“संघर्ष से स्वर्ण तक : Paris Paralympic में सुमित अंतिल ने कैसे तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड और जीता दूसरा गोल्ड!”

भारत के जेवलिन थ्रोअर सुमित अंतिल ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में एक बार फिर से अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया, जहां उन्होंने लगातार दूसरी बार स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। सुमित ने इस प्रतिष्ठित खेल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतने का संकल्प लिया था, जिसे उन्होंने न केवल पूरा किया बल्कि शानदार प्रदर्शन के जरिए अपने खेल को नए आयाम दिए। टोक्यो पैरालंपिक 2020 में स्वर्ण पदक जीतने के बाद, पेरिस में भी उन्होंने अपनी विजयी यात्रा को जारी रखा और एक बार फिर सोने पर निशाना साधा। इस प्रतियोगिता के दौरान, सुमित ने अपने 6 थ्रो में से दो बार अपने ही पैरालंपिक रिकॉर्ड को तोड़ा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे इस खेल में अपनी श्रेष्ठता को और ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

टोक्यो पैरालंपिक 2020 में सुमित ने 68.55 मीटर की दूरी तय कर गोल्ड मेडल अपने नाम किया था, और इसी के साथ उन्होंने एक नया पैरालंपिक रिकॉर्ड भी स्थापित किया था। इस अद्वितीय प्रदर्शन ने सुमित को विश्व पटल पर पहचान दिलाई और वह जेवलिन थ्रो के क्षेत्र में एक प्रेरणा स्रोत बन गए। पेरिस पैरालंपिक 2024 में, सुमित ने अपने पहले ही थ्रो में इस रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 69.11 मीटर की दूरी तय की। यह उपलब्धि उनके खेल कौशल और शारीरिक और मानसिक मजबूती का प्रमाण थी। उनकी खुशी तब और बढ़ गई जब उन्होंने अपने दूसरे थ्रो में 70.59 मीटर की दूरी तय कर अपने ही रिकॉर्ड को एक बार फिर ध्वस्त किया। इस प्रदर्शन ने उन्हें प्रतियोगिता में एक अजेय स्थिति में ला खड़ा किया।

सुमित का तीसरा थ्रो 66.66 मीटर का रहा, जबकि उनका चौथा थ्रो तकनीकी कारणों से अमान्य घोषित कर दिया गया। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद सुमित का आत्मविश्वास डगमगाया नहीं। उन्होंने अपने पांचवें थ्रो में फिर से दमदार प्रदर्शन करते हुए 69.04 मीटर की दूरी तय की, जिससे यह लगभग तय हो गया कि वह स्वर्ण पदक जीतकर ही घर लौटेंगे। सुमित का यह सफर केवल मैदान पर ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी अनेक संघर्षों से भरा रहा है, जिसने उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से और भी सशक्त बनाया।

7 जून 1998 को हरियाणा के एक छोटे से गाँव में जन्मे सुमित अंतिल का बचपन कठिनाइयों से भरा रहा। उन्होंने बचपन में ही अपने पिता रामकुमार को खो दिया था, जो भारतीय वायुसेना में कार्यरत थे। उनके पिता की एक बीमारी के कारण असामयिक मृत्यु हो गई थी, जिससे सुमित और उनके परिवार पर गहरा आघात लगा। तीन बहनों में इकलौते भाई सुमित की परवरिश उनकी मां ने अकेले ही की, जिन्होंने तमाम चुनौतियों के बावजूद अपने बच्चों को एक बेहतर जीवन देने का हर संभव प्रयास किया।

सुमित के जीवन में एक और त्रासदी तब आई जब वह 12वीं कक्षा में थे। एक सड़क दुर्घटना में, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हुए, सुमित को अपना एक पैर गंवाना पड़ा। यह दुर्घटना तब हुई जब वह कॉमर्स की ट्यूशन से घर लौट रहे थे और उनकी बाइक को एक ट्रैक्टर-ट्रॉली ने टक्कर मार दी। हालांकि, इस हादसे ने सुमित की शारीरिक क्षमताओं को प्रभावित किया, लेकिन उनके हौसले को नहीं। इस कठिन दौर में सुमित को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों का पूरा समर्थन मिला, जिसने उन्हें हिम्मत बनाए रखने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

दुर्घटना के बाद, सुमित ने खेल की ओर रुख किया और अपनी नई पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत शुरू कर दी। वह स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) सेंटर पहुंचे, जहां उन्होंने द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित कोच नवल सिंह के मार्गदर्शन में जैवलिन थ्रो की बारीकियां सीखीं। सुमित ने कड़ी मेहनत और अनुशासन के साथ अपने खेल में निपुणता हासिल की, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने का मौका मिला। 2018 में उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जहां वह पांचवें स्थान पर रहे। हालांकि, यह उनके लिए केवल एक शुरुआत थी। 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता और अपने कौशल को और भी निखारा। इसके बाद, 2020 टोक्यो पैरालंपिक और 2024 पेरिस पैरालंपिक में सुमित ने स्वर्ण पदक जीतकर न केवल अपने देश का मान बढ़ाया बल्कि यह साबित किया कि विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।

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