💥 छत्तीसगढ़ी कविता
आषाढ़ महिना
आषाढ़ महिना म देख संगी
झर झर बरसे पानी,
लेंटर वाला घर मजा मारे त
चूहे घपरा छानी।
नरियाए बेंग्वा जम्मो कोति
पानी के डंका पीटे,
खेत खार सब परिया झरीया
हरियर हरियर दिखे।
गरज गरज के पानी गीरे
हवा मारे सर सर,
कई जगह लाइन तार टूटे म
अंधियार रइथे घर घर।
खेतखार में बतरकिरी उड़े
खावय बिछी सांप,
निकले गौंहा डोमी देख के
जिवरा जाथे कांप।
तरिया नरवा म पानी भरगे
खेत म धार बोहागे,
धान बोय के बतर अगोरा म
किसान के मूड़ पीरागे।
धान रोपे बर कतको किसान
लौहाती थरहा देवय,
खरी खातू संग दवाई माटी ल
बिसा सकेरहे लेवय।
लेखक/ कवि
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विजय कुमार कोसले
नाचनपाली, सारंगढ़
छत्तीसगढ़ ।
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