Credit: Durgesh Kumar, Ara, Bihar :
दुर्गेश कुमार कुशवाहा (आरा)फेसबुक
पर प्रायः सभी ताजे खबरों पर
अपनी बातें, बेवाक टिप्प्णी प्रस्तुत
करते हैं। नीचे है उनकी एक लेख
नीतीश कुमार की नीतियों में लोहिया भी हैं, वीपी सिंह भी हैं, अंबेडकर भी हैं, शाहूजी भी हैं, फुले भी हैं।
अपनी उदारता के कारण नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड बिहार के अति पिछड़े, महादलितों, पिछड़े, महिलाओं, न्यायिक चरित्र वाले अगड़ों और अल्पसंख्यकों की पसंदीदा पार्टी है। नीतीश कुमार की पार्टी में न तो किसी का दमन होता है न किसी के साथ पक्षपात, “सबका साथ-सबका विकास” नारे के असल हकदार मोदी नहीं नीतिश हैं।
बिहार की राजनीति को बारीक से देखेंगे तो नीतीश की पॉलिटिक्स में बिजेंद्र यादव का भी सम्मान है, जीतन राम मांझी का भी उत्थान है, लल्लन सिंह का भी मान है। किसी को कभी भी यह मान न तो बीजेपी में मिलेगा न राजद में। नीतीश की पॉलिटिक्स में अतिरेकी नहीं है, नतीजतन स्वाभिमान के साथ राजनीति करने वाले को जेडीयू बहुत भाता है। जो साथ छोड़ दिए उनका भी वापस लौट आने पर सम्मान होता है। दूसरे दलों से मोह भंग होने वाले नेताओं की स्वाभाविक पार्टी जेडीयू होती है। जिले, प्रमंडल स्तर के स्वतंत्र व्यक्तिव वाले नेताओं की जितनी लंबी कतार जेडीयू में हैं, उतनी राजद और बिहार बीजेपी में नहीं है।
यह जरूर है कि जनता दल यू के पास चिलचिलाती धूप में खड़े होने वाले राजद जैसे हार्डकोर समर्थक नहीं है, न ही रैलियों में भीड़ बटोरने के लिए भाजपा की तरह धन है। लेकिन लोकतंत्र में उस आदमी का भी उतना ही महत्व है जिसे अपनी रोजमर्रा के कामों और सामाजिक परिस्थितियों की वजह से राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय नहीं होते हैं; नीतीश के पास वैसे ही वोटर हैं। ऐसे वोटर और समर्थक बड़ी संख्या में हैं… जनता दल यू की अगली 10 सालों की राजनीति में ये संबल देते रहेंगे।
नीतीश के वोटर उनसे बहुत प्यार और सम्मान करते हैं। उनके लिए नीतीश स्वाभिमान हैं, गुरूर हैं… यदि नीतीश का मान घटा, उनके प्रति कोई साजिश हुआ तो उनके वोटरों उनके प्रति और तेजी से जुड़ जाते हैं। किसी का मोह भंग हुआ तो भी वह फिर से उनके साथ जुड़ जाता है।
कई मन में सवाल चल रहा होगा कि लोकसभा में नीतीश कुमार का परफॉर्मेंस बीजेपी से बेहतर कैसे संभव हुआ। यह सवाल इसलिए भी वाजिब है क्योंकि जेडीयू बीजेपी के संगठन के मुकाबले फिसड्डी है। असल में यह परिणाम और बेहतर होता। जेडीयू को जहानाबाद और कटिहार में हार की वजह बीजेपी का परंपरागत वोटरों का वोट नहीं मिला। असल में पिछले 4 सालों से नीतीश कुमार को “Witch Hunting” की तर्ज पर निशाना बनाया जा रहा है। यह एक टर्म है जिसका मतलब यह हुआ है कि यदि आपसे जुड़ा कोई मित्र आपसे अधिक कुटिल हो, आप उसे जीत नहीं सकते हैं तो आपके ही कई मित्र मिल कर साथ रहते हुए भी नकारात्मक, आक्रामक तरीके से निशाना बनाइए, अपमानजनक और अनादरपूर्ण व्यवहार कीजिए। कोई साथ रह के तो कोई पीछे से तो कोई सामने से आपको निशाना बनाता है। 18 साल से सत्ता में काबिज नीतीश कुमार के खिलाफ़ हताश होकर उनके “पुराने साथियों” का कुनबा इसी तर्ज पर उन पर हमले करता रहा है। प्रतिउत्तर देने के लिए नीतीश कुमार ने इसका उपाय नहीं किए। नतीजा यह हुआ कि “कल का प्रधानमंत्री”, “विकास पुरुष” और “सुशासन बाबू” कहे जाने वाले नीतीश कुमार को सोशल मीडिया में उसी तरह से मजाक उड़ाया गया जैसे कभी बीजेपी द्वारा राहुल गांधी का उड़ाया गया था। सामंती मानसिकता वाले लोगों ने चौक चौराहे पर उसी तरह से अपमानजनक शब्द बोले जैसा कभी कर्पूरी ठाकुर को बोला गया था। किसी को लग रहा हो कि यह सब हो रहा है और कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो भूल जाइए, इस भ्रम को तोड़िए। नीतीश कुमार का वोटर यह सब देख रहा है…प्रतिक्रिया दे रहा है। आंशिक तौर पर ही सही बिहार बीजेपी को आंच झेलना पड़ा है। लाखों अंतर से जीतने वाली कई सीट कुछ हजार से जीती है। बिहार के चुनावी इतिहास में यह पहली घटना है जब पिछड़े वर्ग के कुछ वोटरों ने टैक्टिकल वोटिंग किया है। 2020 में गठबंधन की राजनीति में भी “Witch Hunting” का फार्मूला अपनाना बीजेपी के लिए अगले कई चुनाव तक भारी पड़ने वाले हैं। राजनीति के जो तौर तरीके आप अपनाते हैं, वो वापस लौट कर आप पर भी लागू होता है।
इसी नीति से जेडीयू को खत्म करने की कोशिशें 2020 से ही चल रही है। अर्थात अफवाह फैला हुआ, चारों तरफ से घेर कर शिकार करने की नीति अपनाकर, कभी नीतीश कुमार को राज्यपाल तो कभी उपराष्ट्रपति तो कभी केंद्रीय मंत्री बनाने की अफवाह फैला कर उन्हें आम जनता की नजरों में कमजोर और कृपापात्र साबित करने की कोशिश लगातार जारी है।
कभी कोई गोदी मीडिया का एंकर नीतीश को बैगेज बता रहा तो कभी कोई बीजेपी का छुटभैया उन्हें अनाप-शनाप बोलता रहता है। कभी प्रशांत किशोर से तो कभी जूनियर कद के बदतमीज नेताओं से नीतीश कुमार पर आपत्तिजनक जुबानी हमले करवाया गया। कभी उनकी उम्र का तो कभी उनके हावभाव का मजाक उड़ाया गया।
इस लोकसभा चुनाव में उन्हें एनडीए के पोस्टरों में कद के मुताबिक जगह नहीं दी गई। कहीं चुनावी सभा में उनके सम्मान में भाजपा प्रत्याशी खड़े नहीं मिले तो कहीं भीड़ जुटाने की तैयारी नहीं की गई। नरेंद्र मोदी के रोड शो में में उनके हाथों में कमल चिन्ह की प्रतिकृति पकड़ा दी गई, नीतीश जी असहज दिखे और उनका वोटर ही नहीं पिछड़े वर्ग के तमाम लोगों को दुख पहुंचा। संभव है कि रोज-रोज की क्रियाओं पर कोई तत्काल प्रतिक्रिया नहीं हो, लेकिन कभी तो होगा!
2024 के नतीजों से अब साबित हो गया है कि सामंती सोच वाले समूह, मीडिया और पीके एक ही मां की कोख से निकले हैं, जिनका निशाना नीतीश हैं। नीतीश कुमार के पास आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर किंतु एक मजबूत समूह है जिसकी संख्या 50 से 60 प्रतिशत है। इसको सहेजने के लिए कुशल संगठन की जरूरत है। जिस दिन यह हो गया बिहार में जनता दल यू सबसे बड़ी पार्टी होगी। बिहार के लिए नीतीश का कद वहीं होगा जो ओडिशा के लिए बीजू पटनायक, देश के लिए नेहरू का है। नीतीश का व्यक्तिव, उनके कामों को चमक अगले तीन दशक तक इतनी रहेगी कि जनता दल यू प्रासंगिक रहेगा।
जेडीयू समर्थक यह भी याद रखें कि,
नीतीश जी अपना जीवन जी चुके हैं। लेकिन उनके नहीं होने का मतलब बिहार की सड़कों का मेंटनेंस नहीं होगा, बिजली की आपूर्ति बाधित होगी, जातीय भेदभाव बढ़ेगा, वोट के लोभ में जनपक्षीय कड़े फैसले नहीं होंगे। लॉ एंड आर्डर बदहाल होगा। स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, कर्पूरी छात्रावास, आंबेडकर छात्रावास की व्यवस्था बर्बादी की ओर बढ़ेगी। अति पिछड़े, महादलितों के अधिकार छीन जाएंगे। नीतीश पर जब राजनीतिक हमले होते हैं तो आपका चुप रहना खुद पर हमला सहने जैसा है। नीतीश को उनकी जाति ने नेता नहीं बनाया, उनको नेता बनाने वाले जेडीयू का आधार वर्ग है।
आप कभी साथ दीजिए या नहीं लेकिन मुश्किल परिस्थिति में जरूर साथ दीजिए क्योंकि नीतीश इस दौर के आखिरी राजनेता हैं जिनके तनख्वाह के पैसे का कुछ हिस्सा भी सरकारी कार्यालयों में बनने वाले चाय के रुप में चला जाता है। कल्याणबीघा अपने घर जाते तो अपनी निजी कार से, दिल्ली जाते हैं तो अपने खर्चे से। ना धन अर्जित किया, न परिवारवाद, पूरे बिहार को अपना परिवार माना।
लोफर, लंपट, गुंडों के नेतागिरी के दौर में नीतीश की अहमियत नहीं समझने वाले लोग ध्यान रखें कि यदि आप नीतीश कुमार का सम्मान नहीं कर सकते हैं तो आप स्वयं भी सम्मान के लायक नहीं हैं। अंत में आप पूछेंगे कि अभी नीतीश कुमार को क्या करना चाहिए। मेरा जवाब होगा “नीतीश कुमार पर भरोसा रखिए, उनका मस्तिष्क हम सब से बड़ा है”।
वैसी मेरी राय है कि मौका मिले तो करैत सांप को मार देना चाहिए। धोखेबाजों को धोखे से भी मारना गुनाह नहीं धर्म है।
Edited Note:
“Witch Hunting” : मीडिया ट्रायल के संबंध में इस्तेमाल होने वाला टर्म है।
“Bitch Hunting”: किसी स्त्री को अपमानित, पीटने जैसा के लिए इस्तेमाल होने वाला टर्म है।
नीतीश कुमार को ख़त्म करने के लिए यहां दोनों तरीके का प्रयोग हुआ है। पाठक पोस्ट को इस नजरिए से देखें।
दुर्गेश कुमार के कलम से