267875476

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