न्यूजलाइन नेटवर्क – ब्यूरो रिपोर्ट

सिंगरौली/ मध्य प्रदेश। कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी एनसीएल की जयंत एवं दूधिचुआ परियोजना के विस्तार के लिए मोरवा विस्थापन हेतु यहां जीवन उपार्जन के लिए किराए पर रह रहे लोगों एवं ठेले, गुमती पर काम कर अपनी आजीविका चल रहे लोगों को प्रभावित मानते हुए उन्हें मुआवजा प्रदान करने हेतु जांच पड़ताल शुरू कर दी गई है। बताया जाता है कि इसके लिए एनसीएल ने कैरियर मेकर इंस्टिट्यूट के संचालक राहुल सिंह को जिम्मा सौंपा है। जिनके और उनकी टीम द्वारा 10 अप्रैल से ही घर-घर जाकर किराएदारों का सर्वे का कार्य शुरू कर दिया। कल 11 अप्रैल तक उन्होंने वार्ड क्रमांक 09 में करीब 500 किरायेदारों का सर्वे कर उनके दस्तावेज एकत्रित किये। उन्होंने अंदाजा लगाया है कि मोरवा में करीब 5000 लोग किराए के मकान में रह रहे हैं। उनके अनुसार बीते समय एनसीएल से हुई वार्ता में यह बात प्रबंधन द्वारा स्पष्ट की गई थी की 03 वर्षों से पूर्व से यहां रहकर आजीविका चला रहे किराएदारों को प्रभावित मानते हुए उन्हें 1.50 लाख रुपये के साथ 20×30 का प्लॉट भी आवंटित किया जाएगा।
इसके अलावा ठेले, गुमती पर काम कर आजीविका चला रहे लोगों को 36 हजार रुपए गुजारा भत्ता के साथ अपना व्यवसाय दूसरी जगह ले जाने के लिए 25 हजार समेत कुल 61 हज़ार की राशि भी प्रदान की जाएगी। इसी के मद्देनजर एक माह में उन्हें यहां रह रहे किरायेदारों की जानकारी इकट्ठा करने का जिम्मा सौंपा गया है।कैरियर मेकर इंस्टिट्यूट के संचालक राहुल सिंह ने बताया कि प्रारंभिक तौर पर सर्वे के दौरान टीम को कई प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि वार्ड क्रमांक 09 में स्थानीय लोगों में एनसीएल की नापी प्रक्रिया को लेकर काफी रोष व्याप्त है। जिस कारण स्थानीय लोग उन्हें एनसीएल की नापी टीम का हिस्सा मानते हुए उनसे बदसलूकी कर रहे हैं। साथ ही यहां कई मकान मालिकों ने उन्हें इसलिए बैरंग लौटा दिया, क्योंकि उन्हें भरम है कि उनके हिस्से की मुआवजे की धनराशि काटकर किराएदारों को सौंप दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि जानकारी के अभाव में अभी भी कई लोग सही जानकारी प्रदान नहीं कर रहे हैं। गौरतलब तलब है कि एनसीएल के पूर्व सीएमडी भोला सिंह ने विस्थापन मंच को एशिया का सबसे सुंदर पुनर्वास देने का अस्वाशन दिया था, परंतु समय के साथ यह सारी बात कोरी साबित हुई। बीते दिन जिला मुख्यालय स्थित कलेक्टरेट भवन में जिला प्रशासन, एनसीएल प्रबंधन और मोरवा विस्थापन में अगवाई कर रहे लोगों की एक त्रिपक्षीय वार्ता आयोजित की गई थी। जिसमें घंटों मंथन के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला। इससे कई लोगों का यह मानना है कि जिला मुख्यालय में बैठक खाली उच्च अधिकारियों को दर्शाने के लिए औपचारिक तौर पर रखी गई थी की उनके द्वारा मोरवा विस्थापन के मुद्दे पर सक्रियता दिखाते हुए मंथन जारी है। कई लोगों का यह भी कहना था कि वर्ष 2020 में धारा 04 लगी थी इसके बाद ही पुनर्वास स्थल समेत विस्थापितों के लिए अन्य व्यवस्थाओं का चयन कर लेना चाहिए था। परंतु कलेक्ट भवन में हुई बैठक के दौरान एनसीएल ने यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर लिए की अल्प समय में वह पुनर्वास स्थल विकसित नहीं कर सकेंगे।
वहां बैठे लोगों ने बताया कि इसमें एनसीएल प्रबंधन का दोष है कि समय रहते उन्होंने इस चीजों पर ध्यान नहीं दिया नहीं तो यह पेंच अभी नहीं फसता क्योंकि पुनर्वास स्थल के एवज में सभी मंचों के लोग एक स्वर में 25 लख रुपए की मांग कर रहे हैं। वही एनसीएल प्रबंधन 15 लाख से 01 लाख बढ़ाकर 16 लाख पर करने को तैयार है। इस पर लोगों का आरोप है कि प्रबंधन ने कोयले पर 300 का अधिभार लगाते विस्थापन के लिए गाढ़ी कमाई का रास्ता तो निकाल लिया परंतु इसे विस्थापित और प्रभावित ही रहे लोगों पर खर्च नहीं करना चाह रहा।