आस्था का उन्माद !! या उन्माद की आस्था?

लेख-गाजियाबाद ब्यूरो-चीफ/सागर।

इस धरती का कोई भी धर्म हिंसा की ईजाजत नहीं देता, ना ही हिंसा के लिए धरती के किसी धर्म में कोई जगहा है और एक बात, कि किसी का दिल ड दुखा कर किसी को चोट या किसी के तरहा की हानि पहुंचा कर हम कभी उस ईश्वर, खुदा, या वाहेगुरु के भक्त ड या अनुयायी नहीं बन सकते, मगर यहाँ विडम्बना ये है कि हर धर्म के ने ऊपर कटाक्ष करना हर धर्म का अपने- अपने नजरिये से आंकलन व विश्लेषण करना और सिर्फ इतना ही नहीं, फिर उसमे र कमियां व खामिया निकालना ये हमारी बां प्रकृक्ति बन गई है, आदत बन गई है और शायद यहीं से एक ना खत्म होने वाली बहस और एक शीत युद्ध जैसी स्थिति बन जाती है। शीत युद्ध से मेरा मतलब यहाँ ये है कि एक-दूसरे के प्रति इतनी नफरत और घृणा पैदा हो जाती है कि जब भी किसी एक समुदाय का मौका लगता है, वह दूसरे समुदाय पर धावा बोल देता है और अधिकतर घटनाओं में तो जान- माल की हानि हो जाती है।
और हाँ, ये उत्पात या मानवता को शर्मसार करने वाले कृत्य किसी एक समुदाय के द्वारा ही नहीं किये जाते, हम सभी वर्गों की बात कर रहे हैं अभी ताजा मामला मुजफ्फरनगर का सामने आया है हाल ही मे प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा एक विडिओ सोशल मिडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसमे हमारे कुछ कॉंवड़िये भाई एक होटल, ढाबे पर इतना उत्पात मचा रहे हैं इतनी तोड़-फोड़ कर रहे हैं कि किसी को नहीं बख्श रहे जो भी सामने आया उसको मरना पीटना, कुर्सियां व सामान तोडना, होटल मालिक तक को नहीं छोड़ा। पुलिसकर्मियों तक को दौड़ा-दौड़ा कर मारा-पीटा।
क्या कोई धर्म ऐसी किसी हिंसा से खुश होगा?? या कोई ईश्वर, प्रकृक्ति, भगवान ऐसे किसी कृत्य से खुश होंगे?? शायद नहीं??
जानकारी के अनुसार किसी गाडी वाले की गाडी किसी कॉंवड़िये की काँवड से टच हो गई थी
इस बात को लेकर तमाम काँवड़िये इतने उत्तेजित व आक्रोषित हो गए कि बहुत बड़ा उन्माद फैल गया हम ये नहीं कहते कि उक्त गाड़ी वाले की गलती नहीं थी, या हमारे काँवड़िये भाई ही गलत हैं।
मगर उक्त घटना से हमारे प्रति समाज के मन में कहीं ना कहीं नकारात्मक छवि बन रही है और सारी बात छोड़ो मेरे परम् आदरणीय बन्धुओ, आपके अन्दर जो परमात्मा जो ईश्वर वास करता है उसको क्या जवाब दोगे?? क्या वो परमपिता आपके ऐसे कृत्य से तनिक भी खुश होगा?? नहीं, कभी नहीं।
इस घटना से भी बड़ी दुख की बात ये है कि ये घटनाएँ वर्ष प्रति वर्ष, हर वर्ष बढ़ती ही जा रही हैं, कृपया अपने मन को शांत करिये, शांत रखिये आप उस परमपिता के प्रति श्रद्धा का भाव लेकर ये पुण्य-कार्य करने के लिए निकले हैं, ना ही कि किसी पर अपना रौब कायम करने के लिए ना ही कि किसी को दबंगई दिखाने के लिए, ना ही किसी को नुक्सान पहुंचाने के लिए। ऐसे कार्यों से क्या ईश्वर हमारी काँवड़, हमारी इस धर्म-यात्रा को स्वीकार करेगा??
मेरा आपसे निवेदन है कि अपने धर्म को यूँ बदनाम ना करें एक समय था जब कांवड़ लाने वाले को लोग धर्म का अनुयायी और भोले का रूप मानते थे आज कुछ उत्पाती लोगों के कारण लोग कॉंवड़ियों से इतने डरने लगे हैं कि कांवड़ियों से बहुत दूर से बच कर निकलने में ही भलाई समझते हैं स्थिति तो ये हो गई है कि यदि कोई कॉंवड़िया चलने मे असहाय हो और वह बाईक आदि वाले से याचना भी करे कि भैया कृपया मुझे आगे तक छोड़ दो, तो उक्त व्यक्ति उस परेशान काँवड़िये भोले को कुछ दूर के लिए बिठा कर भी राजी नहीं होता, कारण ?? दिमाग मे वही उत्पाती छवि का बनना बस आप सभी धर्म-अनुयायियों, सभी धर्म के मार्ग पर चलने वाले काँवड भक्तों से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि अपने धर्म के प्रति वफादार बनिये, अपने धर्म का सम्मान कीजिये, ना की अपने धर्म को उत्पात का जरिया बनाइये। आप धर्म के ध्वजारोहक है इस धर्म-ध्वजा को लहराते चलिए, फहराते चलिए।
इस ही के साथ जय भोले!! हर-हर महा देव!!

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