इंदौर को भिक्षुक मुक्त बनाने की दिशा में प्रशासन का सख्त कदम
इंदौर, जो देश की आर्थिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है, को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाने के लिए कलेक्टर आशीष सिंह के नेतृत्व में व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान शहर की छवि को संवारने के साथ-साथ सामाजिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है। लगातार बढ़ती भिक्षावृत्ति न केवल शहर की सुंदरता को प्रभावित कर रही है, बल्कि यह कई बार अवैध गतिविधियों और अपराधों को बढ़ावा देने का भी जरिया बन जाती है।
कलेक्टर की सख्त कार्रवाई: भिक्षा मांगने और देने वालों पर होगी कानूनी कार्रवाई
कलेक्टर आशीष सिंह ने भिक्षावृत्ति पर रोक लगाने के लिए कड़े निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने साफ किया है कि केवल भिक्षा मांगने वालों पर ही नहीं, बल्कि भिक्षा देने वाले लोगों पर भी कार्रवाई की जाएगी। उनका मानना है कि भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने में भिक्षा देने वालों की बड़ी भूमिका होती है। कलेक्टर ने घोषणा की है कि 1 जनवरी 2025 से भिक्षा देने वाले लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी।
कलेक्टर का कहना है कि भिक्षावृत्ति के माध्यम से एकत्र किए गए धन का उपयोग अक्सर नशे की लत को पूरा करने या मादक पदार्थों की तस्करी जैसे अवैध कार्यों में किया जाता है। इससे समाज में नशे और अपराध की जड़ें गहरी होती जा रही हैं। ऐसे में प्रशासन ने ठोस कार्रवाई का मन बना लिया है ताकि इस समस्या पर स्थायी रूप से लगाम लगाई जा सके।
महिला एवं बाल विकास विभाग की विशेष टीम की सक्रिय भूमिका
भिक्षावृत्ति की समस्या से निपटने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की विशेष टीमें गठित की गई हैं। ये टीमें शहर के प्रमुख चौराहों, बाजारों, मंदिरों और अन्य भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाकर भिक्षुकों की पहचान कर रही हैं। पहचान किए गए भिक्षुकों को इंदौर और उज्जैन के विभिन्न पुनर्वास केंद्रों और आश्रमों में भेजा जा रहा है। इन केंद्रों पर उन्हें भोजन, आवास और शिक्षा की सुविधाएं दी जा रही हैं ताकि वे एक बेहतर जीवन जी सकें।
जागरूकता अभियान के साथ जनसहयोग पर जोर
कलेक्टर आशीष सिंह का कहना है कि सख्ती के साथ-साथ जनसहयोग और जागरूकता भी बेहद जरूरी है। उन्होंने शहरवासियों से अपील की है कि वे भावनाओं में बहकर भिक्षुकों को पैसे न दें। इसके बजाय, वे ऐसे संगठनों और संस्थाओं की मदद कर सकते हैं जो भिक्षुकों के पुनर्वास के लिए काम कर रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि समाज में कई बार बच्चे और महिलाएं मजबूरी में या परिवार के दबाव में भिक्षावृत्ति करने पर मजबूर हो जाते हैं। इसलिए प्रशासन का यह प्रयास है कि उन्हें उचित आश्रय और शिक्षा उपलब्ध कराकर मुख्यधारा में जोड़ा जाए।
भिक्षावृत्ति से जुड़े नशे और अपराध पर कड़ा प्रहार
कलेक्टर आशीष सिंह ने बताया कि शहर में भिक्षावृत्ति से जुड़े कई मामलों में यह सामने आया है कि भिक्षुक द्वारा इकट्ठा की गई राशि का उपयोग ड्रग्स खरीदने में किया जा रहा है। यही नहीं, कई बार यह पैसा तस्करी या अन्य अवैध गतिविधियों में भी इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को चिन्हित कर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी ताकि शहर को नशामुक्त और अपराधमुक्त बनाया जा सके।
पुनर्वास केंद्रों में मिलेंगे बेहतर अवसर
भिक्षावृत्ति के खिलाफ अभियान के तहत पकड़े गए भिक्षुकों को पुनर्वास केंद्रों में भेजा जा रहा है। इन केंद्रों पर उन्हें विभिन्न प्रकार की ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे रोजगार हासिल कर आत्मनिर्भर बन सकें। इसके अलावा, जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करने की भी योजना बनाई जा रही है ताकि वे भिक्षावृत्ति की इस दुश्चक्र से बाहर निकल सकें।
शहर की छवि सुधारने की दिशा में अहम कदम
कलेक्टर ने कहा कि इंदौर स्वच्छता और सुंदरता के मामले में देशभर में एक अलग पहचान बना चुका है। अब समय आ गया है कि शहर को भिक्षावृत्ति जैसी सामाजिक समस्याओं से भी मुक्त किया जाए। उन्होंने कहा कि प्रशासन का उद्देश्य केवल भिक्षावृत्ति पर रोक लगाना ही नहीं, बल्कि भिक्षुकों को बेहतर जीवन देने के लिए पुनर्वास की व्यवस्था करना भी है।
भविष्य की योजना और जनभागीदारी
भविष्य में प्रशासन जागरूकता अभियान को और तेज करेगा। इसके तहत स्कूलों, कॉलेजों, व्यापारिक संगठनों और समाज के विभिन्न वर्गों को शामिल किया जाएगा ताकि अधिक से अधिक लोग इस अभियान से जुड़ें। कलेक्टर ने कहा कि यदि लोग भिक्षा देना बंद कर दें, तो भिक्षावृत्ति की समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।
इंदौर प्रशासन का यह कदम शहर को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाकर सामाजिक सुधार की दिशा में एक मिसाल कायम कर सकता है। सख्त कार्रवाई के साथ-साथ भिक्षुकों के पुनर्वास की यह पहल एक समग्र समाधान की ओर इशारा करती है। जनसहयोग और जागरूकता के माध्यम से ही इस अभियान को सफल बनाया जा सकता है, जिससे इंदौर एक और स्वच्छ, सुरक्षित और सशक्त शहर के रूप में उभरेगा