सनातन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व है, और यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दीपावली के इस पावन अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, क्योंकि शास्त्रों में मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इसी कारण हर वर्ष इस दिन लक्ष्मी पूजन का आयोजन किया जाता है। साथ ही, त्रेता युग में भगवान श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे, तो नगरवासियों ने उनका स्वागत दीप जलाकर किया था। इस परंपरा को आज भी दीपावली के रूप में हर्षोल्लास से निभाया जाता है। यह पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है और इसे हर वर्ष उल्लास और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
इस वर्ष कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3:52 बजे शुरू होकर 1 नवंबर को शाम 6:16 बजे समाप्त होगी। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा, और लक्ष्मी पूजन का शुभ समय संध्या 5:36 बजे से रात 8:51 बजे तक रहेगा। इस मुहूर्त में मां लक्ष्मी का पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है, और सुख, शांति, एवं समृद्धि की प्राप्ति मानी जाती है।
दीपावली पूजा विधि
दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान है। पूजा विधि इस प्रकार है:
- स्नान और शुद्धिकरण: पूजा से पहले साधक को गंगाजल या पवित्र जल से स्नान करना चाहिए और स्वयं को आचमन द्वारा शुद्ध करना चाहिए। इसके बाद पीले रंग का वस्त्र धारण करें, क्योंकि पीला रंग शुद्धता और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है।
- पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर लक्ष्मी-गणेश की नवीन प्रतिमा स्थापित करें। पीले वस्त्र पर मूर्तियों का स्थान साफ और सौम्य ऊर्जा प्रदान करने वाला होना चाहिए।
- आवह्वान और ध्यान: पूजन में ध्यान मंत्र और आवाहन मंत्र का पाठ करें जिससे कि मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का आवाहन हो सके। इसके बाद पंचोपचार (सुगंध, पुष्प, दीप, धूप, एवं नैवेद्य) द्वारा विधिपूर्वक पूजन करें और शास्त्रीय नियमों का पालन करें।
- समर्पण: पूजा के दौरान मां लक्ष्मी को फल, फूल, धूप, दीप, हल्दी, अक्षत (अखंडित चावल), बताशे, सिंदूर, कुमकुम, अबीर-गुलाल, सुगंधित द्रव्य और नैवेद्य आदि समर्पित करें। मां लक्ष्मी को ये भेंट वस्त्र, आभूषण और मिठाइयों सहित अर्पित की जाती हैं।
- लक्ष्मी स्तोत्र और चालीसा पाठ: पूजा के दौरान लक्ष्मी चालीसा का पाठ, लक्ष्मी स्तोत्र, और लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें। इसके द्वारा साधक लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त कर सकता है।
- आरती: पूजा के अंत में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती करें। आरती के दौरान सभी परिजन मिलकर भक्ति के भाव से आरती गाएं और दीप जलाएं। आरती के बाद प्रसाद वितरण करें।
सात्विक दीपावली मनाने के उपाय
- मिट्टी के दीपकों का उपयोग: दीवाली पर मिट्टी के दीये जलाने से पर्यावरण को कोई हानि नहीं होती है, क्योंकि यह दीये प्रकृति के अनुकूल होते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, दीपावली के दिन मिट्टी के दीये जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक हैं, और इन्हें जलाने से आंतरिक आनंद की अनुभूति होती है।
- पर्यावरण के अनुकूल पटाखे: हालांकि दीवाली पर पटाखों का चलन आम है, लेकिन ध्वनि और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल पटाखों का उपयोग करें। कृत्रिम आतिशबाजी का चयन करें ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा भी बनी रहे।
- सम्बंधितों से मेल-जोल: दीवाली का पर्व खुशियां बांटने और रिश्तों को सुदृढ़ करने का अवसर है। इस दिन परिवार, मित्रों, और अपने परिचितों से मिलकर उन्हें दीवाली की शुभकामनाएं अवश्य दें। मिठाई बांटकर और खुशी साझा करके आप इस पर्व को और भी विशेष बना सकते हैं।
दीवाली से जुड़ी कथाएं
दीपावली से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं जो इस पर्व के महत्व को और अधिक बढ़ाती हैं:
- समुद्र मंथन की कथा: एक मान्यता के अनुसार, चिरकाल पूर्व ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीविहीन हो गया था। इस अवसर का लाभ उठाकर दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया, और देवी लक्ष्मी के विहीन होने से देवता युद्ध में टिक नहीं सके। तब देवता भगवान विष्णु के पास गए, जिन्होंने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी। देवताओं ने दानवों के सहयोग से समुद्र मंथन किया, जिसमें अमृत और लक्ष्मी देवी का प्राकट्य हुआ। अमृतपान कर देवता अमर हो गए, और मां लक्ष्मी के आशीर्वाद से स्वर्ग में सुख-समृद्धि लौट आई। इसी दिन को लक्ष्मी पूजन के रूप में दीपावली के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
- अयोध्या में श्रीराम का स्वागत: एक और कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम जब अपने 14 वर्षों के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे, तो नगरवासियों ने उनकी वापसी की खुशी में पूरे नगर को दीपों से सजा दिया। इसी परंपरा को जीवित रखते हुए हर वर्ष दीपावली का पर्व मनाया जाता है, और इसे प्रकाश पर्व के रूप में संजोया गया है।
- राजा बलि और लक्ष्मी पूजन: एक अन्य कथा के अनुसार, राजा बलि के अनुरोध पर मां लक्ष्मी की पूजा कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक की जाती है। राजा बलि के समय से मां लक्ष्मी का यह पूजन विधि-विधान से चला आ रहा है, जो आज भी दीपावली के मुख्य अनुष्ठानों में से एक है।
दीपावली का यह पर्व हमें केवल धार्मिक आस्था से नहीं जोड़ता बल्कि प्रेम, सौहार्द, और उत्साह की भावना का भी संदेश देता है।