पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की समाधि पर सियासी विवाद: क्या है पूरा मामला?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनकी समाधि और स्मारक के स्थान को लेकर गहरा राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है। उनके निधन के बाद कांग्रेस और केंद्र सरकार के बीच मतभेद उभर आए हैं।
अंतिम संस्कार और विवाद की शुरुआत
मनमोहन सिंह का निधन गुरुवार को हुआ, और शनिवार को उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। उनका अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया गया। लेकिन कांग्रेस ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा कि मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार ऐसी जगह होना चाहिए था, जहां उनकी स्मृति के लिए एक स्थायी समाधि बनाई जा सके।
केंद्र सरकार ने समाधि के लिए एक अलग स्थान तय करने का निर्णय लिया है। हालांकि, कांग्रेस ने इसे लेकर सरकार पर तीखा हमला किया है। पार्टी इसे सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री के सम्मान के साथ समझौता बता रही है।
2013 का समाधि स्थल प्रस्ताव: पृष्ठभूमि
2013 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में यह निर्णय लिया गया था कि राजघाट परिसर के पास नई समाधियों का निर्माण न किया जाए। इसके बजाय, सभी वीवीआईपी समाधियों के लिए “राष्ट्रीय स्मृति स्थल” का उपयोग किया जाए।
इस नीति को लागू करने के पीछे प्रमुख कारण यह बताया गया था कि राजघाट और उसके आसपास जगह सीमित है। इसके अतिरिक्त, संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए साझा समाधि स्थल का विचार प्रस्तावित किया गया। इस फैसले को संसदीय मंजूरी के साथ लागू किया गया और इसे राष्ट्रीय स्मृति स्थल के रूप में मान्यता दी गई।
नीति के प्रभाव और उसका अनुपालन
2013 के बाद, राजघाट परिसर के आसपास समाधियों का निर्माण बंद हो गया। सभी प्रमुख नेताओं की समाधियां अब राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर बनाई जाने लगीं। इस नीति के तहत, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ज्ञानी जैल सिंह जैसे प्रमुख नेताओं की समाधियां भी यहीं पर बनाई गई हैं।
कांग्रेस का रुख और उसकी आपत्ति
कांग्रेस का कहना है कि मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर करना नीति का उल्लंघन है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार का स्थान उनकी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के अनुरूप होना चाहिए था।
खड़गे ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री को उचित सम्मान नहीं दिया। उन्होंने मांग की कि सरकार समाधि स्थल के लिए एक उपयुक्त स्थान आवंटित करे।
केंद्र सरकार की सफाई
गृह मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि समाधि के लिए स्थान तय करने और एक ट्रस्ट बनाने की प्रक्रिया में समय लगेगा। सरकार ने कहा कि यह निर्णय नीति के अनुसार लिया जाएगा और इसमें कोई अनियमितता नहीं हुई है।
समाधि स्थल निर्माण: परंपराएं और नीतियां
भारत में पूर्व प्रधानमंत्रियों की समाधि बनाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।
- जवाहरलाल नेहरू की समाधि “शांतिवन” राजघाट के पास है।
- इंदिरा गांधी की समाधि “शक्ति स्थल” और
- राजीव गांधी की समाधि “वीर भूमि” इसी परिसर में स्थित हैं।
आमतौर पर, समाधि स्थलों का निर्माण अंतिम संस्कार की जगह पर ही किया जाता है। समाधि स्थल निर्माण और रखरखाव का दायित्व केंद्र सरकार का होता है, लेकिन इसके लिए कोई सख्त नियम नहीं है। यह फैसला आमतौर पर नेता के ऐतिहासिक योगदान और राष्ट्रीय महत्व के आधार पर लिया जाता है।
राष्ट्रीय स्मृति स्थल बनाम राजघाट
राजघाट परिसर और इसके आसपास समाधियों के निर्माण की परंपरा 2013 के बाद से बदल गई। राष्ट्रीय स्मृति स्थल को साझा समाधि स्थल के रूप में विकसित किया गया। इसके तहत ज्ञानी जैल सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, और अन्य नेताओं की समाधियां यहीं पर बनाई गईं।
विवाद का कारण: नियम और सम्मान
कांग्रेस का तर्क है कि यदि 2013 की नीति लागू है, तो मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर क्यों नहीं किया गया। वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि यह निर्णय नियमों के तहत ही लिया गया है और समाधि स्थल के लिए स्थान आवंटन की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।
राजनीतिक संदेश और नतीजे
यह विवाद केवल समाधि स्थल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक संदेश भी निहित है। कांग्रेस इसे सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री के अपमान के रूप में प्रस्तुत कर रही है, जबकि केंद्र सरकार इसे नीति और नियमों के अनुसार सही ठहरा रही है।
यह मुद्दा सियासी गर्मी बढ़ाने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्मृति स्थल की प्रासंगिकता और समाधि स्थल निर्माण की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े कर रहा है।