हाँ तो आपने अपनी और अपनों की जान का सौदा कितने मे किया?? चौँक गए ना साहब??

लेख:–परमानंद सागर, ब्यूरो चीफ–गाजियाबाद:

अपनी जिम्मेदारियों का ठीकरा हम अक्सर किसी न किसी के उपर फोड़ते रहते है। लेकिन कभी खुद से सवाल करने की हिम्मत नही कर पाते। समाज में ऐसी कई कमियां/खामियां जीवन के साथ चल रही है लेकिन जब तक किसी बड़ी दुर्घटना का समाचार हमारे न्यूज चैनलों पर नही चलती तब तक उसकी चर्चा करना हम गुनाह समझते है।

क्या आपने कभी पूछा है??
(1) जिन मेंहेंगे स्कूलों मे आपके नौनीहाल पढ़ते हैँ कभी उस स्कूल-प्रबंधन से पूछा है कि यदि अचानक कोई हादसा हो जाए तो उस से निपटने के क्या इंतज़ाम हैँ स्कूल-प्रबंधन के पास??
(2)किसी-किसी स्कूल मे तो आपको मूल-बूत ज़रूरतों का ही आभाव देखने को मिलेगा
(3)पिछले दिनों एक प्राइवेट नर्सिंग होम मे नर्सिंरी-वार्ड मे आग लगने से कितने ही नौनीहालों की जान चली गई थी गाजियाबाद के नजदीक ही घटना है
(4) क्या हम अभिभावकों को ऐसी घटनाओं से सबक लेकर थोड़ा अलर्ट-मोड़ पर आकर जिस स्कूल मे हमारे बच्चे 4 से 6 घण्टे तक रहते हैँ कभी उसका जायजा लेने की कोशिश की है??
(5) अधिकतर स्कूलों मे अग्नि-श्मन सिलेंडर तक नहीं हैँ
और अगर हैँ भी,तो उन्हें स्तेमाल कैसे करें घटना के समय,ये अधिकतर स्टॉफ को पता ही नहीं होता।
(6) आपका कर्तव्य और हक़ दोनों हैँ जिन स्कूलों को फीस के नाम पर बहुत मोटी रकम आप अदा करते हो,जहाँ आपके नौनीहालों का समय बीतता है
वहां आग लगने जैसे त्रासदी ना हो,या कोई भी दुर्घटना होने पर उस से निपटने के क्या इंतजाम हैँ
ये जाने,खुद देखें

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