दिवाली पर मिठाई से शुरू हुई भारत-चीन की दोस्ती: क्या खत्म हो गया तनाव?

भारत-चीन सीमा पर सैनिकों की वापसी और नए समझौते का महत्व

हालिया मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत और चीन के बीच स्थित गतिरोध वाले क्षेत्रों, विशेषकर देपसांग और डेमचोक, में सैनिकों की वापसी हो गई है। यह घटनाक्रम इस ओर इशारा करता है कि इन क्षेत्रों में शांति की बहाली की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। जल्द ही, इन टकराव बिंदुओं पर गश्त की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी। यह स्थिति तब सामने आई है जब दोनों देशों ने पिछले कुछ समय से तनाव को कम करने के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं।

मिठाइयों का आदान-प्रदान

दिवाली के अवसर पर, भारतीय और चीनी सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कई सीमा बिंदुओं पर मिठाइयों का आदान-प्रदान किया। यह एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और कूटनीतिक पहल है, जो दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने का संकेत देती है। भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने कोलकाता में मर्चेंट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक कार्यक्रम में यह कहा कि “भारत और चीन संबंधों की एक नई शुरुआत कर रहे हैं, और दोनों के सामने नए विकास के अवसर हैं।”

समझौते का आधार

सूत्रों के अनुसार, इस समझौते में दोनों पक्षों ने पहले हुए विभिन्न समझौतों और सहमतियों को फिर से ध्यान में रखा है। विशेष रूप से, 21 अक्टूबर को भारत और चीन के बीच सैनिकों की वापसी और गश्त शुरू करने के बारे में एक समझौते पर सहमति बनी थी। यह महत्वपूर्ण समझौता ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान किया गया, जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस विषय पर चर्चा की।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने समझौते की घोषणा करते हुए कहा कि यह संबंधों में सकारात्मक बदलाव लाएगा। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भी इस बात पर जोर दिया कि इस समझौते से दोनों देशों के बीच सीमा पर 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो जाएगी।

सीमाओं पर स्थिति

हालाँकि, यह समझौता केवल लद्दाख क्षेत्र के लिए लागू है। चीन सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों पर भी अपना दावा करता है, लेकिन वर्तमान में इस समझौते का दायरा केवल लद्दाख तक सीमित है।

रक्षा विशेषज्ञ एयर कमोडोर (डॉ.) अशमिंदर सिंह बहल ने बताया कि 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद, भारत और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया था। वे यह भी बताते हैं कि 2022 में दोनों देशों ने गलवान और पैंगोंग झील के मुद्दों को सुलझाने में प्रगति की है।

समझौते का प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देपसांग क्षेत्र एक 900 वर्ग किलोमीटर का समतल क्षेत्र है, जहाँ भारतीय सैनिकों द्वारा टैंकों का उपयोग किया जा सकता है। इससे पहले, भारतीय सैनिक इन क्षेत्रों में बिना किसी रुकावट के गश्त कर सकते थे, लेकिन चीन ने इस पर कब्जा कर लिया था और वहाँ अस्थायी संरचनाएँ बना दी थीं। अब समझौते के बाद, भारतीय सैनिक फिर से इन क्षेत्रों में गश्त कर सकेंगे।

भविष्य की दिशा

हालांकि, दोनों देशों के बीच यह समझौता एक प्रारंभिक कदम है। विशेषज्ञों का मानना है कि सैनिकों की वापसी के बाद, सीमा से आगे की गतिविधियों में सैनिकों की संख्या को सीमित करना, डिमिलिटराइजेशन (सैन्यीकरण हटाना) और डिएस्कलेशन (तनाव कम करना) जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना आवश्यक होगा। एयर कमोडोर बहल का कहना है कि “इस समझौते से भारत को अपने सैनिकों को आराम देने का मौका मिलेगा और उनकी प्रशिक्षण प्रक्रिया को भी बेहतर बनाया जा सकेगा।”

चीन पर भरोसे की चुनौतियाँ

हालाँकि, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस.पी. सिन्हा का मानना है कि यह पहली बार है जब चीन अपने सैनिकों को पीछे हटाने की दिशा में कदम उठा रहा है, लेकिन इसे स्थायी समाधान के रूप में नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, “चीन की सलामी स्लाइसिंग तकनीक के तहत, वह एक कदम पीछे खींचता है, लेकिन लगातार अपनी स्थिति को मजबूत करता रहता है।”

समझौते के अर्थ

2020 में लद्दाख में हुए संघर्ष के बाद, इस नए समझौते के पीछे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि पुतिन ने भारत और चीन के बीच संबंधों को सुधारने में मदद की, जिससे ब्रिक्स जैसे संगठनों की स्थिरता बनी रह सके।

भविष्य में संभावित प्रभाव

हालाँकि वर्तमान में यह समझौता लद्दाख के लिए है, लेकिन इसकी संभावित प्रभाव सीमाओं के अन्य क्षेत्रों, जैसे कि अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम, पर भी पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि लद्दाख में शांति बहाल होती है, तो यह पूर्वी भारत के अन्य क्षेत्रों में भी सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

भारत-चीन सीमा विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ

भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से गुजरती है। यह सीमा तीन मुख्य सेक्टरों में विभाजित है: पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख), मध्य सेक्टर (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड) और पूर्वी सेक्टर (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश)।

इन क्षेत्रों का सीमांकन अभी तक पूरी तरह से नहीं हो पाया है, और कई क्षेत्रों में मतभेद बने हुए हैं। उदाहरण के लिए, भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, जबकि चीन इसे अपने नियंत्रण में मानता है। पूर्वी सेक्टर में, चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है और इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है।

इस प्रकार, हालिया समझौता भारत-चीन संबंधों में एक नई दिशा दिखा रहा है। हालांकि यह केवल लद्दाख तक सीमित है, लेकिन इसके द्वारा शांति की संभावनाएँ बढ़ी हैं। दोनों देशों के लिए आगे की राह सतर्कता और समर्पण की मांग करती है, ताकि भविष्य में सीमा विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सके।

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