गोमती तट पर स्थित 5000 वर्ष पुराना दिव्य वृक्ष: सुल्तानपुर का रहस्यमय पारिजात
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर, न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां स्थित एक विशेष वृक्ष इसे और भी खास बनाता है। गोमती नदी के किनारे स्थित यह वृक्ष ‘पारिजात’ या ‘कल्पवृक्ष’ के नाम से जाना जाता है। इसे देवताओं का वृक्ष माना जाता है और इसकी धार्मिक महत्ता अपार है। स्थानीय लोग और दूर-दूर से आए श्रद्धालु इसकी पूजा करते हैं और इसे चमत्कारी मानते हैं।
पारिजात वृक्ष की पौराणिक कथा
पारिजात वृक्ष से जुड़ी कथा समुद्र मंथन की ऐतिहासिक घटना से प्रारंभ होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण देवराज इंद्र अपने सारे वैभव और ऐश्वर्य से वंचित हो गए। स्वर्ग की संपन्नता को पुनः स्थापित करने के लिए देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से अमृत सहित 14 रत्न निकले। इन्हीं रत्नों में पारिजात वृक्ष भी था, जिसे देवराज इंद्र ने स्वर्ग में स्थापित किया।
यह वृक्ष न केवल स्वर्ग की शोभा बढ़ाने के लिए प्रसिद्ध हुआ, बल्कि इसे इच्छाओं की पूर्ति करने वाला दिव्य वृक्ष भी कहा गया। मान्यता है कि इस वृक्ष के फूल देवताओं को प्रिय थे और इनका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से होता था।
पारिजात वृक्ष का धार्मिक महत्व
पारिजात वृक्ष को ‘कल्पवृक्ष’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है इच्छाओं को पूर्ण करने वाला वृक्ष। हिंदू धर्म में इसका स्थान विशेष है। माता लक्ष्मी को इसके फूल अत्यंत प्रिय माने जाते हैं। पूजा-अर्चना में इस वृक्ष के पुष्प का उपयोग करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, ऐसा विश्वास है।
श्रद्धालु इस वृक्ष को चमत्कारी मानते हैं और नियमित रूप से यहां पूजा करने आते हैं। इसके प्रांगण में प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है। विशेष अवसरों और त्योहारों पर यहां का वातावरण अत्यधिक भक्तिमय हो जाता है।
पारिजात वृक्ष का संरक्षण और देखभाल
5000 वर्ष पुराना यह वृक्ष समय के साथ अपनी दिव्यता और सांस्कृतिक महत्ता बनाए हुए है। इसकी सुरक्षा और देखभाल के लिए ‘कल्पवृक्ष सेवा समिति’ नामक एक संगठन काम कर रहा है। इस समिति का उद्देश्य वृक्ष के संरक्षण के साथ-साथ इसकी धार्मिक महत्ता को बनाए रखना है।
वृक्ष पर समय-समय पर वैज्ञानिक अध्ययन भी किए जाते हैं। दो साल पहले प्रयागराज अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञों ने इस वृक्ष की आयु और संरचना का विश्लेषण किया। उनके अनुसार, यह वृक्ष न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी जैविक विशेषताएं भी अद्वितीय हैं।
पर्यटन स्थल के रूप में महत्व
पारिजात वृक्ष का विशाल प्रांगण इसे पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाता है। यहां आने वाले पर्यटक न केवल इसकी दिव्यता का अनुभव करते हैं, बल्कि इसके ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को भी समझते हैं।
सरकार और स्थानीय प्रशासन ने इस स्थल को एक धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए कई प्रयास किए हैं। यहां की साफ-सफाई और पर्यटकों के लिए सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है।
स्थानीय विश्वास और आकर्षण
पारिजात वृक्ष केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का केंद्र भी है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि जो भक्त सच्चे हृदय से इस वृक्ष के समक्ष अपनी इच्छाएं व्यक्त करते हैं, उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।
देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं, और इस वृक्ष का विशेष रूप से दर्शन करते हैं। धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यावरणीय महत्व के कारण यह स्थल हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
पारिजात वृक्ष: एक धरोहर और प्रेरणा
यह वृक्ष केवल पौराणिक कथाओं का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म, और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। यह न केवल लोगों को प्रकृति से जुड़ने का संदेश देता है, बल्कि उनकी आध्यात्मिक चेतना को भी जागृत करता है।
इस अद्वितीय वृक्ष के दर्शन से लेकर इसकी छत्रछाया में समय बिताने तक, हर पल यहां एक दिव्यता का अनुभव होता है। सुल्तानपुर के इस पवित्र स्थान पर आना न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति के गहरे आयामों को समझने का भी अवसर है।