प्रशांत किशोर की कहानी : निशांत पटेल की जुबानी।


रिपोर्ट- मोनीश ज़ीशान
न्यूज़लाइन नेटवर्क वैशाली (बिहार)

बात उस व्यक्ति की जिन्होंने अपने हुनर से भारतीय राजनीतिक
प्रचार की दशकों से चली आ रही पूरी संस्कृति को बदल कर रख दिया। बात बिहार के लाल प्रशांत किशोर की।

जिस इंसान को 2014 के पहले आमतौर पर कोई जानता नहीं था। वह इंसान आज की तारीख में राजनीत को देखने और समझने वाले आम जनमानस के बीच चर्चा के केन्द्र बिंदु में हैं।
जाति, धर्म, परिवारवाद, राजनीति के अपराधिकरण से ग्रसित भारतीय राजनीत को अपने काबलियत के बदौलत विकास के एजेंडो के बीच सीमित कर दिया ।
बात सिर्फ एक राज्य या एक प्रांत भर की नहीं हैं। 2014 के आम चुनाव से लेकर अभी तक देश के हर क्षेत्र में पूर्व से पश्चिम भारत तक तथा उत्तर से दक्षिण भारत तक भारतीय राजनीति के चुनावी प्रचार प्रक्रिया का रूप और रंग ही बदल दिया।

बात 2014 के बीजेपी की जीत के पीछे सबसे अहम किरदार की हो या फिर देश के अलग अलग राज्यों की चुनावी मैदान में उतरकर अपने साथ जुड़ने वाली पार्टी की जीत सुनिश्चित करना उनकी गारंटी सी हो गयी हो, और बात जब जीत के श्रेय में योगदान लेने की हो तो बड़ी सालीनता से बातों को टाल देना भी उनकी महानता को दर्शाता हैं।

देश के तमाम राजनीतिक पार्टियों को जीत सुनिश्चित कराने के बाद अब प्रशांत किशोर बड़ी ही सहजता से बैशाख की चिलचीलाती धूप हो या भादो की बारिश या दिसंबर की ठंड,अपने राज्य बिहार को ‘जन सुराज’ अभियान से समझने निकले हैं उसकी तरक्की की गाथा लिखने निकले हैं अपने मिट्टी को समझने निकले हैं अपने सूबे की स्थिति को देखने निकले हैं लोगों के दुख- दर्द को समझने निकले हैं।
बिहार के विकास के ब्लू प्रिंट बनाने निकले हैं, जो विकास के लगभग हर पैमाने पर अंतिम पायदान पर हैं।
इतिहास के पन्नों में जिस बिहार के गौरव के अपने गाथा हैं वह बिहार आज गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ के मानकों पर कराह रहा हैं।

वहां एक उम्मीद की किरण जगी हैं की बिहार अपने ऐतिहासिक गौरव को फिर से न सिर्फ प्राप्त करेगा बल्कि विकास के हर पैमाने पर अग्रिम पंक्तियों में होगा।

इस प्रयास में बिहार का कोई लाल सच्चे मन से अपना सब कुछ छोड़ कर ”जन सुराज” का संकल्प लेकर हमारे बीच आया हैं तो हमारा भी धर्म और परम् कर्तव्य बनता हैं की कंधा से कंधा मिलाकर इस संकल्प को पुरी ईमानदारी से उनका साथ दे।

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