पत्रकार पर गिरफ्तारी की तलवार, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐसा चौंकाने वाला फैसला जो बदल देगा सबकुछ!

सुप्रीम कोर्ट: “सरकार की आलोचना के आधार पर पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए”

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के खिलाफ दर्ज किए गए मामले में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए कहा कि सिर्फ सरकार की आलोचना करने के आधार पर किसी पत्रकार के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना संविधान के अनुच्छेद 19(1) का उल्लंघन है।

मामले का संदर्भ

यह मामला तब सामने आया जब पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके द्वारा की गई सरकार की आलोचना के लिए मुकदमा दर्ज किया। उपाध्याय पर आरोप था कि उन्होंने अपने लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट्स में सरकार की नीतियों और कार्यशैली की आलोचना की थी, जो कथित रूप से “सरकार-विरोधी” थी। इन पोस्ट्स के बाद पुलिस ने उनके खिलाफ मामले दर्ज कर लिए, जिससे यह सवाल उठने लगा कि क्या किसी पत्रकार को सिर्फ सरकार की आलोचना करने के लिए कानूनी कार्रवाई का सामना करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस को नोटिस जारी किया और उनसे जवाब मांगा। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि पत्रकारों को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। यह स्वतंत्रता लोकतंत्र की नींव है, और इसके बिना स्वतंत्र पत्रकारिता की कल्पना नहीं की जा सकती। न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार की आलोचना करना या उसकी नीतियों पर सवाल उठाना लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है और इसे अपराध नहीं माना जा सकता।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि संविधान का अनुच्छेद 19(1) प्रत्येक नागरिक को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यह मौलिक अधिकार न केवल सामान्य नागरिकों, बल्कि पत्रकारों के लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि एक स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र की मजबूत बुनियाद है और इसका दायित्व है कि वह बिना किसी डर के सरकार की नीतियों की जांच-पड़ताल और आलोचना करे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकारों पर केवल इसलिए मुकदमा दर्ज करना कि उन्होंने सरकार की आलोचना की, संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। न्यायालय ने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह अनिवार्य है कि मीडिया और पत्रकार स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त कर सकें, चाहे वह सरकार के खिलाफ ही क्यों न हो।

फैसला: एक नई मिसाल

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि सरकार के आलोचक पत्रकारों को कानूनी कार्यवाही से डराने-धमकाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पत्रकारों का काम ही सरकार की नीतियों की आलोचना करना, उन्हें जनता के समक्ष लाना, और समाज में जागरूकता फैलाना है। यह फैसला न केवल पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि पूरे मीडिया जगत के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाया नहीं जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला पत्रकारों को उनके अधिकारों के प्रति आश्वस्त करता है कि वे बिना किसी डर के अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं और सरकार की आलोचना कर सकते हैं। यह निर्णय यह भी याद दिलाता है कि लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका सरकार की जाँच-पड़ताल करना और जनता की आवाज़ को ऊपर उठाना है, जिसे किसी भी प्रकार से रोका नहीं जा सकता।

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