भाजपा की चौंकाने वाली हैट्रिक: हरियाणा चुनाव में जाट फॉर्मूला से कैसे रचा इतिहास?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जबरदस्त बहुमत हासिल कर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का रिकॉर्ड बनाया है। मंगलवार शाम साढ़े चार बजे तक के रुझानों के अनुसार, भाजपा 49 विधानसभा सीटों पर जीत की ओर बढ़ रही थी। भाजपा का ‘जाट बनाम गैर-जाट’ रणनीति इस चुनाव में निर्णायक साबित हुई, जिससे पार्टी ने अपने समर्थकों को बड़े पैमाने पर जुटाने में सफलता प्राप्त की।

भाजपा की रिकॉर्ड जीत: पाँच प्रमुख कारण

1. ‘नायब’ सिंह सैनी की नियुक्ति ने बदला समीकरण

आरएसएस से जुड़े और पंजाबी समुदाय के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में 9.5 वर्षों तक सेवा दे चुके थे, लेकिन भाजपा ने उनके प्रति बढ़ती नाराजगी को समय रहते भांप लिया। इस चुनाव से केवल छह महीने पहले, मार्च 2024 में, खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद पर बिठा दिया गया। यह बदलाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि राज्य की 44% ओबीसी आबादी को सैनी के रूप में एक नया नेता मिला, जिससे भाजपा को मजबूती मिली।

किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के विरोध के कारण खट्टर के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी लहर को देखते हुए, उन्हें चुनाव प्रचार से भी दूर रखा गया। यहां तक कि राज्य में लगे ज्यादातर पोस्टर्स और प्रचार सामग्री से उनका चेहरा गायब था। प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा में चार रैलियां कीं, जिनमें से केवल एक में खट्टर उपस्थित थे।

2. जाट बनाम गैर-जाट रणनीति की सफलता

हरियाणा की सामाजिक संरचना में 36 से अधिक बिरादरी शामिल हैं, जिनमें से जाट सबसे बड़ी आबादी हैं। भाजपा ने गैर-जाट मतदाताओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए, ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी और राजपूत समुदायों को संगठित किया। पिछड़े वर्ग और दलित मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश की गई। इस रणनीति ने 2014 और 2019 के बाद 2024 में भी सफलता दिलाई।

हरियाणा की अनुसूचित जातियों (SC) की कुल जनसंख्या लगभग 20% है, जिनके लिए 17 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने 17 में से 4 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार यह संख्या बढ़कर 7 हो गई, जो भाजपा की मजबूत पकड़ का संकेत है।

3. नए उम्मीदवारों की ताजपोशी

भाजपा ने चुनाव से पहले 25 सीटों पर उम्मीदवार बदलने का फैसला किया। मंगलवार शाम तक के रुझानों के अनुसार, इनमें से 16 उम्मीदवार या तो जीत गए थे या आगे चल रहे थे। भाजपा ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 49 पर पार्टी जीत रही थी, यानी कुल 56% सीटों पर जीत हासिल कर रही थी। प्रत्याशी बदलने की यह रणनीति कारगर रही, क्योंकि 67% नए उम्मीदवार जीत रहे थे या बढ़त बनाए हुए थे।

4. जजपा के टूटते जनाधार का फायदा

2019 के विधानसभा चुनाव में जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने 10 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसका जनाधार कमजोर हो गया। जजपा की कई सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को बढ़त मिली। भाजपा ने चार सीटों पर कब्जा किया, जिनमें से दो बांगर और दो बागड़ बेल्ट की थीं।

2019 में भाजपा और जजपा ने गठबंधन कर सरकार बनाई थी, जिसमें जजपा नेता दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन मार्च 2024 में भाजपा ने जजपा से गठबंधन तोड़कर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिससे भाजपा को इस चुनाव में जजपा के कमजोर होते जनाधार का सीधा फायदा मिला।

5. भाजपा की आक्रामक चुनावी रैलियां

इस चुनाव में भाजपा ने 150 से अधिक रैलियां कीं। प्रधानमंत्री मोदी ने चार रैलियों में हिस्सा लिया और गृह मंत्री अमित शाह ने 10 रैलियों में भाग लिया। मोदी की चार रैलियों ने 20 सीटों को कवर किया, जिनमें से 10 पर भाजपा जीत दर्ज कर रही थी।

इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कई सभाएं कीं। 40 से अधिक केंद्रीय मंत्री और सांसद भी भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार करते नजर आए। कांग्रेस की तुलना में, जिसने केवल 70 सभाएं कीं, भाजपा का प्रचार अभियान कहीं अधिक व्यापक और प्रभावशाली रहा।

कांग्रेस ने केवल चार रैलियां और दो रोड शो किए, जिनमें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी शामिल हुए। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी दो रैलियां कीं, लेकिन यह प्रयास भाजपा के आक्रामक अभियान के सामने कमजोर साबित हुआ।

इस चुनाव में भाजपा की जीत कई कारकों का परिणाम है, जिसमें रणनीतिक बदलाव, प्रत्याशियों का चयन, जजपा के टूटते जनाधार का फायदा, और कांग्रेस की अपेक्षाकृत कमजोर प्रचार मुहिम शामिल हैं। भाजपा की आक्रामक और सुनियोजित रणनीति ने पार्टी को हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का मौका दिया, जो राज्य के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय है।

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