संवत 1723 ईस्वी! सन 1666 पटना में माता गुजरी की कोख से एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम गोविंद राय रखा गया।
मुगलों का साम्राज्य.. चारों ओर घोर अत्याचार
आततायी औरंगजेब..! औरंगजेब के अत्याचारों से पीड़ित जब कश्मीरी पंडित श्रीगुरू तेग बहादुर जी के पास आए और उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई तब श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कहा “किसी महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है तभी हिन्दू धर्म की रक्षा हो सकती है।”तब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा “पिता जी आपसे बड़ा महापुरुष इस संसार में और कौन है?”
उस समय बालक श्री गोविंद राय जी की आयु केवल 9 वर्ष की थी संसार के इतिहास में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है..!जब धर्म की रक्षा के लिए 9 वर्ष के पुत्र ने अपने पिता को बलिदान की प्रेरणा दी हो।
औरंगजेब का काल तो हिंदू धर्म के लिए बहुत ही कठिन और परीक्षा का समय था वह इतना कट्टर था कि हिंदुओं को इस्लाम में शामिल करने के लिए वह अत्यंत कठोरता और अत्याचार का प्रयोग करता था। ऐसा समय आ गया था कि हिंदुओं का नामो- निशान ही धरती से मिट जाता धर्मांन्धता का यह तूफान पागलपन की इस्लामी बाढ़ हिंदुओं की तबाही के लिए अति भयानक थी। हिंदुओं में अब इस्लामी जबर और जोश का सामना करने की ना तो हिम्मत थी और ना हौसला था और ना सोच और ना ही धर्म बल और ना धन बल हिंदू जाति बिखरी हुई निर्बल और टुकड़े-टुकड़े हुई पड़ी थी और कराहती .. तड़पती दम तोड़ रही थी हिंदू धर्म अब पराधीन था निर्बल था और उस पर मुसीबत के पहाड़ टूटे हुए थे उसकी जीवन नौका तूफान में ऐसी घिरी हुई थी कि तट पर लगने की कोई आशा न थी उसका कोई तारणहार नहीं था हर ओर लहरों के थपेड़े और भंवरों के चक्कर थे परंतु ऐसी निराशा की दशा में अचानक एक श्रेष्ठ स्वरूप प्रकट हुआ जिसने हिंदू धर्म की नाव को तूफान से निकाल ही नहीं वरन् उसे किनारे पर जा लगाया हिंदू धर्म के सूख चुके उपवन के लिए अनुकंपा की वर्षा की।
जिस पौधे को गुरु नानक देव जी ने लगाया था जिसको गुरु अर्जन देव जी और गुरु हर गोविंद जी ने अपने रक्त का जल देकर और हड्डियों की खाद डालकर बड़ा किया था और जिसको गुरु तेग बहादुर जी ने अपने शीश का बलिदान देकर और रक्त जल देकर पाला पोसा था उसकी जड़ों को गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी माता चार पुत्रों पांच प्यारों और सहस्त्र श्रद्धालु सिख दुलारो के रक्त का दरिया बहाकर सिंचा। खालसा पंथ की स्थापना की जिसमें उन्होंने धर्म और जाति के भेद मिटा दिए।
जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तूंही ढरै।। नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंद काहू ते न डरै।।
संस्कृत के पर्याप्त ज्ञाता…अरबी,फारसी के विद्वान । प्राचीन इतिहास तथा धार्मिक पुस्तकें .. युद्धों से संबंधित वारें (वीर रस प्रधान कविताएं). लिखना और पढ़ना … वो उम्दा
घुड़सवार थे!राग संगीत में रूचि रखने वाले.. धर्म सुधारक.. पारदर्शी सिपाहसलार..!
“श्री गुरु गोबिंद सिंह जी संत थे! बहुत बड़े योद्धा और सिपाही!”
“सवा लाख से एक लड़ाऊॅ
चिड़ियन से मैं बाज तुड़ाऊॅ
तबे गोबिंद सिंह नाम कहाऊं!”
गुरु गोविंद सिंह जी सच्चे त्यागी थे और निष्काम देशभक्त! कृष्ण ने महाभारत में उपदेश करते कहा है कि.. सबसे बड़ा त्यागी पुरुष वह होता है जो दूसरों की भलाई के लिए अपने प्राण त्यागता है गुरु जी ने दूसरों के हित के लिए न केवल अपने प्राण ही त्यागे बल्कि उन्होंने सब कुछ जो कुछ भी इस दुनिया में उनका था और जो किसी इंसान के पास हो सकता है वह देशभक्ति में लगा दिया अपना सबकुछ राष्ट्र के नाम अर्पण किया अपना सारा कुटुंब राष्ट्र के नाम निछावर कर दिया।
महरुम शायर”अल्ला यार खां जोगी’ के अल्फाज़
“करतार की सौगंध है
नानक की कसम है
जितनी भी हो
गोबिंद की तारीफ
वो कम है”
आलेख – बलजीत कौर “सब्र” रायपुर