“ताजिकिस्तान में हिजाब और दाढ़ी पर बैन! जानें क्यों राष्ट्रपति ने लिया इतना बड़ा फैसला”

ताजिकिस्तान, जो एक मुस्लिम बहुल देश है, ने हाल ही में कट्टरपंथ के खिलाफ एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद निर्णय लिया है। देश के राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन, जो पिछले 30 वर्षों से सत्ता में हैं, ने मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने और पुरुषों की लंबी दाढ़ी रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम ताजिकिस्तान में धार्मिक कट्टरता को नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। नियमों का पालन न करने पर सख्त सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

कट्टरपंथ पर नियंत्रण का प्रयास

राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन का मानना है कि देश में इस्लामिक प्रतीकों पर नियंत्रण लगाने से कट्टरपंथी विचारधाराओं को कमजोर किया जा सकेगा। ताजिकिस्तान में बढ़ती इस्लामिक चरमपंथी गतिविधियों और आतंकवादी घटनाओं ने सरकार को इस दिशा में कदम उठाने पर मजबूर किया है। ताजिकिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान से जोड़ती है, जिससे इसे चरमपंथी गतिविधियों के लिए संवेदनशील माना जाता है।

मार्च 2024 में मॉस्को में हुए आतंकी हमले में ताजिक मूल के चार आतंकवादियों की संलिप्तता सामने आने के बाद, सरकार ने इस्लामिक पहनावे और सार्वजनिक पहचान पर कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए। सरकार का कहना है कि यह नया कानून देश में फैल रहे धार्मिक कट्टरपंथ को रोकने के लिए जरूरी है।

इस्लामिक प्रतीकों पर प्रतिबंध

सरकार द्वारा जारी नए नियमों के तहत ताजिकिस्तान में मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके साथ ही, पुरुषों को लंबी दाढ़ी रखने से भी मना किया गया है। सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी दाढ़ी रखने पर सख्त पाबंदी लगा दी गई है, और इसे लागू करने के लिए “मोरल पुलिस” तैनात की गई है। नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान है, जो 1 लाख रुपये से अधिक हो सकता है।

इस प्रतिबंध के लागू होने के बाद से देश में व्यापक असंतोष फैल गया है। ताजिकिस्तान की आर्थिक स्थिति की बात करें तो देश में औसत मासिक वेतन लगभग 15,000 रुपये है, जो कि जुर्माने की तुलना में बहुत कम है। इस वजह से जनता के बीच सरकार की नीतियों को लेकर असंतोष बढ़ रहा है।

व्यक्तिगत कहानियाँ और प्रताड़ना

इन कड़े नियमों के कारण कई लोग व्यक्तिगत रूप से प्रभावित हुए हैं। दुशांबे की एक शिक्षिका, निलोफर, ने बताया कि उन्हें तीन बार पुलिस ने हिजाब उतारने के लिए मजबूर किया। जब उन्होंने इनकार किया, तो पुलिस ने उन्हें रातभर थाने में रखा। निलोफर के पति को भी एक बार दाढ़ी न काटने पर 5 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। निलोफर ने बताया कि इन घटनाओं ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है, और उन्होंने अब हिजाब पहनना बंद कर दिया है, क्योंकि उन्हें अपने करियर और आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने का डर है।

विशेषज्ञों की राय और आलोचना

सरकार के इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना हो रही है। मानवाधिकार संगठनों और विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के प्रतिबंध धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं और कट्टरपंथ को रोकने के बजाय इसे और बढ़ावा दे सकते हैं। मानवाधिकार विशेषज्ञ लरिसा अलेक्जांडरोवा का कहना है कि ताजिक सरकार असली समस्याओं, जैसे कि गरीबी, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता को नजरअंदाज कर रही है, और केवल सतही उपाय कर रही है। उनका मानना है कि इस तरह के प्रतिबंध से जनता में असंतोष बढ़ सकता है, जो समाज में और अधिक विभाजन का कारण बन सकता है।

ताजिकिस्तान की स्थिति और चुनौतियाँ

ताजिकिस्तान में इस्लामिक चरमपंथ के खतरे को देखते हुए यह कानून लागू किया गया है, लेकिन इसके दूरगामी प्रभावों पर सवाल उठ रहे हैं। ताजिकिस्तान की सरकार पिछले कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रख रही है, और इस्लामिक प्रतीकों पर प्रतिबंध लगाकर यह देश में कट्टरपंथी विचारधारा को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। लेकिन इस फैसले से न केवल देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तीखी प्रतिक्रिया हो रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक ताजिकिस्तान अपनी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं करता, तब तक इस तरह के कठोर नियम कट्टरपंथ को रोकने में सफल नहीं हो सकते। देश में गरीबी और सामाजिक असमानता चरम पर है, और इन मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध लगाने से स्थिति और खराब हो सकती है।

राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन का यह कदम ताजिकिस्तान में कट्टरपंथ पर अंकुश लगाने के लिए उठाया गया है, लेकिन यह निर्णय देश में असंतोष और अंतरराष्ट्रीय आलोचना को जन्म दे रहा है। सरकार के इस फैसले से धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल उठ रहा है, और यह देखना बाकी है कि यह कानून कट्टरपंथ को कितना रोकने में सक्षम होता है।

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