अमलीडीह में बनेगा गुरुकुल, तैयारी शुरू, विशाल प्रांगण में देखती ही बनेगी गुरुकुल की भव्यता, 13 जून की रखी जाएगी आधारशिला

अमलीडीह में बनेगा गुरुकुल, तैयारी शुरू, विशाल प्रांगण में देखती ही बनेगी गुरुकुल की भव्यता, 13 जून की रखी जाएगी आधारशिला

NEWSLINE NETWORK, STATE BEURO
पाटन : राजधानी रायपुर से लगे पाटन ब्लॉक के ग्राम अमलीडीह में श्री सहजानंद इंटरनेशनल गुरुकुल शिक्षा के साथ साथ बच्चो को संस्कारवान बनाना, पर्सनालिटी डेवलपमेंट के साथ खेल के लिए क्षेत्र में जल्द ही एक नई पहचान बनाने वाली है। एक विशाल प्रांगण में गुरुकुल की स्थापना की तैयारी जोरों से चल रही है। जिसका विधिवत शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार , पूजा अर्चना के साथ 13 जून 2024 को होगा। इस गुरुकुल में नर्सरी क्लास से कक्षा बारहवी तक का सीबीएससी कोर्स संचालित किया जाएगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री स्वामी नारायण सेवा समिति द्वारा अमलीडीह में की श्री सहजानंद इंटरनेशनल गुरुकुल रायपुर का संचालन किए जाने निर्णय लिया गया है। इसकी आधारशिला 13 जून की रखी जाएगी। इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए सद शास्त्री घनश्याम प्रकाश दास जी और सद शास्त्री कृष्ण वल्लभ दास जी ने बताया की बच्चो को अच्छी शिक्षा के अच्छी संस्कार देना ही गुरुकुल की प्राथमिकता रहेगी। शिक्षा के साथ साथ राष्ट्रीय स्तर के खेल की सुविधा भीं प्रदान की जाएगी। उन्होंने बताया की आज शिक्षा के साथ साथ अच्छे संस्कार बच्चो के देना जरूरी होता का रहा है उसी को ध्यान में रखते हुए भगवत गीता का अध्ययन कराने विशेष क्लास भी लगाई जाएगी। इस संस्था से जुड़े हर्षद पटेल, लोकमणि चंद्राकर, प्रकाश चंद्रकार ने बताया की आज बच्चे पढ़ाई में इतने व्यस्त हो जा रहे है की उसे अपनी अन्य प्रतिभा जैसे खेल, संस्कृति, बौद्धिक क्षमता दिखाने का अवसर ही नही मिलता। श्री सहजानंद इंटरनेशनल गुरुकुल इन विषयों पर भी विशेष फोकस करेगा। संस्था का उद्देश्य बच्चो का सर्वांगीण विकास कराना है।
सद शास्त्री श्री घनश्याम प्रकाश दास शास्त्री ने आगे बताया की भारतीय तपोकालीन संस्कृति, सम्पूर्ण विश्व के लिए सदैव आदरणीय एवं वंदनीय रही है। इसका एक मात्र कारण यह है कि भारत में प्राचीनकाल से जो शिक्षा दी जाती है, वह गुरुकुलों से प्राप्त होती है । भगवान श्रीराम से लेकर सभी राजा-महाराजाओं ने गुरुकुलों में रहकर ही शिक्षा प्राप्त की है। हमारे ऋषि-मुनियों ने गुरुकुल के द्वारा ही संस्कार और शिक्षा को आज तक जीवित रखा है। एक समय ऐसा भी था कि गुरुकुल में दी जानेवाली शिक्षा से भारत वर्ष विश्वगुरु के नाम से जाना जाता था । देश का विकास और उन्नति तब ही हो सकती है जब शिक्षा व्यवस्था सही हो । हमारे भारत में गुरुकुल परंपरा सबसे पुरानी शिक्षा देने की व्यवस्था है। गुरुकुल की परंपरा से यह आधुनिक समाज संस्कार, संस्कृति, शिष्टाचार, सामाजिक जागरूकता, मौलिक व्यक्तित्व, बौद्धिक विकास और सभ्यता जैसे अमूल्य गुणों को अपनी आनेवाली सैकड़ो पिढ़ियों को विरासत में दे सकता है । गुरुकुल से जुड़े सभी लोग आगामी 13 जून को होने वाले कार्यक्रम की तैयारी में जुट गए है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!