सिलथम के आयुर्वेदिक अस्पताल पर ताला: गरीबों की सेहत पर सरकारी लापरवाही का वार।

सोनभद्र-जहां सुई की जरूरत थी, वहां तलवार चला दी गई।

न्यूजलाईन नेटवर्क- जिला संवाददाता

सोनभद्र / उत्तर प्रदेश-चतरा विकासखंड के सिलथम गांव में स्थित राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बंद करने की चर्चा ने ग्रामीणों को ऐसे बेचैन कर दिया है। जैसे किसी प्यासे के सामने पानी का घड़ा तो रखा हो पर उसे पीने से मना कर दिया जाए। तीन दशक से संचालित यह आयुर्वेदिक अस्पताल क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनरेखा था। नक्सल आंदोलन के दौर में जब यहां न अस्पताल थे न दवाखाने, तब यह अस्पताल गरीबों के लिए भगवान का घर बन गया था। लेकिन अब सरकारी मशीनरी ने अचानक फैसला किया कि इस अस्पताल पर ताला जड़ दिया जाए। ग्रामीणों की नाराजगी इस कदर है कि उन्होंने मुख्य चिकित्सा अधिकारी और अन्य अधिकारियों को गुहार लगाई है।

लोगों का कहना है कि आयुर्वेदिक अस्पताल जहां सेहत की जड़ी-बूटियां खिलती थीं। इस अस्पताल में प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति से इलाज किया जाता था। जड़ी-बूटियों और आयुर्वेदिक औषधियों का ऐसा जादू था कि यहां के गरीब मरीज, जिनके पास महंगे इलाज का पैसा नहीं था, चुटकियों में ठीक हो जाते थे। लेकिनसरकार को जमीनी सच्चाई से कब फुर्सत!अब यहां के लोगों से उनकी यह राहत भी छीनी जा रही है। इसी क्रम में बतातें चलें कि गांववालों की व्यथा: ऊंट के मुंह में जीरासरकारी योजनाएं बनती तो हैं लेकिनऊपर का चक्कर ऐसा कि नीचे कोई सुध ही नहीं। सिलथम के लोग इस अस्पताल के भरोसे थे। लेकिन अब यह खबर सुनकर उनकी स्थिति उस किसान जैसी हो गई है। जिसकी फसल काटने से पहले ही उसे नष्ट कर दी जाए। उनका कहना है कि अगर अस्पताल बंद हुआ तो उन्हें मजबूरन सड़कों पर उतरना पड़ेगा। लापरवाह सरकारी व्यवस्था पर तीखे सवाल सरकारी विभागों की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजमी है।

आखिर इस अस्पताल को बंद करने का तर्क क्या है क्या यह इसलिए कि यह गरीबों का अस्पताल है?

क्या इसलिए कि यहां की आयुर्वेदिक पद्धति आधुनिक दवाइयों से सस्ती और कारगर है? या इसलिए कि सरकार को “कागजों में विकास” दिखाने का जुनून है? नाच ना जाने आंगन टेढ़ा वाली बात है। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि वे लोगों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि उनकी योजनाएं कागजों से बाहर नहीं निकलतीं। सरकारी लापरवाही: गरीबों के लिए ढाक के तीन पात। सरकारें अक्सर कहती हैं कि गरीबों के लिए काम कर रही हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध। आयुर्वेदिक अस्पताल की बंदी का निर्णय इस बात का प्रमाण है कि गरीबों की जिंदगी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। क्या होगा ग्रामीणों का भविष्य सिलथम के लोग अब अपने नेताओं और अधिकारियों से उम्मीद लगाए बैठे हैं। उन्होंने पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी आवाज सत्ता के गलियारों तक पहुंचेगी?

या फिर यह भी भैंस के आगे बीन बजाने जैसा ही साबित होगा? अगर अस्पताल बंद हुआतो यह उस गरीब मरीज के लिए मौत का फरमान होगा।जिसके पास महंगे इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे वाली कहावत यहां फिट बैठती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा क्षेत्र के लिए वरदान है।लेकिन अगर इसे बंद कर दिया गया तो यह एक ऐसी चोट होगी जो गांव के लोगों को सालों तक दर्द देती रहेगी। सरकार को चाहिए कि वह कागजों से बाहर निकलकर जमीन पर देखे और यह सुनिश्चित करे कि गरीबों के स्वास्थ्य का अधिकार छीना न जाए वरना आने वाले दिनों घर फूंक तमाशा देखने की कहावत सच साबित होगी।

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