राजनीत की नई परिभाषा गढ़ती “जनसुराज पदयात्रा” निशांत पटेल।


रिपोर्ट- मोनीश ज़ीशान
न्यूज़लाइन नेटवर्क वैशाली (बिहार)

देश और दुनिया में समय-समय पर कई पदयात्रा हुई है जिसके अपने मायने और महत्व हैं । लेकिन जनसुराज पदयात्रा अपने आप में एक अद्वितीय पदयात्रा है । जिसकी शुरुआत जन सुराज के सूत्रधार तथा भारत के प्रख्यात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के द्वारा 2 अक्टूबर 2022 को बिहार के पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा स्थित गांधी आश्रम से शुरू हुई जो विशुद्ध रूप से बिहार के लोगों को राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से जागरूक कर ऐसे लोगों के समूह को समाज से ढूंढ़कर निकालने का प्रयास है । जो बिहार की स्थिति को सुधारने में अपना योगदान दे सकें।
आखिर जन सुराज पदयात्रा की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे का कारण यह है कि आज की तारीख में बिहार की जो स्थिति है वह सिर्फ सत्ता परिवर्तन मात्र से नहीं सुधरने वाला है इसके लिए बिहार के लोगों को सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से जगाने की जरूरत है। आखिर जिस बिहार का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। जो बिहार साठ के दशक तक देश के अग्रणी राज्यों में शामिल था वह बिहार आज की तारीख में विकास के लगभग सभी मानकों पर देश में सबसे निचले पायदान पर है। जिस बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया के सभी क्षेत्रों से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे वह बिहार आज देश में सबसे अशिक्षित और बेरोजगारी वाला राज्य बनकर रह गया है। अगर इसके पीछे के कारणों का अध्ययन किया जाए तो बिहार के पिछड़ने के जिम्मेदार यहां के नीति एवं नियंता है जो भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत यहां के नेता हैं। विडम्बना यह है कि जिस किसी को इस राज्य की बागडोर मिली वह इस राज्य की चिंता को छोड़कर सत्ता के और अधिक चाहत में इस राज्य को जाति,धर्म एवं परिवारवाद के जंजाल में उलझा दिया।
इसलिए जनसुरज पदयात्रा का उद्देश्य बिहार के लोगों को समाजिक एवं राजनीतिक रूप से जागरूक कर ऐसे लोगों को ढूंढ कर जिम्मेदारी देनी है जो बिहार की व्यवस्था को बदल सके।
सत्ता परिवर्तन तो इस राज्य में होते रहे हैं लेकिन उससे इस राज्य की स्थिति नहीं बदली, हर किसी ने इस राज्य को न सुधरने वाला राज्य मानकर छोड़ दिया और इसी कारणवश जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर पदयात्रा के माध्यम से बिहार के लोगों को ही इस राज्य को सुधारने की जिम्मेवारी देने निकले हैं जो सभी दृष्टिकोण से सही भी है।
प्रशांत किशोर के शब्दों में, ‘बिहार की स्थिति को सुधारने कोई मंगल ग्रह से नहीं आएगा, इसकी जिम्मेवारी खुद बिहार के लोगों को ही लेनी होगी, तभी यहां की स्थिति बदलेगी।’ फिलहाल यह पदयात्रा 15 महीना में 12 जिलों का सफर तय कर चुकी है तथा अपने उद्देश्य के हर पहलुओं पर काम करते हुए प्रशांत किशोर के नेतृत्व में निरंतर आगे बढ़ रही है।
हम आशान्वित है कि यह पदयात्रा बिहार में व्यवस्था परिवर्तन के अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होगी।

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