संभल की शाही जामा मस्जिद: मंदिर के प्रमाणों की खोज, हिंसा, और न्यायिक जांच की गहराई
उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित शाही जामा मस्जिद इन दिनों धार्मिक और राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है। हाल ही में मस्जिद में किए गए एक सर्वेक्षण में मंदिर से जुड़े प्रमाण मिलने के दावों ने माहौल को और गर्मा दिया है। इस विवाद के चलते क्षेत्र में हिंसा भड़क गई और प्रशासन को कड़े कदम उठाने पड़े। योगी सरकार ने मामले की गहन जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया है।
मंदिर के प्रमाण: सर्वेक्षण में सामने आईं खास बातें
मस्जिद परिसर में हुए सर्वेक्षण के दौरान कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जो इसे एक प्राचीन हिंदू मंदिर का रूप बताते हैं। इनमें 50 से अधिक फूलों के नक्काशीदार निशान, सुदर्शन चक्र, और मंदिर से संबंधित अन्य स्थापत्य संरचनाएं शामिल हैं। ये अवशेष मंदिर स्थापत्य शैली से मेल खाते हैं।
इसके अलावा, मस्जिद परिसर में दो पुराने वट वृक्ष और एक प्राचीन कुआं पाया गया है। हिंदू धार्मिक परंपराओं में वट वृक्ष और कुएं का विशेष महत्व है, जिससे इन साक्ष्यों को और भी प्रामाणिक माना जा रहा है। विशेषज्ञों ने दावा किया है कि मस्जिद का निर्माण एक प्राचीन मंदिर की संरचना को बदलकर किया गया था। इस प्रक्रिया में मंदिर के आकार को प्लास्टर और रंग-रोगन से ढकने के प्रमाण भी मिले हैं।
24 नवंबर को भड़की हिंसा: कैसे बिगड़े हालात
24 नवंबर को मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में चार लोगों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए। हिंसा उस याचिका के बाद भड़की, जिसमें यह दावा किया गया था कि शाही जामा मस्जिद पहले हरिहर मंदिर के स्थान पर बनाई गई है।
हिंसा के बाद क्षेत्र में स्थिति तनावपूर्ण हो गई। दुकानों और बाजारों को बंद कर दिया गया, और लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया।
न्यायिक आयोग की जांच: सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विवाद और हिंसा की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया। इस आयोग की अध्यक्षता हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज देवेंद्र कुमार अरोड़ा कर रहे हैं। उनके साथ सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अमित मोहन प्रसाद और पूर्व आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार जैन भी सदस्य के रूप में शामिल हैं।
आयोग ने संभल का दौरा किया और घटनास्थल का निरीक्षण किया। जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक के साथ मिलकर आयोग ने हिंसा के कारणों का आकलन किया। स्थानीय निवासियों से बातचीत करके घटनाओं का विवरण जुटाया गया। मुरादाबाद के कमिश्नर आंजनेय कुमार सिंह ने बताया कि आयोग ने कई अहम जानकारियां एकत्रित की हैं, जिनसे इस मामले की गहराई से पड़ताल की जा सकेगी।
आयोग को दो महीने में पूरी करनी है जांच
योगी सरकार ने आयोग को दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। हालांकि, यदि आवश्यकता पड़ी, तो जांच की समय सीमा को बढ़ाने के लिए सरकार से मंजूरी ली जाएगी। आयोग का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि मस्जिद में मंदिर के प्रमाण कितने प्रामाणिक हैं और हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार है।
प्रशासन की सख्ती और भविष्य की योजना
घटना के बाद से प्रशासन ने इलाके में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था लागू की है। 10 दिसंबर तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनाए रखी गई है, जिसमें लोगों की आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। दोषियों की पहचान के लिए CCTV फुटेज, स्थानीय गवाहों के बयान, और फोरेंसिक सबूतों का सहारा लिया जा रहा है।
अधिकारियों का कहना है कि हिंसा में शामिल किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। साथ ही, क्षेत्र में शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
क्या है भविष्य का रास्ता?
इस मामले ने धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर व्यापक बहस छेड़ दी है। मस्जिद के भीतर मिले साक्ष्यों की पुष्टि और हिंसा के पीछे के कारणों का खुलासा ही इस विवाद को सुलझाने की कुंजी साबित हो सकता है।
यह घटना न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुकी है। न्यायिक जांच के नतीजे और प्रशासन की कार्रवाई इस विवाद का भविष्य तय करेंगे।