मोहन लववंशी, न्यूज़लाईन नेटवर्क, सारंगपुर/ राजगढ :
राजगढ़ जिले के सारंगपुर निप्र सुल्तानिया गांव में भी तमिलनाडु के जल्लिकट की तर्ज पर गौ क्रीड़ा जिसे छोड़ा कहते हे ग्रामीण पुरातन परंपरा को आज भी बखूबी निभा रहें।जिसमे ग्रामीण लकडी के डंडे में तुलसी की प्रजाति के पोधो के गट्ठर पाड़े के ताजे चमड़े में रस्सी के सहारे बांधकर गाय के पास लेकर जाते है जिससे गाय उसमे तेजी से पूरे जोश से उसमे मारती है यह क्रिया बार बार दोहराई जाती है ग्रामीण बताते हैं कि चमड़ा अपवित्र होता हे जब इसे गाय के पास लेकर जाते है तो वही उसे सींग मारकर दूर करती है यह छोड़ा उत्सव भगवान देवनारायण के द्वारा खेल शुरू किया गया था जिसे आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी धार्मिक सद्भावना और भाई चारे के निभाते आ रहे हे यह खेल जोखिम भरा हे लेकिन ग्रामीण इसे आस्था और नगर की सुख शांति समृद्धि का प्रतीक मानते हे कई बार लोगो को गायों ने रौंद दिया चोटिल हो गए लेकिन यह खेल परंपरा अनुसार चला आ रहा हे।
गो पालन को मिलता है बढ़ावा ,हर घर में इस दिन के लिए शौक से पालते पूजते हे गाय
ग्रामीण पटेल देवेंद्र नागर,जगदीश धाकड़ ,बाबूलाल नागर, गिरवर नागर ,सुनील नागर ने बताया की यह खेल देवनारायण भगवान ने अपनी गायों को खिलाया था जिसे आज हम भी हर समाज ,वर्ग ,धर्म ,संप्रदाय के लोग भाईचारे के साथ निभा रहे हे अमावस्या रात में छोड़ा जिसमे दोना,चमड़ा बंधा होता हे इसे ग्राम देवता के सानिध्य में पूजनंकर शुद्ध किया जाता हे और पड़वा। की सुबह से शाम 4 बजे तक नगर में निकालते हे जिसमे गो पालक अपनी अपनी गायों को छौड़ा खिलाते हे ग्रामीणों के अनुसार भले ही उनकी गाय दूध न देती हो लेकिन इस दिन के लिए पूरे सालभर पालते हे ,गाय के सिंग से गिरा दोना बच्चे की नजर टोने,टोटके ,में काम आता हे।इसे देखने जिले सहित क्षेत्र से हजारों लोग आते हे आस्था और भाई चारे का यह खेल बिना किसी मजहब और बिना किसी धर्म भेदभाव के ग्रामीण निभा रहे हे।