धरती मां
धरती मां के अनुकम्पा से
है प्राणी में जान,
उनके पोषण करने से ही
चलता ये ज़हान।
ढ़ेरों फसलें सदा आंचल में
धरती के लहराते,
हर्षित पुलकित होके किसान
उनके यश को गाते ।
नदियां झरना पर्वत घाटी
धरती के श्रृंगार,
तीर्थ मुसाफिर बनके इंसा
करते जहां बिहार।
असंख्य वृक्ष लताएं धरती को
अपना मित बनाए,
जिनके मीठे-फल और छाया
जीवन ज्योत जलाए।
तोप मिशाइल बम की मार
सहती है धरती,
फिर भी उनमें जीवन धारा
हरपल ही बहती।
धरती मां की गोद में है सब
हीरे-मोती की खान,
देकर जग को अन्न धन वैभव
करते हैं कल्याण।
लेखक/कवि,
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, लेन्ध्रा छोटे
सारंगढ़, छत्तीसगढ़।