जापान में अगर ट्रेन 1 मिनट भी लेट हो जाए तो रेलवे देरी के लिए माफी मांगता है, लेकिन भारत में ट्रेनों का लेट होना आम बात है। भारतीय रेलवे की ट्रेनों का 8 घंटे-10 घंटे लेट होना तो आम बात है। कुछ ट्रेनों ने तो लेट होने की आदत बना ली है, जो कभी अपने तय वक्त पर नहीं पहुंचती है, लेकिन आज जिस ट्रेन की हम बात करने जा रहे हैं, वो ट्रेन कुछ घंटे या कुछ दिन नही बल्कि कुछ सालों तक के लिए लेट हो गई। ट्रेन इतनी लेट हुई कि जो 2014 में अपने स्टेशन से खुली चार साल बाद 2018 में अपनी मंजिल पर पहुंची। इस ट्रेन ने लेटलतीफी के सारे रिकार्ड तोड़ डाले। जिस दूरी को तय करने में ट्रेन को आमतौर पर 42 घंटे 13 मिनट का वक्त लगता है, उसे इस ट्रेन में 3.5 साल में पूरा किया। जानते हैं लेटलतीफी का रिकॉर्ड बना चुके इस ट्रेन का किस्सा।
किस्सा साल 2014 का है, जब भारतीय रेलवे की एक ट्रेन ने लेट लतीफी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। विशाखापत्तन ने नवंबर 2014 में चली मालगाड़ी इतनी लेट हुई कि वो उसे अपने गंतव्य यूपी के बस्ती स्टेशन पहुंचने में 3.5 साल लग गए। हैरानी की बात तो ये है कि इस लेट की वजह न तो रेलवे बता पाई और न ही साढ़े 3 साल तक उस ट्रेन को खोज पाई।
किस्सा साल 2014 का है, जब भारतीय रेलवे की एक ट्रेन ने लेट लतीफी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। विशाखापत्तन ने नवंबर 2014 में चली मालगाड़ी इतनी लेट हुई कि वो उसे अपने गंतव्य यूपी के बस्ती स्टेशन पहुंचने में 3.5 साल लग गए। हैरानी की बात तो ये है कि इस लेट की वजह न तो रेलवे बता पाई और न ही साढ़े 3 साल तक उस ट्रेन को खोज पाई।
1361 खाद के पैकेट लेकर नवंबर 2014 को विशाखापट्टनम से चली मालगाड़ी को 1400 किमी की दूरी तय करते हुए उत्तर प्रदेश के बस्ती रेलवे स्टेशन पहुंचना था। मालगाड़ी में 14 लाख से ऊपर का माल था। बस्ती के कारोबारी रामचंद्र गुप्ता ने अपने खादों की डिलीवरी के लिए रेलवे की मालगाड़ी बुक की थी। तय समय पर मालगाड़ी विशाखापत्तम से निकल गई। आम तौर पर इस विशाखापत्तन ने बस्ती की 1400 किमी की दूरी को तय करने में इस ट्रेन तो करीब 42 घंटे का वक्त लगता था, लेकिन अपने तय वक्त पर ट्रेन बस्ती पहुंची ही नहीं।
जब नवंबर 2014 में ट्रेन बस्ती नहीं पहुंची तो कारोबारी रामचंद्र गुप्ता ने रेलवे से संपर्क किया. बस्ती रेलवे स्टेशन के कई चक्कर कांटे। रेलवे को लिखित में कई शिकायतें दी। कारोबारी ने कई बारे इस बारे में रेलवे को जानकारी दी, लेकिन रेलवे की लापरवाही से इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। पता चला कि ट्रेन रास्ते में ही गायब हो गई।
विशाखापत्तन ने चली मालगाड़ी आखिर कहां गायब हो गई किसी को कुछ नहीं पता चल पा रहा था। रेलवे इस लेट लतीफी को लेकर कोई सफाई नहीं दे पा रही थी।
पूरी की पूरी ट्रेन कहां लापता हो गई, किसी को कुछ नहीं पता था। नार्थ ईस्ट रेलवे जोन के चीफ पीआरओ संजय यादव ने दलील दी कि ट्रेन की बोगियों को बीमार ( पुरानी) होने पर उन्हें यार्ड में भेज दिया जाता है, इस मामले में भी शायद ऐसा ही हुआ होगा।
लंबी जांच और पड़ताल के बाद साढ़े 3 साल बाद खाद से लदी मालगाड़ी जुलाई 2018 में उत्तर प्रदेश के बस्ती रेलवे स्टेशन पर पहुंची। ट्रेन कहां, कैसे और क्यों लेट हुई या गायब हुई इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि इस लेट लतीफी के चलते 14 लाख के खाद बेकार हो गए। अगर देखें तो ये रेलवे की सबसे लेट ट्रेन हुई।