सोमवार को बेंगलुरु के मराठाहल्ली क्षेत्र में 34 वर्षीय इंजीनियर अतुल सुभाष को उनके घर में मृत पाया गया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के निवासी सुभाष ने आत्महत्या करने से पहले 24 पन्नों का सुसाइड नोट और एक वीडियो रिकॉर्ड किया। इस घटना ने पुरुषों के अधिकारों और उनके खिलाफ कानूनी एवं सामाजिक पक्षपात पर एक नई बहस छेड़ दी है। #MenToo और #JusticeForAtulSubhash जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं, जिसमें पुरुषों की पीड़ा और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की मांग उठ रही है।
आत्महत्या से पहले छोड़ा गया संदेश
अतुल सुभाष ने अपने सुसाइड नोट और वीडियो में अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी ने उनके खिलाफ नौ झूठे मामले दर्ज कराए थे, जिनमें घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न और अप्राकृतिक अपराध के आरोप शामिल थे।
सुभाष ने दावा किया कि इन मामलों का कोई आधार नहीं था। उन्होंने एक उदाहरण का जिक्र करते हुए बताया कि उनकी पत्नी ने पहले एक मामला वापस लिया और बाद में वही आरोप नए तरीके से प्रस्तुत किया। अपने वीडियो में सुभाष ने कहा,
“मेरे खिलाफ नौ मामले दर्ज हैं। छह निचली अदालत में और तीन उच्च न्यायालय में चल रहे हैं। इन कानूनी लड़ाइयों और अदालत द्वारा आदेशित भारी भुगतान ने मुझे मानसिक और आर्थिक रूप से तोड़ दिया है।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी आय का बड़ा हिस्सा अदालत के आदेश के कारण उनकी पत्नी को भुगतान में चला जाता है, और वही पैसा उनके खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है।
“जो पैसा मैं कमा रहा हूं, वही पैसा मेरे दुश्मनों को मजबूत कर रहा है। यह चक्र खत्म नहीं हो रहा। मेरी जिंदगी खत्म करना ही अब एकमात्र रास्ता है।”
न्यायिक प्रणाली पर सवाल
सुभाष ने अपने सुसाइड नोट में न्याय प्रणाली पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश के जौनपुर स्थित पारिवारिक अदालत की न्यायाधीश रीता कौशिक पर पक्षपात और रिश्वत लेने का आरोप लगाया। सुभाष के अनुसार,
“अदालत में मेरी पत्नी ने पहले ₹1 करोड़ की समझौता राशि मांगी थी, जिसे बाद में ₹3 करोड़ कर दिया गया। जब मैंने कहा कि ये मामले झूठे हैं, तो न्यायाधीश ने कहा, ‘तो क्या हुआ? वह आपकी पत्नी है, और यह सामान्य बात है।’”
सुभाष ने आरोप लगाया कि अदालत ने न केवल उनकी बातों को अनसुना किया, बल्कि न्यायाधीश ने उनके साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया। उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी ने उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाया और जब यह बात अदालत में कही गई, तो न्यायाधीश ने इसे मजाक में लिया और हंसते हुए कहा,
“आप भी ऐसा क्यों नहीं करते?”
उन्होंने दावा किया कि इस टिप्पणी के बाद न्यायाधीश ने उनसे ₹5 लाख की रिश्वत की मांग की थी।
सोशल मीडिया पर गुस्सा और #MenToo आंदोलन
इस घटना ने सोशल मीडिया पर एक बड़ा जनआक्रोश पैदा किया है। लोग न केवल अतुल सुभाष के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, बल्कि पुरुषों के खिलाफ सामाजिक और कानूनी पक्षपात को भी उजागर कर रहे हैं।
एक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने लिखा,
“भारत में पुरुष होना अपराध बन गया है। सिस्टम केवल एक पक्ष की सुनता है।”
दूसरे उपयोगकर्ता ने लिखा,
“हमारी न्याय प्रणाली इतनी कमजोर और पक्षपाती है कि पुरुषों की पीड़ा को कभी गंभीरता से नहीं लिया जाता।”
कार्यकर्ता चंदन मिश्रा ने ट्वीट किया,
“पुरुषों पर पारिवारिक जिम्मेदारियों और कानूनी लड़ाइयों का इतना बोझ होता है कि उनकी मानसिक और भावनात्मक पीड़ा अक्सर अनदेखी रह जाती है।”
पुलिस जांच और कानूनी कार्रवाई
अतुल सुभाष के भाई विकास कुमार की शिकायत के आधार पर, मराठाहल्ली पुलिस ने सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया, उनकी मां निशा सिंघानिया, भाई अनुराग सिंघानिया और चाचा सुशील सिंघानिया के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है।
विकास कुमार ने पुलिस को बताया कि अतुल अपनी पत्नी और उसके परिवार द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों और अदालत की कार्यवाही के चलते मानसिक और शारीरिक रूप से टूट चुके थे।
“हर बार जब अतुल अदालत की सुनवाई में शामिल होते थे, तो उनके ससुराल वाले उनका मजाक उड़ाते थे और कहते थे कि अगर वह पैसे नहीं दे सकते, तो उन्हें मर जाना चाहिए। यह बातें उन्हें गहराई से प्रभावित करती थीं।”
सुभाष ने अपने सुसाइड नोट में यह भी कहा कि उनकी मौत को “पुरुषों का कानूनी नरसंहार” के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने अपने सभी मामलों की लाइव सुनवाई की मांग की और यह भी अनुरोध किया कि उनके बच्चे की कस्टडी उनके माता-पिता को दी जाए।
पुरुषों के अधिकारों के लिए नई बहस
इस घटना ने वैवाहिक विवादों में निष्पक्षता और पुरुषों के अधिकारों पर एक नई बहस छेड़ दी है। कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन #MenToo आंदोलन के जरिए पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य, कानूनी सुधार, और वैवाहिक मामलों में संतुलित दृष्टिकोण की मांग कर रहे हैं।
मराठाहल्ली पुलिस मामले की जांच कर रही है। यह घटना इस बात का संकेत देती है कि कानूनी प्रणाली में बदलाव और पुरुषों के लिए सामाजिक जागरूकता लाने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।