वरिष्ठ माकपा नेता सीताराम येचुरी का गुरुवार को 72 वर्ष की आयु में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में निधन हो गया। लंबे समय से सांस की बीमारी से जूझ रहे येचुरी का एम्स में उपचार चल रहा था, जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से भारतीय राजनीति में विशेष रूप से वामपंथी धारा में एक युग का अंत हो गया है। आइए, उनके जीवन और राजनीतिक सफर पर विस्तार से नजर डालते हैं।
स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते जीवन के अंतिम दिन
सीताराम येचुरी कई सालों से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे, खासकर सांस संबंधी रोगों से। उन्हें गंभीर रूप से बीमार होने के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां वे कई हफ्तों तक इलाजरत रहे। उन्हें रेस्पिरेटरी सपोर्ट पर रखा गया था, और हालात बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर भी शिफ्ट किया गया। उनकी हालत पर डॉक्टरों की एक विशेषज्ञ टीम लगातार निगरानी रख रही थी, लेकिन अंततः 19 अगस्त को हुई संक्रमण की जटिलताओं से उनकी स्थिति और बिगड़ गई, और गुरुवार को उनका निधन हो गया।
राजनीतिक सफर: मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित
सीताराम येचुरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के एक प्रमुख नेता थे, और 1992 से पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे। उनका राजनीतिक सफर एक छात्र नेता के रूप में शुरू हुआ और धीरे-धीरे वे भारतीय वामपंथी राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे। सीपीआई (एम) के महासचिव के रूप में उनका कार्यकाल उनके नेतृत्व की क्षमता और विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। वे 2005 से 2017 तक पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
उनका राजनीतिक जीवन देश के प्रमुख आंदोलनों और घटनाओं से गहराई से जुड़ा रहा। उन्होंने वामपंथी राजनीति को नई दिशा दी और मजदूरों, किसानों, और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहे। उनकी पार्टी के साथियों और राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें एक गंभीर, लेकिन विनम्र नेता के रूप में देखा, जो हमेशा अपने विचारों के प्रति समर्पित रहे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: हैदराबाद से दिल्ली तक का सफर
सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को मद्रास (अब चेन्नई) में एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी एक इंजीनियर थे, जो आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में कार्यरत थे। उनकी मां कल्पकम येचुरी एक सरकारी अधिकारी थीं। येचुरी का शुरुआती जीवन हैदराबाद में बीता, जहां उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 10वीं तक की पढ़ाई हैदराबाद के ऑल सेंट्स हाई स्कूल से की।
शिक्षा में उत्कृष्टता और दिल्ली का सफर
1969 के तेलंगाना आंदोलन के दौरान परिस्थितियों ने उन्हें हैदराबाद छोड़कर दिल्ली आने पर मजबूर किया। दिल्ली में उन्होंने प्रेसिडेंट एस्टेट स्कूल से अपनी शिक्षा जारी रखी और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह उनकी शैक्षणिक क्षमता का प्रमाण था।
इसके बाद उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। यहां से उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में दाखिला लिया, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया। दोनों डिग्रियों में उन्होंने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। उनके शैक्षिक प्रदर्शन के चलते उन्हें जेएनयू में पीएचडी करने का अवसर मिला, लेकिन आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी के बाद उन्होंने यह योजना स्थगित कर दी।
आपातकाल और राजनीतिक सक्रियता
1975 में देश में आपातकाल के दौरान, सीताराम येचुरी का राजनीतिक जीवन वास्तव में शुरू हुआ। आपातकाल के दौरान उन्होंने वामपंथी विचारधारा को मजबूती से अपनाया और सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। वे जेएनयू में छात्र नेता के रूप में उभरे, और इस दौरान गिरफ्तार भी हुए। गिरफ्तारी से पहले वे भूमिगत रहे और आपातकाल के खिलाफ प्रतिरोध की योजनाओं का संचालन किया।
आपातकाल समाप्त होने के बाद, वे तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए, जो उनकी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता का प्रतीक था। जेएनयू में उन्होंने प्रकाश करात के साथ मिलकर वामपंथी गढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में जेएनयू वामपंथी राजनीति का केंद्र बन गया और उन्होंने छात्रों के बीच सामाजिक न्याय, समानता और लोकतंत्र के विचारों को मजबूती से बढ़ाया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में योगदान
सीताराम येचुरी ने 1992 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो में प्रवेश किया और 2005 से 2017 तक राज्यसभा सदस्य के रूप में सेवा की। वे पार्टी के महासचिव बने और इस दौरान उन्होंने पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई प्रमुख मुद्दों पर आंदोलन चलाए, जिसमें श्रमिक अधिकारों, कृषि सुधारों और सामाजिक असमानता के खिलाफ संघर्ष शामिल थे।
उनके नेतृत्व में वामपंथी आंदोलन ने विभिन्न चुनौतियों का सामना किया, खासकर जब देश में दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रभाव बढ़ा। बावजूद इसके, येचुरी ने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया और हमेशा समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के लिए संघर्षरत रहे।
निजी जीवन और मूल्य
अपने राजनीतिक जीवन के साथ-साथ, सीताराम येचुरी एक निजी व्यक्ति के रूप में भी काफी सादगी और संयम के लिए जाने जाते थे। उनकी प्रतिबद्धता सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे सामाजिक न्याय और समानता के पक्षधर थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी व्यक्तिगत लाभ की बजाय समाज और देश की बेहतरी को प्राथमिकता दी। उनके करीबी साथी और राजनीतिक सहयोगी उन्हें एक समर्पित नेता और सच्चे विचारक के रूप में याद करते हैं।
सीताराम येचुरी का जीवन संघर्ष, सादगी और विचारधारा के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का प्रतीक था। एक छात्र नेता से लेकर एक राष्ट्रीय स्तर के नेता तक, उनका सफर कई संघर्षों और उतार-चढ़ावों से भरा रहा। उन्होंने हमेशा समाज के कमजोर वर्गों के लिए संघर्ष किया और भारतीय वामपंथी राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी। उनका निधन न केवल भारतीय राजनीति के लिए, बल्कि उन सभी के लिए एक बड़ी क्षति है जो सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्षरत हैं। उनके विचार और योगदान आने वाले कई वर्षों तक प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।