कजरी डांस और लोक गीतों पर झूमे तमिल डेलीगेट्स

काशी-तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण के  सांस्कृतिक कार्यक्रमों की  छठवीं संध्या में नौ प्रस्तुतियां

काशी और तमिलनाडु के फोक और शास्त्रीय कलाकारों ने मोह लिया मन

ब्यूरो रिर्पोट सत्याभूषण तिवारी, वाराणसी।

काशी-तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छठवीं संध्या पर  काशी और तमिलनाडु के नौ तरह के सांस्कृतिक मंचन हुए। शनिवार को तमिलनाडु से वाराणसी पहुंचे सभी आध्यात्मिक डेलीगेशन में नमो घाट पर आयोजित प्रस्तुतियों को देखा। मां गंगा के तट पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देख और सुन सभी डेलीगेट्स मंत्रमुग्ध नजर आए। काशी तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण का आयोजन उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र प्रयागराज एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र तंजावूर, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया गया है। 

शनिवार शाम की पहली प्रस्तुति वाद्य लोक आधारित ट्राइबल डांस, कनियाकूथू की रही। तमिलनाडु के तिरुनिवेली से आए एस थंगराज और टीम वाद्य कला कला पर साथी किन्नर कलाकारों ने साड़ी में बड़ा आश्चर्यजनक नृत्य किया। 

दूसरी प्रस्तुति आर गीता द्वारा क्लिकुम्मी कुट्टम की रही। खेतों को सूखा से बचाने के लिए बारिश कराने की यह खास म्यूजिकल पद्धति नमो घाट पर जीवंत हो उठी। कोंडवा अड़ी-कोंडवा अड़ी गाते हुए महिलाओं ने डांडिया के साथ नृत्य किया। इस दौरान लाइव गायन भी चल रहा था। 

तीसरी प्रस्तुति में काशी के अंशुमान महाराज और बाकी कलाकारों के वाद्य यंत्रों के नाम रही। इस दौरान उन्होंने वाद्य यंत्रों से राग बागेश्वरी का धुन बजाया। चौथी प्रस्तुति वाराणसी के भजन गायक डॉ. विजय कपूर और टीम ने जोरदार प्रस्तुति दी। “ऊंचा है धरम-दीन, इमान है गंगा’,”रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे हैं, जो पेड़ हमने लगाया पहले, उसी का फल हम अब पा रहे हैं’ गाकर नमो घाट की महफिल बना दी। इसके बाद उन्होेंने हैरत इलाहाबादी की रचना “आगाह अपनी मौत से कोई बसर नहीं”…. और “सज धज कर जिस दिन मौत कर शहजादी आएगी, न साेना काम आएगा न चांदी आएगी….’ गाकर दर्शकों और डेलीगेट्स को असल दुनियादारी से परिचित कराया। 

पांचवीं प्रस्तुति तमिलनाडु के कलाकारों के नाम रही। नृत्यांगना और कोरियाग्राफर गुरु अरुणा सुब्रमण्यम और उनकी शिष्याओं द्वारा भरतनाट्यम की बड़ी मनोरम प्रस्तुति दी गई। उन्होंने पुष्पांजलि, जिसमें भगवान गणेश की प्रार्थना, लिंगाष्टकम, शिवारंजिनी, मोहनानादमओदू आदि कई तरह की भरतनाट्यम नृत्य विधाओं पर अपनी प्रस्तुतियां दीं। 

छठवीं प्रस्तुति यूपी के कलाकारों के नाम रही। शास्त्रीय नृत्य के बाद कजरी फोक डांस ने तमिल डेलीगेट्स को मुग्ध कर दिया। वाराणसी की स्मृति साही और टीम ने कइसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरे आई ननदी, सइंया मिले लरकईयां मैं का करूं आदि पर जोरदार डांस कर पूरे नमो घाट को झूमा दिया। घाट पर युवाओं का टोली भी नाचने गाने लगी।  

सातवीं प्रस्तुति थपट्टम की रही, जिसमें विल्लुप्पुरम से आए कलाकारों ने वाद्य यंत्रों से समा बांध दिया। आठवीं प्रस्तुति कारागट्टम, नयांदी मेलम की रही। कलासुदारमणि और उनकी टीम की यह प्रस्तुति काफी मनमोहक रही। तमिलनाडु के वी अरिचंद्रन की नौवीं प्रस्तुति कालीकट्टम, करुप्पासामी, अट्टम, कवाडी, पिकॉक डांस की रही। इस प्रस्तुति में कलाकार मोर, नंदी समेत कई तरह के रूप धारण कर मंच पर नृत्य करते रहे।

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