
💥 सच बोलती कविता ::
कवि विजय कुमार कोसले ने ग्रामीण इलाकों केमनरेगाकामों में हों रहे धांधली को कविता के रूप देकर सरपंच सचिव का खेल बताया साथ ही शासन प्रशासन से इस पर कड़ी निगरानी की अपेक्षा जताया::
शीर्षक – सरकारी काम व्यापारी दाम
~होते शुरू जब गांव – गांव में
सरकारी राहत के काम,
सरपंच सचिव रो.सहायक संग
इंजीनियर पाते मोटा दाम।
~सरपंच महोदय जनपद जाकर
कई काम गांव विकास में लाते,
फिर सब जनता के हक मारकर
फ्री में लाखों रूपया खाते।
~इंजीनियर भी काम पास करने पर
लाख रुपय के करते सौदा ,
सरपंच जी के फिर राजी खुशी में
सब पाते पैसा खाने के मौका।
~पंच सरपंच संग सचिव सहायक
बड़ चढ़ के सब धरम निभाते,
जब एक सौ आदमी काम करें तो
दो सौ लोगों के हाजरी चढ़ाते।
~काम में कुछ भी जोर नहीं रहते
बस जमीन को छोलते सब,
जल्दी भी घर आते हैं कहकर
भेद कोई नहीं खोले तब।
~पंच सब मिलकर पैसा उकारते
बिन कमाये सब मजदूर के,
मात्रा दो सौ देकर सब पैसा ले लेते
नहीं कमाये कारन कसूर के।
~पैसा पाने के लिए कर्मचारी सब
दिन-दिन हो रहें हैं बेईमान,
गरीब मजदूर के कोई फरियाद न सुने
हाथ मल किस्मत कोस रहें इंसान।
कवि/ लेखक
विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, सारंगढ़
छत्तीसगढ़ ।
मो.- 6267875476