💥 कविता ::
शीर्षक – नि: स्वार्थ परिश्रम
~ कर रहे हैं दिन रात परिश्रम
बिना फल के आश की,
समर्पित हो रहें पुरा जीवन
उनके हर एक सांस की।
~त्याग दिये हैं उसने जीवन से
अपनी हर एक भोग का,
हर दिन गुनगान कर रहे बस
केवल अपनी योग का।
~मिल रहे अब ढेरों दुआएं
नि: स्वार्थ उनके काम का ,
और वह सदा भजन करते
प्रभु के पावन नाम का।
~मिल रहे हैं फल थोड़ा थोड़ा
उनको अच्छे व्यवहार की,
बसे हुए हैं दिल में उसके रूप
अविनाशी निराकार की।
~आते नहीं है मन में उनके
स्वार्थों के कोई अंधकार,
विश्वास रखें हैं जरूर होगा
उनके कर्मों का स्वीकार।
~दीप जलाये बैठे हैं मन में
ऐसे दृढ़ विश्वास की,
खत्म होगी जरूर एक दिन
अपनी ओझल तालाश की।
सार,
~त्याग तपस्या और सत्य धर्म से
नि: स्वार्थ परिश्रम जो करें,
ईश्वर भी उन्हें अच्छे मुकाम में लेकर
खुशी से दामन उनके भरें।
लेखक /कवि
विजय कुमार कोसले
सारंगढ़, छत्तीसगढ़।