कवि लेखक विजय कुमार कोसले ने ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत के ग्राम प्रधान/सरपंच बने जनप्रतिनिधियों की राज को कविता के माध्यम से किया उजागर:: जरूर पढ़े कविता शीर्षक – एक भ्रष्ट और स्वार्थी ग्राम प्रधान।

।। एक भ्रष्ट और स्वार्थी ।।
ग्राम प्रधान

~भ्रष्ट स्वार्थी ग्राम प्रधान की
आओ बात बताऊं,
पैसों के लिए इमान बेच रहे
क्या क्या दुःख सुनाऊं।

~ हर काम करें खुदगर्जी से
मतलबी मनमानी,
ग्रामीणों के दुःख पीड़ा और
जनहित भाव न जानी।

~ हर गलत और बुरे कर्मों में
उनके रंगे हुए हैं हाथ,
जुआ सट्टा में युवाओं के
वो हरपल देते साथ।

~ गरीब मजदूर ग्रामीण का वो
करते कभी न आदर,
उल्टा उनके सब पैसा खाकर
करें कई पाप उजागर।

~गांव के शातिर आदमी कुछ
अपनी ओर मिलाये रखें,
साथ देने के बदले में सबको
रम विस्की पिलाये रखें।

~ ग्रामीण मजदूर जब भी उनसे
करें बात विकास की,
पल भर में ही गला घोट देते
सब उम्मीदें विश्वास की।

~ मनरेगा के काम में बढ़ चढ़
करते बहुत घोटाला,
सौ आदमी के काम करने पर
डेढ़ सौ उपस्थित डाला।

~ रत्ती रत्ती का रोज ध्यान रखें
अपने हर एक काम का,
ऐसे काम में आगे आते जिसमें
मुनाफा हो ज्यादा दाम का।

~गरीब मजदूरों की कमाई को
बार बार भी छीन जाते,
रोज गांव में लड़ाई झगड़ा होकर
गुजरता उसके दिन जाते।

~ कभी काम न करें मिले जिससे
ग्रामीणों की दिल को चैन,
शायद तरसते रहेंगे खुशी के लिए
मजदूरों की हृदय और नैन।

 *कवि/लेखक/ पत्रकार,* 
  *विजय कुमार कोसले* 
 *नाचनपाली,लेन्ध्रा छोटे* 
  *सारंगढ़ , छत्तीसगढ़ ।* 
*मो नं - 6267875476*

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