कविता::
शीर्षक – प्रेमी करे कहीं और सगाई
प्रेमिका खुद को फांसी लगाई
~ एक बहुत संस्कारी लड़की
हुई जब पागल दीवानी,
हंसती गाती सदा खुश रहती वो
पर दर्द भरी उसकी कहानी।
~ दिल से किया वो एक लड़का से
आंखें बंदकर बेइंतहा प्यार,
रोज उनके लिए ही सुबहो शाम
करती थी सोलह श्रृंगार।
~छुप छुप कर दोनों कभी-कभी
अक्सर रात में मिला करते,
लेकिन जान न जाए लोग राज को
सोच बदनामी से डरते ।
~ न होंगे जुदा एक पल भी दोनों
खाये थे ऐसे अनेक कसम,
लड़का ने कैसे भुला दिए चाहत में
क्यों जाने निभाना धरम।
~ एक ही सरनेम था दोनों के बीच
बहुत बड़ा मजबूत दीवार,
और तकदीर ने भी किया दोनों से
बहुत बड़ा गहरा खिलवाड़।
~चुपचाप लड़का मानने लगा फिर
अपने पिता का हर कहना,
लेकिन लड़की एक पल भी नहीं
चाहते जीएं दूर होकर रहना।
~लड़का पिता के साथ बाहर जाकर
हर दिन लड़की लगा देखने,
और मानसिक चिंता में आकर वो
लगा रात रात भर जागने।
~जब एक गांव में फिर हो गया
पक्का उनका रिश्ता तय,
तब और अधिक बढ़ने लगे उनके
दिल में बहुत ज्यादा भय।
~जब लडका उधर परिवार के साथ
अपने करने को गया सगाई,
तब लड़की इधर अपने ही घर में
विवश होकर फांसी लगाई।
~लड़की के शव के साथ मिला
एक छोटी सुसाइड नोट,
जिससे उनके पिता के दिल को
लगा भी बहुत गहरा चोंट।
~वो अपनी मृत्यु का इल्ज़ाम
खुद अपनी ऊपर लिए थे,
मानो प्यार के लिए वो अपना
जीवन कुर्बान किए थे।
लेखक /कवि
विजय कुमार कोसले
सारंगढ़, छत्तीसगढ़ ।
Mo. 6267875476