कवि विजय कुमार कोसले ने मर्यादा लांघती रिश्तों की सख्त आलोचना कर कविता के माध्यम से समाज को दिशा संदेश। जरूर पढ़े कविता शीर्षक – जीजा साली की करतूत, घरवाली की जान ली लूट

… कवि विजय कुमार कोसले ने मर्यादा लांघती रिश्तों की सख्त आलोचना कर कविता के माध्यम से समाज को दिशा संदेश। जरूर पढ़े कविता शीर्षक – जीजा साली की करतूत, घरवाली की जान ली लूट।

जीजा साली की करतूत
घरवाली की जान ली लूट

~हुआ संयोग से एक लड़का का
एक लड़की से शादी,
फिर हो गये मनमानी के ठप
उनके सारे आजादी।

~कुछ सालों तक दोनों के बीच
रहा बहुत गहरा प्यार,
बाद में धीरे-धीरे पति देव का
बढ़ने लगा रूखा व्यवहार।

~ बहुत दिनों के बाद उनके घर
मेहमान आई जब साली,
दिखने में थी वो बहुत सुंदर और
आचरण भी थी भोली भाली।

~ जीजा जी भी खुशी खुशी उन पर
हर रोज खुब पैसा उड़ाते,
सुबह शाम कभी यहां तो कभी वहां
अपनी नई गाड़ी में घुमाते।

~चार दिनों में साली ने भा लिए
जीजा के बहुत ज्यादा मन,
लेकिन जीजा ने पाने को सोचा
साली के यौवन गोरा बदन।

~जब जीजा के पास साली एक दिन
बैठा बिस्तर में जाकर,
तब जीजा उनके हाथ खिंचकर
लिया उन्हें बाहों में भर।

~साली करने लगी हंस हंस कर
किस करने से इंकार,
लेकिन जीजा के मन भरा था
हवस का गहरा अंधकार।

~उस दिन से दोनों आधी रात को
उठ उठकर मिला करते,
पत्नी की परवाह छोड़कर वह फिर
साली की फ़िक्र बहुत करते।

~पति के रूखेपन से होने लगा
पत्नी को थोड़ा थोड़ा शक,
और उस पर नजर रखने लगा
रात के एक एक बजे तक।

~फिर एक रात पत्नी ने उन दोनों की
करतूतों को लिया जान,
फिर सोचा मिट्टी में मिला दिए दोनों
घर की इज्जत और सम्मान।

~पत्नी अकेले में पति को अगले दिन
बहुत विनम्रता से समझाया,
लेकिन पति ने उल्टा उसी को ही
चरित्रहीन कहकर हाथ उठाया।

~जब कुंवारी बहन की मां बनने की
खबर गई उसके कान में,
उसी दिन से वह मोह न रखा
तनिक भी अपनी जान में।

~फिर जीजा साली दोनों ने
लिया मंदिर में शादी कर,
और अपनी पत्नी के जीवन को
‌‍दी उसने कठिनाई से भर।

~फिर रहकर दोनों घर में बहुत
मौज मस्ती किया करते,
अंदर ही अंदर पतिदेव पत्नी को
गहरी चोट दिया करते।

~ हतास होकर पत्नी एक दिन
मौत की राह कदम उठाई ,
तंग आकर जीवन से फिर वो
ज़हरीली कीटनाशक खाई।

~जब चली गई भगवान शरन तो
मच गई त्राहि-त्राहि घर में,
जीजा साली दो पल सुकून न पाए
बात फैली जब सारी शहर में।

~धीरे धीरे उन दोनों को अपनी
ग़लती का एहसास हुआ,
जब कोई भी नाता रिश्ता उनके
न सुख दुःख में साथ हुआ।

लेखक/ कवि
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, सारंगढ़
छत्तीसगढ़।
मो न – 6267875476

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