
चाहत की आग
प्रेमी का जीवन किया ख़ाक
एक गांव का एक लड़का
लगता था मासुम,
अंदर ही अंदर किसी ख्याल में
रहता भी वो गूम।
अपने घर में मां-बाप का वो
था बहुत दुलारा,
दोस्तों के हर काम-काज में
बनते सबके सहारा।
उसे गांव की लड़की से जब
दिल से प्यार हुआ,
जिसे पाने को हर हाल में
मांगे अनेंक दुआं ।
अपने प्यार का उस लड़की से
जब इजहार किया,
रब जाने किस कारण से क्यों
लड़की इंकार किया।
लड़की की दीदी का विवाह
हुआ था अपने गांव में,
शायद इसीलिए बंधी थी बेड़ी
सख्त उनके पांव में।
धीरे-धीरे लड़का के दिल में
बढ़ता गया प्यार ,
पर लड़की चुपचाप उसको
बस करती इंकार।
कुछ दिन में सब बात सारे
गांव जान गये,
बहूं बनाने को उसे लड़के का
बाबूजी मान गये।
लड़की का भाई था एक
बहुत गुस्सा वाला,
रोज गाली देकर के कहते
तुम्हें मारूंगा साला।
लड़के के पिता लड़की के घर
दो बार रिश्ता भेजी,
उन लोगों ने मना कर के फिर
उल्टा गाली दे दी।
लड़का भी था बहुत बड़े
अधिकारी का बेटा,
जबरजस्ती लड़की को वो
लव लेटर दे देता।
जब लड़की वाले पीने लगे
घोर विष अपमान का,
तब जाके सब दुश्मन बन गये
लड़के के बस जान का।
एक दिन लड़का का दुर्भाग्यवश
समय बहुत खराब हुआ,
और उनके चाहत के फसानें का
बारीकी से हिसाब हुआ।
लड़का गली से जब लड़की को
कुछ इशारा सा किया,
लड़की के पिता और भाई उसे
घर अंदर खींच लिया।
लड़की रोज-रोज बेइज्जती का
बदला उससे लिया,
उसके सिर में एक जोरदार वार
कुल्हाड़ी से किया।
फिर घर वाले एक साथ मिल
घातक प्रहार किये,
लड़का वहीं तड़प-तड़प कर
प्राण त्याग दिये।
फिर एकदम सारे गांव में ही
एक सनसनी छा गए,
फोन करते जल्द लड़की घर
कई पुलिस आ गए।
तब पुछताछ में सारे मामले का
गहरा हुआ छानबीन,
और लड़का का अंतिम संस्कार
किये गये अगले दिन।
लड़की सहित पूरे घर वालों को
हो गये आजीवन जेल,
कानून के आगे उन लोगों का
चल न सका कुछ खेल।
लेखक कवि,
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, लेंध्रा छोटे
सारंगढ़, छत्तीसगढ़।