अंजली कुमारी : आसान नहीं डगर सुदूर गांव से बीपीएससी के उच्चतम पद तक का सफर

                                        
रिपोर्ट- मोनीश ज़ीशान
न्यूज़लाइन नेटवर्क वैशाली
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बात एक ऐसे लड़की की, जो अपने हौसले के बदौलत रूढ़ीवादी ग्रामीण परिवेश में बहुत सीमित संसाधन में      तमाम पारिवारिक तथा सामाजिक कठिनाइयों से पार पाते हुए अपने सपने को साकार करने में सफल रही।
              बात अंजली कुमारी की, जिनकी वर्तमान पहचान समस्तीपुर के परीक्ष्यमान वरीय उप समाहर्ता    की है।
    लेकिन यह पहचान बनाना इतना आसान भी नहीं था।
निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली चार भाई- बहनों में सबसे बडी़ अंजली देश के सबसे अशिक्षित राज्य बिहार के ग्रामीण परिवेश में पली- बढ़ी है। जहाँ महिलाओं में अभी भी शिक्षा के प्रति उतनी जागरूकता नहीं है जितनी होनी चाहिए।
शिक्षा के मामले में देश के सबसे कम जागरूक प्रदेश के ग्रामीण परिवेश में रहकर भी हिंदी मीडियम से सीमित संसाधन में बीपीएससी के उच्चतम पद तक पहुंचने में जिन दुश्वारियों का सामना उन्हें करना पड़ा होगा उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
      बचपन से शिक्षा के प्रति विशेष लगाव रखने वाली अंजली 67वीं बीपीएससी में एसडीएम पद पर चयनित होने से पहले भी वह बिहार के परिवहन विभाग में सब- इंस्पेक्टर पद पर तैनात थी जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा की झलक पेश करता है। बिहार जैसे पुरुष प्रधान राज्य और खासकर पुलिस विभाग जो अमूमन पुरुष प्रधान क्षेत्र समझा जाता है वहां अपना स्थान बनाना अपने आप में गर्व की बात है।
अंजली की सफलता से आसपास के क्षेत्रों के युवक-युवतियों में खासकर स्कूल और कॉलेज की छात्राओं में एक विश्वास जगा है की हमारे बीच की कोई   साधारण परिवार की लड़की बहुत ही सीमित संसाधान में प्रांतीय सिविल सेवा की सबसे उच्चतम पद तक पहुंच सकती है तो हम भी अपने सपनों को साकार कर सकते है। उनकी सफलता बिहार के उन सभी लड़कियों और खासकर ग्रामीण परिवेश वाली लड़कियों के लिए एक मिशाल है जो गांव की रूढ़ीवादी माहौल में सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए अपने सपनों को वास्तविक उड़ान देना चाहती है। इतना ही नहीं आसपास के क्षेत्रों में अब गार्जियन भी अंजली की सफलता से उत्साहित होकर अपनी बेटियों के शिक्षा के प्रति गंभीर है जो बिहार जैसे पिछड़े राज्य के ग्रामीण इलाकों के लिए बहुत बड़ी बात है।
अगर उनके निजी जीवन की बात करें तो बचपन से ही अपने दादा के लाडली होने के कारण बुजुर्गों के प्रति उनका विशेष झुकाव रहा है और आगे चल कर वह बुजर्गों को सम्मानजनक जिंदगी मिले उसके लिए कुछ करना चाहती है। साथ ही महिला तथा युवा सशक्तिकरण के लिए भी बहुत कुछ करने की तमन्ना रखने वाली अंजली अपने सरकारी कामकाज से फुर्सत मिलते ही स्कूल-कॉलेजों में जाकर युवाओं को मार्गदर्शित करने का कोई मौका नहींं छोड़ती है जिस कारण वह बहुत ही कम समय में युवाओं के बीच रोल मॉडल बन गयी है।
       इसके साथ-साथ समाज के वंचित और शोषित वर्ग के लिए कुछ करने की चाह रखने वाली अंजली फिलहाल परीक्ष्यमान वरीय उप समाहर्ता जैसे अहम पद पर रहते हुए अपने ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए, दिन के बचे हुए समय में अपने जीवन में उच्चतम से उच्चतम मुकाम हासिल करने के लिए प्रयासरत है।

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