
किसी देश को नष्ट करने के लिए उसकी सांस्कृतिक पहचान को मिटाना सबसे प्रभावी हथियार माना गया है। भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रांताओं ने इसी रणनीति का अनुसरण किया। उन्होंने केवल भारत की संपत्ति को लूटा नहीं, बल्कि इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर मंदिरों और धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया। इन ध्वस्त मंदिरों की जगह मस्जिदें बनाईं गईं, ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति पर आघात किया जा सके।
आक्रमणकारियों का उद्देश्य और उनकी रणनीतियां
भारत पर इस्लामी आक्रांताओं के हमलों का मुख्य उद्देश्य न केवल आर्थिक लूट था, बल्कि यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक नींव को कमजोर करना भी था। मंदिरों और धार्मिक स्थलों को नष्ट करके केवल धार्मिक प्रतीकों को खत्म नहीं किया गया, बल्कि यह भारत की प्राचीन सभ्यता पर चोट करने का प्रयास था।
इसी तरह, अंग्रेजों का लक्ष्य भी भारत को कमजोर बनाकर यहां के प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों का दोहन करना था। इसके लिए उन्होंने भारतीय समाज की सांस्कृतिक एकता और पहचान को कमजोर करने के हरसंभव प्रयास किए।
भारत के धार्मिक स्थल, जैसे कि अयोध्या, काशी और मथुरा, केवल पूजा स्थल नहीं हैं। ये भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं। इन स्थानों की उपेक्षा और विध्वंस से भारत की पहचान अधूरी रह जाती है।
सनातन संस्कृति का पुनरुद्धार
सैकड़ों वर्षों की गुलामी और संघर्ष के बाद, आज भारत अपनी सनातन संस्कृति और धार्मिक धरोहरों का पुनरुद्धार कर रहा है। काशी, मथुरा, संभल, और अजमेर दरगाह जैसे मामलों में ऐतिहासिक साक्ष्यों और दस्तावेजों के आधार पर धार्मिक स्थलों की पहचान को फिर से स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
हालांकि, इस प्रक्रिया में कानूनी अड़चनें भी सामने आती हैं। पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत यह निर्धारित किया गया है कि 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। लेकिन, जन आकांक्षाओं और सांस्कृतिक पुनरुद्धार की मांगों ने इस अधिनियम की सीमाओं पर सवाल उठाए हैं।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991
1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव के नेतृत्व में पूजा स्थल अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य धार्मिक स्थलों को लेकर भविष्य में होने वाले संघर्षों को रोकना था।
इस अधिनियम में कहा गया है:
- किसी भी धार्मिक स्थल का स्वरूप 15 अगस्त 1947 के अनुरूप संरक्षित रहेगा।
- किसी स्थल के धार्मिक चरित्र में बदलाव करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- केवल राम जन्मभूमि विवाद को इस अधिनियम से छूट दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले और प्रभाव
2019 में राम जन्मभूमि मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम का समर्थन किया। अदालत ने इसे धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए आवश्यक बताया।
कोर्ट ने कहा:
- इतिहास की गलतियों का उपयोग वर्तमान और भविष्य के समाज को प्रभावित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
- अधिनियम का उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता और शांति को बनाए रखना है।
2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पूजा स्थल अधिनियम किसी धार्मिक स्थल के ऐतिहासिक स्वरूप की जांच करने से नहीं रोकता। इस निर्णय के बाद कई अन्य विवादित स्थलों को लेकर दावे सामने आए और अदालतों ने इनके सर्वेक्षण के आदेश भी दिए।
प्रमुख विवादित स्थल
1. काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद
1991 में वाराणसी की अदालत में याचिका दायर की गई थी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन को काशी विश्वनाथ मंदिर को सौंपने की मांग की गई।
- हिंदू पक्ष: ज्ञानवापी मस्जिद से पहले यहां मंदिर था, जिसे मुगल शासक औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया।
- मुस्लिम पक्ष: मस्जिद का निर्माण इस्लामिक परंपरा के तहत किया गया और यह स्थान कभी मंदिर नहीं था।
2. कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद
2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास स्थित शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण कराने की अनुमति दी।
- हिंदू पक्ष: यह स्थान भगवान कृष्ण के जन्मस्थान का हिस्सा है।
- मुस्लिम पक्ष: इस दावे को खारिज करता है और मस्जिद के अस्तित्व को कानूनी मान्यता प्राप्त है।
3. संभल शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर
इस विवाद में ट्रायल कोर्ट ने सर्वेक्षण के आदेश दिए, लेकिन मस्जिद प्रबंधन ने इसे चुनौती दी है।
4. भोजशाला और कमाल मौला मस्जिद
मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला के धार्मिक स्वरूप को लेकर विवाद है। सुप्रीम कोर्ट ने इस ढांचे के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
आगे की चुनौतियां
भारत की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक स्थलों की पहचान का पुनरुद्धार कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर एक जटिल प्रक्रिया है।
- कानूनी अड़चनें: पूजा स्थल अधिनियम और अन्य प्रावधान इस प्रक्रिया को सीमित करते हैं।
- सामाजिक संतुलन: इन विवादों का समाधान करते समय धार्मिक सहिष्णुता और शांति बनाए रखना एक चुनौती है।