भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म और दान-पुण्य की परंपरा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराने और उन्हें दान देने की परंपरा का विशेष स्थान है, ताकि मृतक आत्माओं की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकें। हालांकि, उत्तर प्रदेश के संभल जिले के गुन्नौर तहसील के गांव भगता नगला में यह परंपरा लगभग 100 साल से बंद है। इस गांव के लोग पितृ पक्ष के 16 दिनों तक न तो श्राद्ध करते हैं, न ही ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, और न ही किसी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
पितृ पक्ष में ब्राह्मणों का प्रवेश निषेध
श्राद्ध पक्ष के दौरान भगता नगला गांव में कोई ब्राह्मण प्रवेश नहीं करता। यदि गलती से कोई ब्राह्मण या भिक्षु गांव में आ भी जाता है, तो उसे भिक्षा देने से मना कर दिया जाता है। पितृ पक्ष के पूरे 16 दिनों तक इस गांव में पूजा-पाठ, हवन, या किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि नहीं की जाती है। इस परंपरा का पालन गांव के लोग बड़े अनुशासन से करते हैं, जो पिछले एक शताब्दी से चला आ रहा है।
100 साल से श्राद्ध परंपरा पर पाबंदी
इस अनोखी परंपरा के पीछे की कहानी गांव के बुजुर्ग रेवती सिंह से जुड़ी हुई है। वह बताते हैं कि करीब 100 साल पहले इस गांव में एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे गांव की सोच और परंपराओं को बदल कर रख दिया। रेवती सिंह के अनुसार, प्राचीन समय में एक ब्राह्मण महिला इस गांव में किसी ग्रामीण के घर में श्राद्ध संपन्न कराने आई थी। श्राद्ध के दौरान अचानक बहुत तेज बारिश शुरू हो गई, जिससे महिला को गांव में ही कुछ दिनों तक रुकना पड़ा।
अपमानित ब्राह्मण महिला की कहानी
कई दिन बाद जब बारिश रुकी, तो ब्राह्मण महिला अपने घर लौटी। लेकिन जब वह घर पहुंची, तो उसके पति ने उसके चरित्र पर संदेह करते हुए उसे अपमानित किया और घर से बाहर निकाल दिया। ब्राह्मण महिला ने अपने अपमान से आहत होकर गांव वापस आकर गांववासियों को अपनी दुखभरी कहानी सुनाई। उसने कहा कि श्राद्ध करने के कारण उसके जीवन में इतनी बड़ी विपत्ति आई है और उसे अपने घर से बेघर कर दिया गया है।
श्राप मानकर श्राद्ध बंद करने का फैसला
महिला ने गांव वालों से कहा कि यदि उन्होंने भविष्य में श्राद्ध किया, तो उनका भी बुरा होगा। ब्राह्मण महिला के इस कथन को गांव वालों ने श्राप के रूप में मान लिया और तभी से इस गांव में श्राद्ध करना पूरी तरह से बंद हो गया। लगभग 100 साल से इस परंपरा का पालन किया जा रहा है। गांववासी आज भी इस श्राप को लेकर विश्वास रखते हैं और श्राद्ध पक्ष के दिनों में किसी भी प्रकार का श्राद्ध कर्म नहीं करते।
श्राद्ध के अलावा बाकी अनुष्ठानों में ब्राह्मणों की भागीदारी
हालांकि, श्राद्ध के अलावा बाकी सभी धार्मिक और सामाजिक कार्यों में ब्राह्मणों का आना-जाना सामान्य रूप से होता है। विवाह संस्कार, यज्ञ, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान ब्राह्मणों द्वारा ही कराए जाते हैं। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों का गांव में आना सख्त मना है। इस परंपरा को गांव के लोग अपने पूर्वजों की मान्यता के रूप में देखते हैं और इसे आज तक निभाते आ रहे हैं।
गांव की अद्वितीय परंपरा
यह परंपरा केवल भगता नगला गांव की है, और आसपास के गांवों में इसका कोई प्रभाव नहीं है। गांव के बुजुर्ग इसे अपने पूर्वजों की इच्छा और आस्था का हिस्सा मानते हैं। उनका मानना है कि इस परंपरा को तोड़ना गांव के लिए अशुभ होगा। इसलिए वे इसे पूरी निष्ठा और अनुशासन के साथ निभाते आ रहे हैं।
इस अनूठी परंपरा के कारण भगता नगला गांव का नाम आसपास के इलाकों में प्रसिद्ध है। लोग इस परंपरा के पीछे की कहानी को आश्चर्य और श्रद्धा के साथ सुनते हैं और गांववासियों के अनुशासन और मान्यताओं का सम्मान करते हैं।