कविता –
शीर्षक – “पैसा बोलता है”
👉~हर जगह बस अमीरों का
राजपाठ बोलबाला है,
कानून भी अब पैसा वालों का
बन गया रखवाला है।
~ यहां पैसा वाला कहा रहें हैं
सतजन और सदाचारी,
लेकिन भीतर दिल में रहते उनके
अधर्मी और अत्याचारी।
~ पैसा वाला को देख सिपाही
आते जाते करे सलाम
ईमान धर्म भूल सब कसमें वादे
खा रहे लाखों रुपए हराम।
~भगवान घर में पुजा के लिए
कैसे-कैसे होते खोट,
सबसे पहले यहां पुजा करता
देकर पैसा वाला नोट।
~ आम जनता के मन में कैसे
लालच भर देता है नोट,
कितना बुरा क्यों न हो नेता
पैसा वाला ही पाते वोट।
~लाखों बुराई से हाथ रंग कर भी
होते नहीं उनके अपमान,
उल्टा ज्यादा हर जगह जगह में
पाते हैं आदर मान सम्मान।
~ बना हुआ है हर मुकामों में
पैसा वाला ही प्रधान,
कर देता है जल्द कैसे पैसा
हर समस्या का समाधान।
~आज हर जगह पर देखो पैसा
चीख चीखकर बोल रहा है,
जो नेता-मंत्री को खिलाते पैसा
किस्मत उनकी खोल रहा है।
कवि/लेखक
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, लेन्ध्रा छोटे
सारंगढ़, छत्तीसगढ़।
मो.न.-6267875476