भारत का एकलौता – अनोखा शिव मंदिर जहां रखवाली करते हैं प्रजापति दक्ष ,हाथ में लाठी लिए बने हैं द्वारपाल

लेखक की तस्वीर दक्ष प्रजापति के प्रतिमा के साथ

भारत का एकलौता – अनोखा शिव मंदिर जहां रखवाली करते हैं प्रजापति दक्ष ,हाथ में लाठी लिए बने हैं द्वारपाल

राजा बलि करते हैं सिरदान तो वहीं मंदिर के गर्भगृह में नृत्य करते हैं भस्मासुर, योगियों को मिलती है दिव्य पुंज

योग,ध्यान, तपस्या व विभिन्न पौराणिक कथाओं को परिलक्षित करती प्रतिमाएं व विभिन्न पशु-पक्षियों,जलचर-नभचरों की मुर्तियां मन मोह लेती हैं

प्रस्तुति – न्यूज़लाइन नेटवर्क ,नई दिल्ली,भारत

आलेख – खेमेश्वर पुरी गोस्वामी (धार्मिक प्रवक्ता/खोजी पत्रकार)

भारतवर्ष की संस्कृति व सभ्यता की विश्व पटल पर एक अलग व अनूठा स्थान है, वहीं पुरातत्व, प्राचीन मंदिरों व विभिन्न देवी देवताओं की मुर्तियों तथा इनके पीछे जुड़े इतिहास व पौराणिक कथाओं की प्रमाणिकता की रोमांचकता अपने आप में अद्वितीय है।

ठीक इसी तरह एक मंदिर है छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में। जिस स्थान पर यह मंदिर स्थित है वह इतिहास में कभी संगम ग्राम के नाम से जाना जाता था,व इसके नाम के पीछे कारण था छत्तीसगढ़ की महत्वपूर्ण नदी शिवनाथ व सहायक नदी मनियारी का संगम होना।
पर हम बात करते हैं वर्तमान नाम का तो इस स्थल को ताला के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ होता है नगर जहां कभी राजाओं का राजवाड़ा हुआ करता था।
यह ताला नामक स्थान अमेरी कापा गांव का ही हिस्सा है जहां विश्व प्रसिद्ध व भारत की सबसे प्राचीन मंदिरों में से ही दो मंदिर देवरानी – जेठानी मंदिर के लिए जाना जाता है।

द्वार पर ऊपर की ओर


देवरानी जेठानी मंदिर शिव को समर्पित मंदिर है। जहां शिव सती विवाह, रूद्रशिव,कई पौराणिक पात्र देवी देवताओं,नदी देवियां, पशु-पक्षियां, भूत-पिशाच व शिवगणों के साथ ऊंची मुर्तियां संजोए रखने में देश भर में अपना अलग स्थान बनाए हुए है।

यहां कई मुर्तियां ऐसी है जो विश्व भर में अपना अलग व अनूठा होने का प्रमाण देती है।कई मुर्तियां देश के विभिन्न मंदिरों में पाए गए मुर्तियों की तरह ही तो कई अद्वितीय व अद्भुत रहस्यों से भरे हुए हैं, जिनमें अभी तक सिर्फ रूद्रशिव की मुर्ति को जाना जाता रहा है।

रूद्र शिव

पर हम आज बात करते हैं यहां सबसे विशेष जो मुर्ति है और सतयुग तथा शिवपुराण की एक वृहद व रोमांचित कर देने वाली कथा से जुड़ी है जो इस मंदिर को बनवाने वाले के शिव के प्रति प्रेम व भक्ति की समर्पण को पुरे विश्व में एक अनूठा पहचान देता है।

मंदिर में द्वारपाल के रूप में दक्ष प्रजापति

और वह अनुठा पहचान है कि, भगवान शिव के सबसे बड़े विरोध व शिव को शत्रु मानने वाले राजा दक्ष प्रजापति की मुर्ति को भगवान शिव के मंदिर में द्वारपाल बनाकर रखने को लेकर है।

दक्ष प्रजापति की प्रतिमा


जी हां यहां शिव पुराण में वर्णित राजा दक्ष प्रजापति को शिव मंदिर में द्वारपाल के रूप विराजित किया गया है जो शिव भक्ति को समर्पित मंदिर निर्माणकर्ता के भक्ति को परिभाषित करता है।

विश्व में व भारत में अनेकानेक शिव मंदिर है लेकिन ऐसा एक भी मंदिर नही जहां राजा दक्ष प्रजापति चौकीदारी करते हों मंदिर की रखवाली करते हों, कहीं न कहीं यह दक्ष के द्वारा सतयुग में शिव को अपमानित करने के कुत्सित प्रयास का बदला लेते हुए दक्ष को शिव के आगे उनका स्थान बताने का प्रयास किया गया है।
और इसकी प्रमाणिकता देती है राजा दक्ष प्रजापति की वह मुर्ति जो शिव पुराण के एक कथा के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति को शिव जी ने बकरे का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया था। और ताला के देवरानी शिव मंदिर में ठीक उसी रूप में बकरे के सिर रूपी राजा दक्ष प्रजापति को मंदिर की चौकीदारी सौंपी गई है। जिससे यह अद्वितीय व अद्भुत मंदिर पुरे देश भर में अपना एक अनूठा पहचान रखता है।

लेखक की तस्वीर दक्ष प्रजापति की प्रतिमा के साथ

यदि शिवभक्त इस विचित्र व अद्भुत तथा अद्वितीय मंदिर का दर्शन करना चाहते हैं तो एक बार ताला का देवरानी जेठानी मंदिर अवश्य आना चाहिए शिव के भक्ति के इस अनूठे उदाहरण रूपी मंदिर का दर्शन अवश्य करना चाहिए।

आइए जानते हैं कि भगवान शिव ने राजा दक्ष को क्यों लगाया था बकरे का सिर?

माता सती और उनके पिता राजा दक्ष प्रजापति को आप लोग जानते ही होंगे. इसके अलावा आप लोगों ने माता सती कथा भी सुनी होगी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव में क्रोध में आकर राजा दक्ष का सिर काटकर उन्हें बकरे का सिर लगा दिया था.

उत्तरखंड के हरिद्वार में कनखल गांव में दक्षेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. ये वहीं मंदिर है जहां राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को तो आमंत्रित किया गया था, परंतु भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया गया था. राजा दक्ष द्वारा शिव का अपमान माता सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ की अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे. जब ये बात महादेव को पता लगी तो उन्होंने गुस्से में दक्ष का सिर काट दिया था. देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवनदान दिया और उस पर बकरे का सिर लगा दिया.

इसके बाद जब राजा दक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी. तब भगवान शिव ने घोषणा की कि वे अपने हृदय से शत्रुता का भाव‌ त्याग करें व सेवा में लगे।

शायद इसी कथा से अभिप्रेरित होकर ताला के इस शिव मन्दिर में राजा दक्ष प्रजापति को चौकीदारी दी गई या यूं कहें कि द्वारपाल के रूप में सेवादार बना कर शिव सेवक के रूप में दर्शाया गया है।

रूद्र शिव व दक्ष प्रजापति

अब आपके मन में जरुर एक बार इस मंदिर में जाकर दर्शन लाभ लेने का विचार आ रहा होगा तो आइए जानते हैं ताला के इस मंदिर का पुरातत्विक इतिहास व सनातन धर्म में इस मंदिर की महत्ता क्या रही है।

ताला छत्तीसगढ़ राज्य का एक गाँव है। जहाँ तक मूर्तिकला पर्यटन और पुरातात्विक महत्व का सवाल है, ताला की मूर्तिकला कला सर्वोत्कृष्ट है। इसकी बेजोड़ सुंदरता कई पर्यटकों को छत्तीसगढ़ की ओर आकर्षित करती है।
ताला अपने दो मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जिन्हें देवरानी और जेठानी कहा जाता है। यह बिलासपुर से लगभग 29 किलोमीटर दक्षिण में है। भारतीय मूर्तिकला और कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण, ये मंदिर एक ही परिसर में स्थित हैं और एक-दूसरे के बगल में स्थित हैं, इनका नाम उनके आयामों के कारण पड़ा है। बड़े वाले को ग्रामीणों ने जेठानी (बड़ी भाभी) नाम दिया जबकि छोटे वाले को देवरानी या छोटी भाभी कहा जाने लगा। इस प्रकार, मंदिरों का नामकरण अपने आप में अनूठा है। शिव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध ये मंदिर मनियारी नदी के तट पर स्थित हैं।
पुरातत्वविदों के अनुसार जेठानी और देवरानी मंदिर का निर्माण पांचवीं शताब्दी में हुआ था।

1984 में सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित देवरानी मंदिर में वर्ष 1987-88 के दौरान की गई खुदाई में भगवान शिव की एक अत्यंत अनोखी मूर्ति सामने आई है।

आज जेठानी मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है और मंदिर की केवल उत्कृष्ट रूप से गढ़ी गई मूर्तियाँ ही बची हैं। देवरानी मंदिर बेहतर तरीके से संरक्षित है, भारत की समृद्ध धार्मिक परंपराओं के उदाहरण के रूप में सीधा और ऊँचा खड़ा है। इन मंदिरों में हिंदू देवताओं के विभिन्न देवी-देवताओं, अर्ध देवताओं, जानवरों, पौराणिक आकृतियों, पुष्प चित्रण और विभिन्न ज्यामितीय और गैर ज्यामितीय रूपांकनों सहित विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ हैं।

जेठानी मंदिर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बना है। हालांकि, आंशिक रूप से उजागर होने के बावजूद, मंदिर की भूतल योजना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। जेठानी मंदिर के आधार पर प्रवेश द्वार पर एक सुंदर चंद्रशिला है। मंदिर में गर्भगृह, अर्ध मंडप और अंतराल शामिल हैं। इसका प्रवेश द्वार तीन तरफ से है, यानी दक्षिण, पूर्व और पश्चिम। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार तक सीढ़ियों की एक विस्तृत उड़ान के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। मंदिर का निर्माण परतदार लाल-बलुआ पत्थर से किया गया है।

मंदिर की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर सजावटी खंभे हैं। भगवान शिव के यक्षगान और भारवाहक गणों की आकृतियाँ उन पर उकेरी गई हैं। खंभे के आधार भाग को कुंभों से डिज़ाइन किया गया है जबकि स्तंभ के शीर्ष पर अमलका एक कलश पर टिका हुआ है। विशाल हाथी की मूर्तियाँ आंतरिक कक्षों के किनारों की रक्षा करती हैं, जो रहस्यमय माहौल में और अधिक राजसीपन जोड़ती हैं।

देवरानी मंदिर पूर्व दिशा की ओर मुख किए हुए है, मंदिर में कोई महत्वपूर्ण शिलालेख नहीं है।पहले चरण पर उत्कीर्ण हैं और द्वारपाल की छवि ।

देवरानी मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, मुखमंडप और खुला स्थान है, जहां सीढ़ियों के माध्यम से पहुंचा जा सकता है तथा एक बड़ी चंद्र शिला है।

मुखमंडप में एक सुंदर द्वार है, जिस पर नदी देवी की छवि बनी हुई है। मंदिर के अंदर जाने वाले द्वार में पाँच जटिल पैटर्न वाली आयताकार सीमाएँ हैं। आंतरिक कक्ष के दरवाजों पर कलात्मक रूप से फूलदार लताएँ उकेरी गई हैं। यहाँ शिव और पार्वती की कई मूर्तियाँ हैं जो कई भागों में टूटी हुई हैं। गर्भगृह का हिस्सा बहुत क्षतिग्रस्त है।

इस परिसर में रुद्र शिव की एक विशाल मूर्ति है। यह खड़ी मुद्रा में 2.70 मीटर ऊंची एक अखंड विशाल मूर्ति है। इसमें असामान्य प्रतीकात्मक विशेषताएं हैं जो शरीर के अंगों के रूप में मानव और शेर के सिर के साथ-साथ विभिन्न जानवरों को दर्शाती हैं। एक पगड़ी सांपों की जोड़ी से बनी है। मूर्ति को सांप की आकृति से सजाया गया है। अन्य जानवरों में मोर को कानों की सजावट के रूप में दर्शाया गया है। भौंहें और नाक छिपकलियों से बनी हैं। ठोड़ी केकड़े के आकार की है। दोनों कंधों पर मगरमच्छों का चित्रण है। शरीर के विभिन्न हिस्सों में सात देव मानव सिर उकेरे गए हैं। ऊपर वर्णित असामान्य चित्रण के कारण, इस मूर्ति की पहचान अभी भी विद्वानों के बीच विवाद का विषय है।

इस मुर्ति के बारे आप इतना तो जानते हैं या कभी आए होंगे तो मंदिर प्रांगण में लगे पुरातत्व विभाग द्वारा प्रदर्शित इतिहास जरूर पढ़े होंगे पर इनका वर्णन करने वाले पुरातत्वविदों या विभागीय अधिकारियों से कुछ हिस्सा छुट गया है जो आज आपको हम बताने वाले हैं।

जिनमें हैं मुर्ति में बना शिश्न का स्वरूप जो लम्बे शिर वाले बाघ के रूप में है व वहीं अण्डाशय दो कछुओं के रूप में दिखाई देता है तो वहीं मुर्ति में बने मानवीय मुछ मानवीय न होकर दो मीन, अर्थात दो मछलियों से मूछ बनाई गई हैं।

दो मछलियों से बनी मूंछ

वहीं भुजा में बाल हाथी का सुंड का आकार है तो मकर की आंखें शंख के रूप में बनाया गया है,तो वहीं जटाएं विभिन्न सर्प जाल सा प्रतीत होता है।

उक्त रूद्रशिव की मुर्ति भले ही पुरातत्व वेत्ताओं में विवादों का विषय हो परंतु छत्तीसगढ़ी भाषा में जस गीत में वर्षों से उक्त मुर्ति की विशेषता से जुड़ी शिव जी भक्ति गीत गाई जाती है जिसमें नाग का माला बिच्छू का कुण्डल, पिरपिटिया सर्प का जटा सहित विभिन्न पशु-पक्षियों व जन्तुओं को शिव के आभूषण के रूप में वर्णित किया गया है जिससे यह मुर्ति छत्तीसगढ़ में शिव जी का ही माना जाता है।

वहीं एक अन्य गणेश जी की मुर्ति के बारे में शिव पुराण कथा

हाथ में दांत लिए गणेश जी

शिवपुराण का ही एक कथा जिसमें भगवान परशुराम द्वारा गणेश जी का एक दांत फरसे से अलग कर दिया जाता है जिसे गणेश जी अपने हाथ में पकड़े हुए हैं ऐसा एक मुर्ति में दिखाया गया है,ठीक यहीं एक अन्य मुर्ति में परशुराम जी की भी प्रतिमा उकेरी गई है।

पशु-पक्षियों के यौन क्रीड़ा से संबंधित मुर्तियां भी यत्र तत्र बिखरे हुए हैं।

पशु यौन क्रीड़ा

यह भी जानें

ताला मंदिर प्रांगण में कई ऐसी मुर्तियां व चित्र उकेरे गए हैं जिनका सीधा संबंध पौराणिक कथाओं से है, इसमें विभिन्न मुद्राओं में योग करते हुए चित्र तो वहीं दूसरी ओर तपस्या की साधना से अमरत्व के समान दिव्य पुंज प्राप्त करते हुए योगियों की मुर्तियां भी दिखाई देती है जो अपने आप में अद्भुत रहस्यों से परिपूर्ण है व कहीं न कहीं यहां के शिव मंदिर पूर्ण रूप से शिवपुराण कथा के अनुसार ही बनाई गई परिलक्षित होती है।

योग साधना दिव्य पुंज सहित

तो वहीं एक खण्डित मुर्ति इस तरह दिखाई देती है मानो राजा बली वामनावतार को अपना सिर दान कर रहे हैं और भगवान विष्णु वामनावतार में उनके सिर पर पैर रखे हुए हैं,बलि के मुर्ति के सिर के बराबर पूरा एक पैर चित्रित किया गया है।

राजा बलि के सिर पर बावनावतार का पैर

तो एक ऐसी भी मुर्ति खड़ी हुई है जो श्रीमद्भागवत कथा के अनुसार नृसिंह अवतार को परिभाषित करते हुए विद्यमान है।

नृसिंह अवतार जैसी प्रतिमा

एक अन्य प्राचीन मुर्ति जो कि शिवलिंग को समर्पित है जिसमें शिवलिंग महादेव के सिर पर मानव मुख आकृति उकेरी गई है।

अनोखा शिवलिंग

ताला एक ऐसी भूमि है, जो अतीत की खूबसूरत मूर्तियों से समृद्ध है, जो रहस्य में दबी हुई हैं। धरती माता के गर्भ से उत्खनन करके, ताला में ऐसी कई प्रसिद्ध मूर्तियाँ संरक्षित की गई हैं। उनमें से एक है श्री चतुर्भुज कार्तिकेय की विश्व प्रसिद्ध मूर्ति, जो मयूरासन की मुद्रा में तारकासुर का वध करते हैं। भगवान गणेश की एक शानदार ढंग से गढ़ी गई मूर्ति, जो शांत चंद्रमा की ओर निडर होकर आकाश में उड़ रही है, भी यहाँ देखी जा सकती है। द्विमुखी भगवान गणेश अपने दाँत पकड़े हुए हैं और अपार शक्ति और गर्व का अनुभव कर रहे हैं। अर्धनारीश्वर, उमा-महेश, नागपुरुष और अन्य यक्ष मूर्तियों की मूर्तियाँ एक सुंदर, ऐतिहासिक रूप से समृद्ध भूमि की महान किंवदंतियों और कहानियों को बताती हैं। शालभंजिका की एक दुर्लभ पत्थर की मूर्ति और कई अन्य मूर्तियाँ पूरे मंदिर में बिखरी हुई हैं।

मंदिर के गर्भगृह में नृत्य करते हुए भस्मासुर,तो वहीं विभिन्न शिलाखंडों में शिव सती विवाह के चित्र उकेरे हुए हैं।


वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न जटिल मूर्तियों पर लंबे समय तक विचार किया है और फिर भी, उनकी उत्पत्ति रहस्य में डूबी हुई लगती है।


अक्सर मेकला के पांडुवंशियों के अभिलेखों में उल्लिखित संगमग्राम के रूप में पहचाने जाने वाले ताला शिवनाथ और मनियारी नदी के संगम पर स्थित है। देवरानी-जेठानी मंदिरों के लिए सबसे प्रसिद्ध, ताला की खोज जेडी वेल्गर ने की थी, जो 1873-74 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम के सहायक थे। इतिहासकारों ने दावा किया है कि ताला गांव 7-8वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है।



ताला के पास स्थित सरगांव गांव है जो धूम नाथ मंदिर का दावा करता है। इस मंदिर में भगवान किरारी के शिव स्मारक हैं पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार जटिल रूप से तैयार की गई पत्थर की नक्काशी को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। गांव में देवरानी जेठानी मंदिर परिसर का एक मंदिर परिसर है जो आधे खंडहर अवस्था में है। ऐसा माना जाता है कि इसे शरभपुरिया राजवंश के शासक राजप्रसाद की दो रानियों ने बनवाया था।

पुरातत्वविदों का मानना है कि यह 5वीं या 6वीं शताब्दी का है। देवरानी मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना है जो मुख्य रूप से गुप्तकालीन पुरातात्विक शैली का है। जबकि जेठानी मंदिर कुषाण शैली का है। हालाँकि, प्राप्त विभिन्न उत्खनन खंडहर और मूर्तिकला-शैली हमें बताती है कि ताला में शासन करने वाले विभिन्न राजवंश भगवान शिव के भक्त और शिव धर्म के प्रचारक थे। शायद इसीलिए आज भी शिव भक्त विभिन्न अनुष्ठान करने और पवित्र महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने के लिए यहाँ मंदिरों में आते हैं। भगवान शिव के भक्त यहाँ अपनी प्रार्थना करते हैं और अन्य उत्खनन स्थलों को देखना भी पसंद करते हैं।

ताला (बिलासपुर पहुंचने का मार्ग)

सड़क मार्ग द्वारा : बिलासपुर से लगभग 50 k.m. की दूरी पर स्थित होने के कारण यहां पहुंचना आसान है, आप अपने साधन मोटर गाड़ी अथवा टैक्सी या फिर नियमित बसो के माध्यम से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। बिलासपुर से रायपुर नेशनल हाईवे पर सरगांव से पहले व रायपुर से बिलासपुर की ओर सरगांव के बाद भोजपुरी मोड़ पर पुर्व की ओर दगोरी जाने वाले रास्ते पर अमेरीकापा गांव में स्थित है।

रेल मार्ग द्वारा : बिलासपुर रेलवे स्टेशन से 30 किमी की दूरी पर बॉम्बे हावड़ा मुख्य लाइन से जुड़ा हुआ है अतः आप बिलासपुर से ट्रैन पकड़ कर यह आसानी से पहुंच सकते है।

हवाई मार्ग द्वारा : अगर आप छत्तीसगढ़ राज्य से बाहर से यहां आना चाहें तो रायपुर  हवाई अड्डे से महज 85 किमी दूरी पर है जो निकटतम हवाई अड्डा भोपाल,हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली, नागपुर,चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु एवं विशाखापत्तनम  से जुड़ा हुआ है। साथ ही  बिलासपुर चकरभाठा में स्थित हवाई अड्डे से आप यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

आलेख में संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा प्रकाशित किताबों व शासकीय वेबसाइट का भी सहयोग लिया गया है बाकी विचार लेखक/पत्रकार – खेमेश्वर पुरी गोस्वामी के स्वयं के हैं व सर्वाधिकार सुरक्षित है।

© खेमेश्वर पुरी गोस्वामी ® डिंडोरी – मुंगेली, छत्तीसगढ़ ८१२००३२८३४

Leave a Reply

error: Content is protected !!