शिवसेना की शुरुआत से सत्ता संघर्ष तक का रहस्यमयी सफर: ठाकरे परिवार की दिलचस्प कहानी!

बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया, जो उनके समाजवादी दृष्टिकोण का परिणाम था। वह पहले एक अंग्रेजी अखबार में कार्टूनिस्ट थे, लेकिन 1960 में नौकरी छोड़ दी और ‘मार्मिक’ नाम से अपना साप्ताहिक अखबार शुरू किया। ठाकरे ने मुंबई में मराठी समुदाय के लिए अभियान चलाया और बाहर से आने वाले नौकरीपेशा लोगों के खिलाफ आवाज़ उठाई। इस आंदोलन को राजनीतिक रूप देने के लिए 19 जून 1966 को शिवसेना का गठन किया। उस समय उनके बेटे उद्धव ठाकरे केवल छह साल के थे।

शिवसेना की आक्रामक विचारधारा ने इसे महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। पार्टी की प्राथमिकता स्थानीय मराठी लोगों के लिए अधिक रोजगार के अवसर पैदा करना थी। बाद में यह पार्टी उग्र हिंदुत्व की राजनीति में भी प्रमुख भूमिका निभाने लगी।

शिवसेना का नाम और प्रारंभिक सफर

पार्टी को “शिवसेना” नाम बालासाहेब के पिता केशव सीताराम ठाकरे ने दिया, जिसका अर्थ शिवाजी महाराज की सेना है। बालासाहेब ठाकरे की कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा के कारण बाद में शिवसेना और भाजपा का गठबंधन हुआ।

1967 में अपने पहले चुनाव में ही शिवसेना ने ठाणे नगर निगम की 17 सीटें जीतीं। 1968 के मुंबई निकाय चुनाव में, 121 में से 42 सीटें जीतकर शिवसेना ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 1980 के दशक में भाजपा के साथ गठबंधन बनने से शिवसेना का हिंदुत्व की राजनीति में और गहरा प्रभाव पड़ा, जो 2014 तक चला।

शिवसेना का पहला सत्ता संघर्ष

1985 में शिवसेना ने पहली बार मुंबई महानगरपालिका पर कब्जा किया। 1990 में, भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने विधानसभा चुनाव लड़ा, जिसमें शिवसेना मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरी। 1995 में, इस गठबंधन ने महाराष्ट्र में सरकार बनाई, और मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने। इसी दौरान बॉम्बे का नाम बदलकर मुंबई किया गया। 1999 में, शिवसेना ने लोकसभा में महत्वपूर्ण पद भी हासिल किया, और मनोहर जोशी लोकसभा अध्यक्ष बने।

2014 का राजनीतिक मोड़

2014 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूट गया, लेकिन चुनाव के बाद फिर साथ आए और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने। 2019 में शिवसेना ने भाजपा के साथ फिर चुनाव लड़ा, लेकिन मुख्यमंत्री पद पर मतभेद के कारण गठबंधन टूटा, और शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने, और महाविकास अघाड़ी सरकार का गठन हुआ।

2022 का विभाजन और चुनाव चिह्न का विवाद

2022 में एकनाथ शिंदे ने विधायकों के बड़े हिस्से के साथ उद्धव ठाकरे से विद्रोह कर भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री पद संभाला। इस विद्रोह के बाद शिवसेना दो गुटों में बंट गई, जिसमें शिंदे गुट को चुनाव आयोग से ‘शिवसेना’ नाम और ‘धनुष बाण’ चिह्न मिला। वहीं, उद्धव गुट को ‘शिवसेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे’ नाम और ‘मशाल’ चिह्न दिया गया।

महत्वपूर्ण घटनाओं की समयरेखा

  • 1969: महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद के दौरान हिंसा हुई और बालासाहेब ठाकरे को गिरफ्तार किया गया।
  • 1970: परेल से विधायक कृष्ण देसाई की हत्या हुई, जिसमें शिवसेना पर आरोप लगे।
  • 1984: शिवसेना ने भाजपा के चुनाव चिह्न पर विधानसभा चुनाव लड़ा।
  • 1995: पहली बार भाजपा-शिवसेना सरकार बनी।
  • 2003: उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।
  • 2006: राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया।
  • 2012: बालासाहेब ठाकरे का निधन।
  • 2019: उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।
  • 2022: एकनाथ शिंदे ने बगावत कर मुख्यमंत्री पद संभाला।
  • 2023: शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न मिला।

शिवसेना की इस जमीनी पकड़ और संघटनात्मक शक्ति ने इसे महाराष्ट्र की राजनीति में एक सशक्त स्थान दिलाया है।

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